शनिवार, 7 अप्रैल 2012

शुभ आशीषें (माँ के पत्र - 2)


                        दूसरा पत्र

प्यारी बिटिया,
चिरंजीवी रहो और प्रसन्न रहो.
तुम्हारा पत्र मिला और ये जान कर खुशी हुई कि तुम्हारी अर्धवार्षिक परीक्षाएं अच्छी हुई हैं. जो भी व्यक्ति मेहनत करता है उसका सुफल उसे अवश्य मिलता ही है. तुम अपनी पढाई का वर्तमान स्तर बनाए रखना. बहुत से बच्चे अच्छा रिजल्ट पाने के बाद लापरवाही बरतने लगते हैं और अगली पढाई में पिछड़ जाते हैं. पढाई व ज्ञान प्राप्त करने में थोड़ा बहुत कष्ट तो होता ही है, लेकिन बाद में इससे जीवन सुखमय होता है. तुमने अनेक महान पुरुषों की जीवनियाँ पढ़ी हैं, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बिताया और बाद में अपनी लगन व मेहनत से वे समाज के पथ प्रदर्शक बने.

तुम्हारा पत्र मैंने कई बार पढ़ा और ऐसा लगता था कि तुम सामने बैठ कर मुझ से बतिया रही हो. तुम्हारी गुड़िया पूरी तरह सुरक्षित है. तुम इसकी चिंता मत करना. अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना क्योंकि अब ठण्ड का मौसम है.

जब तुम इस सँसार में आई थी तो हमारे घर में एक आनंद का वातावरण बन गया था और मैंने तुम्हारी देख-भाल में रातों की नींद त्याग दी थी, यही सोचती थी कि कि मेरी बिटिया थोड़ी बड़ी हो जायेगी तो मेरे सभी कष्ट अपनेआप दूर हो जायेंगे. ये सँसार एक माया है. हर नया दिन नई संवेदनाए लेकर आता है. तुम थोड़ी बड़ी हुई तो स्कूल भेजी जाने लगी, और अब अच्छी पढाई की खातिर इतनी दूर भेज दी गयी हो.

ड्राईंग रूम में दादा जी के फोटो के पीछे गौरेय्या ने ना जाने कब घोंसला बना डाला. तीन चार दिनों से उसके शावकों की 'चीं-चीं सुन रही हूँ. मैं यह सब देख सुन कर प्रकृति के चक्र को याद करती हूँ कि मुझे भी मेरी माँ ने उसी तरह मातृत्व की छाया दी थी जिस तरह आज मैं तुम्हारे लिए मह्सूस करती हूँ. प्रकृति का ये अनवरत क्रम अनादि काल से चला आ रहा है और इसी तरह चलता रहेगा. हम लोग तो मानव है. तुमने पेड़ों पर बंदरियों को देखा है वे अपने बच्चों को छाती से चिपटाए हुए चलते हैं, उछलते कूदते हैं. प्रकृति ने प्राणी मात्र को सबसे पहला बोध ही मातृत्व का कराया है. इसीलिए इसमें महानता मानी गयी है.

आज मनुष्य बहुत सभ्य हो चुका है. सभ्य से तात्पर्य है कि उसे ज्ञान और विज्ञान की पकड़ हो गयी है, जिसके सहारे उसने अनेक संसाधनों का आविष्कार करके नई व्यवस्थाओं को जन्म दे दिया है. आज से लाखों साल पहले हमारा रहन-सहन, खान-पान व बोली-भाषा इस तरह का नहीं थी. डार्विन एक प्रसिद्द विचारक हुए हैं, उन्होंने एक जगतमान्य सिद्धांत प्रतिपादित किया कि मनुष्य बन्दर के वंश का प्राणी है, और धीरे धीरे लाखों करोड़ों वर्षों में विकसित होकर वर्तमान स्थिति को प्राप्त हुआ है. उस जंगली व असभ्यता की अवस्था में भी माताएँ अपने बच्चों की चिंता करती ही होगी. तुम जब इतिहास पढ़ोगी तो पाओगी कि आदिकाल में कई कबीले मातृप्रधान थे. आज भी अफ्रीका व चीन में कई क्षेत्रों में मातृप्रधान समाज मौजूद हैं. अनेक शारिरिक कमियों के वावजूद मातृत्व में जो नैसर्गिक शक्ति व प्रेम के गुण हैं, उसी के फलस्वरूप हमारे समाज का निर्माण हुआ है.

ये तमाम इतिहास लिखते हुए मैं ये लिखना तो भूल ही रही हूँ कि तुम सर के बालों की सफाई करते रहना. शैम्पू खतम हो रहा हो तो नया खरीद लेना ज्यादा दिनों तक बाल नहीं धुलेंगे तो जुएँ पड़ने का ख़तरा हो जाता है. बाजार में जो तेज खुशबू वाले हेयर आयल मिलते हैं, उनको भी हानिकर बताया जाता है इसलिए सादा नारियल का तेल ही प्रयोग करना.

तुमने लिखा है कि तुम्हारी वार्डन सिनेमा देखने की इजाजत नहीं देती है. सत्य बात तो यह है कि सिनेमा ज्ञान प्रसार का एक बहुत अच्छा साधन है, लेकिन हमारे देश में अधिकाश ऐसी फ़िल्में बनने लगी हैं, जिनमें मार-धाड़, हिंसा, चोरी-डाका बलात्कार के फूहड़ दृश्य ज्यादा होते हैं. कला और ज्ञान का पक्ष गौण हो जाने के कारण दर्शकों में अपराध भावना पैदा होती है. अगर ये ऐसा ही चलता रहा तो  वास्तव में तुम्हारे जैसे किशोर बच्चों के लिए ये फिल्मे ना देखने लायक ही होंगी. इसीलिये तुम्हारी समझदार वार्डन मना करती होंगी, पर मुझे विश्वास है कि जब कभी अच्छी फ़िल्में आयेंगी तो वह खुद तुमको देखने की सलाह देंगी.

हमारी फिल्मों में जो ग्लैमर और फैशन दिखाया जाता है उसके प्रति बच्चों में आकर्षण होता है, लेकिन हम जो परदे पर देखते हैं वह वास्तविकता से दूर एक बिलकुल झूठी कहानी होती है. कई बेवकूफ लड़किया ग्लैमर के चक्कर में घर से भाग कर मुम्बई की तरफ हीरोइन बनने के झूठे सपने लेकर जाती रही हैं. उनको बाद में अपनी गलती का अहसास होता है. कई लड़कियों का जीवन इस चक्कर में बर्बाद हुआ है.

हमारा यह सभ्य समाज आज भी लाखों विसंगतियों और दुर्गुणों से भरा पड़ा है. एक लड़की को अपनी आबरू ओर कौमार्य बचाए रखने के लिए बहुत सी सीमाओं में रहना होता है. तुम ज्यों-ज्यों सयानी होती जाओगी सब कुछ खुद अनुभव करती रहोगी.

तुम्हारा भैया आजकल घुटनों के बल चलने लगा है. बहुत नटखट भी हो गया है.

तुम्हारे पापा और मैं अक्सर तुम्हारी बातें करते हैं. अपनी सहेलियों को विशेषकर अपनी रूममेट को हमारी शुभ कामनाएं देना.

तुम्हारी माँ
                                         ****

4 टिप्‍पणियां: