रविवार, 19 अगस्त 2012

राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद

डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बन जाये, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बन जाये, वकील का बेटा वकील बन जाये, या अध्यापक का बेटा अध्यापक बन जाये तो इसे कोई भी परिवारवाद की संज्ञा नहीं देता है और ना ही किसी को सार्वजनिक रूप से जलन होती है. लेकिन अगर किसी राजनैतिक नेता का बेटा या बेटी राजनीति में घुस जाये तो सबको खलता है क्योंकि हमारे देश में राजनीति एक बहुत बढ़िया व्यवसाय बन गया है, जिसमें कोई शैक्षिक योग्यता नहीं चाहिए, ना ही उम्र का कोई तकाजा है.  मजेदार बात यह भी है कि इसमें सेवा निवृत्ति यानि रिटायरमेंट की भी कोई उम्र तय नहीं है. कब्र में पैर लटकने तक नेता लोग कुर्सी मोह नहीं छोड़ पाते हैं.

आजादी से पूर्व नेताओं ने बहुत संघर्ष किये, यातनाएं पाई. उनमें त्याग व बलिदान का जबरदस्त जज्बा था लेकिन इन ६५ वर्षों में आते आते वह सारी जनसेवा की भावना लुप्त हो गयी है. बचे हुए अधिकतर पुराने नेता लोग अपने योगदान की कीमत वसूलने में कोई कसर नहीं करते हैं. जो गुजर गए उनकी अगली पीढियाँ भरपूर लाभ ले रही हैं.

नई पीढ़ी जानती है कि इस लाभ के धन्धे में किसी प्रकार की हींग या फिटकरी लगाए बिना मलाई मिलती रहती है इसलिए राजनैतिक दलों के दलदल में सीढ़ियां तलाशने का काम स्कूल-कॉलेज से ही शुरू हो जाता है. यह भी सच है कि कई प्रतिभाशाली तो अपने जिद्दोजहद से प्रकाश में आते हैं और कुछ अपनी विशिष्ट जाति-बिरादरी का लाभ उठाते हैं, पर सबसे ज्यादा लाभ उठाने वाले वे हैं जो किसी नेता कुल में पैदा होते हैं. राजनैतिक बिसात में उनके नाम की कुर्सी पैदा होने से पहले से इन्तजार करती है.

इंदिरा गाँधी के सत्ता में आने के बाद उनसे विरोध रखने वालों ने सबसे पहले परिवारवाद का नारा बुलंद किया था क्योंकि उनके पिता जवाहरलाल बड़े नेता थे. इंदिरा जी के शहीद होने के बाद जब कांग्रेस पार्टी ने राजीव गाँधी को अपना नेता चुना तो विरोधियों ने इस नारे को और बुलंद किया. वे सत्ता में अनुभवहीन थे. उनके एक अन्तरंग साथी विश्वनाथ प्रतापसिंह ने उनको बोफोर्स के गुलेल से मार कर स्वयं सत्तानासीन हो गए पर ज्यादा  दिन नहीं चल सके. राजीव गाँधी फिर से लोकप्रिय हो रहे थे, पर इसी बीच वे भी शहीद हो गए. कॉग्रेस पार्टी अपने को अनाथ महसूस करने लगी. सोनिया गाँधी की अनिच्छा के बावजूद पार्टी की कमान उनको संभला दी गयी. इतिहास गवाह है कि इस दौर में वह विदेशी मूल की होते हुए भी सभी भारतीय नेताओं पर भारी पडी हैं. विशेषता ये भी है कि उन्होंने खुद को पूरी तरह भारतीयता के रंग में रंग लिया है. वे भारतीय परिधान पहनती हैं और साफ़ साफ़ हिंदी बोलने लगी हैं. उनका पुत्र राहुल को सत्ता का युवराज कहा जाने लगा है. लेकिन जो लोग राजनैतिक कारणों से इस परिवार से खलिश रखते है पानी पी पी कर इस खानदान को परिवारवाद के नाम पर गालियाँ देते रहते है. जबकि, कुछ वामपंथी दलों के नेताओं को छोड़कर लगभग सभी पर परिवारवाद के कलंक लगे हुए हैं.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायमसिंह के परिवार के लगभग बीस छोटे बड़े सदस्य केन्द्र या उत्तर प्रदेश की कुर्सियों पर विराजमान हैं.

अकाली दल के प्रकाशसिंह बादल के एक दर्जन पारिवारिक लोग कुर्सियों पर काबिज हैं.

हरियाणा में स्वर्गीय देवीलाल के पुत्र चौटाला जी और उनके बेटे कुर्सियों पर हैं.

कश्मीर में स्व. शेख अब्दुला के बाद उनके बेटे फारूख अब्दुला और उनके भी बेटे उम्र अब्दुला क्रमश: केन्द्र व राज्य में काबिज है.

कश्मीर में ही विरोधी नेता महबूबा मुफ्ती अपने पिता भूतपूर्व केन्द्रीय गृह मन्त्री की विरासत की मालकिन हैं.

हिमांचल के भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान मुख्यमंत्री के पुत्र अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय युवा मोर्चा संभाल रहे हैं.

हरियाणा के दो भूतपूर्व बड़े नेता चौधरी बंशीलाल व भजनलाल के वंशज राजनीति में सक्रिय हैं.

बिहार के राजद के बड़े नेता लालूप्रसाद ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को चूल्हे से सीधे मुख्यमन्त्री बनाया. उनकी दो साले भी राजनीति मे अग्रणीय हैं.

स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी के पुत्र, गोविन्दवल्लभ पन्त के पुत्र-पौत्र, मध्यप्रदेश के शुक्ला बन्धु अपने पिता की विरासत को लंबे समय तक संभालते रहे थे.

उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमन्त्री अपने पिता हेमवतीनंदन की लीक पर हैं, उनकी बहन भी उत्तरप्रदेश में कॉग्रेस की कमान सम्हाले हुई है

चौधरी चरणसिंह के पुत्र एवँ पौत्र उनके बताए मार्ग पर प्रशस्त हैं.

वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, बाबू जगजीवनराम की बेटी हैं.

हारे हुए राष्ट्रपति उम्मीदवार संगमा लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. बेटे को आसाम मे राज्य विधान सभा में और बेटी को लोकसभा मे स्थान दिला कर आगे की रह तक रहे हैं.

मध्यप्रदेश के राज घराने वाले सिंधिया परिवार की पीढ़ियां राजनीति की अग्रिम पंक्ति में सक्रिय रही हैं.

दक्षिण मे तमिलनाडू में करुनानिधि पुत्र एवं पुत्री, भतीजे व अन्य रिश्तेदारों के साथ बदनामी झेल रहे हैं.

केरल मे स्वर्गीय करुणाकरण ने पुत्र मोह मे बहुत खेल किया, और पार्टी से विद्रोह किया.

कर्नाटक में स्वनामधन्य हरदनहल्ली देवेगौड़ा के उखाड़ पछाड़ में उनके बेटे का मुख्यमंत्री बनना और हटाया जाना ज्यादा पुराना नहीं हुआ है.

आन्ध्र में फिल्मों से आये राजनेता/मुख्यमन्त्री एन.टी.आर की विरासत में पत्नी लक्ष्मी और दामाद चंद्रबाबू नायडू के राजकाज की बातें अब भी लोगों को याद हैं.

आंध्र में ही पूर्व मुख्यमन्त्री राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन के हक की लड़ाई केवल कुर्सियों के लिए चली है.

झारखंड में शिबूसोरेन का व उनके बेटे का राजनीतिक दांवपेंच सिर्फ कुर्सी के लिए चलता रहा. वहां कोई सिद्धांतों की बात नहीं है.

शिवसेना प्रमुख बाला साहब का पुत्र-पौत्र प्रेम और राजनीति में परिवारवाद का प्यारा उदाहरण है.

एन.सी.पी. नेता शरद पवार की बेटी राज्यसभा में और भतीजा विधान सभा में उनके आदर्शों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

महिला आयोग की वर्तमान अध्यक्षा ममता शर्मा के ससुर लंबे समय तक राजस्थान में कई विभागों के मन्त्री रहे थे.

राजस्थान के वर्तमान गृहमंत्री शांति धारीवाल के पिता भी अपने समय में बड़े नेता थे. इस प्रकार के तो अनेक बेटे अपने बाप या दादा की वसीयत को सम्हाले हुए है.

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, हरीश रावत, यशपाल आर्य, भूपेंद्रसिंह हुड्डा, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री कल्याणसिंह, इन सबके बेटे लाइन में हैं. और किस किस का नाम लिया जाये, सैकड़ों खानदानी नेता जिनके रगों में सिर्फ राजनीति बहती है. वरुण गांधी और उनकी माँ मेनका अब भारतीय जनता पार्टी की अग्रिम पंक्ति में आ चुके हैं, पर इन पर परिवारवाद का आक्षेप सुनने को नहीं मिलता है क्योंकि विपक्षी होने का लाभ इनको प्राप्त है. हाँ, सोनिया गांधी सबके निशाने पर हैं इसलिए उनके और उनके बेटे राहुल पर परिवारवाद का ठप्पा लगाना बहुत सुविधाजनक है. एक प्रबुद्ध नेता बोल रहे थे कि “अब परिवारवाद कोई मुद्दा नहीं है. जनता बुद्धिमान है, अपना वोट देकर पार्लियामेन्ट में भेजती है. कल को मेरा बेटा या पोता चुनाव लड़ना चाहेगा तो कौन रोक सकता है, यह जनतंत्र है.”

सिद्धांत यह है कि मेरा विकल्प मेरे ही परिवार में से आएगा.


***

3 टिप्‍पणियां:

  1. न हर्रे न फिटकरी, मार मलाई चाप |
    चून लगाए देश को, दूषित क्रिया-कलाप |
    दूषित क्रिया-कलाप, शुद्ध व्यापारिक रिश्ता |
    खा पिश्ता बादाम, झूठ का बना फ़रिश्ता |
    वादा कारोबार, पुत्र पत्नी वधु पुत्री |
    सौंप विरासत जाय, हमारे नेता मंत्री ||

    dineshkidillagi.blogspot.com

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  2. सार्थक और सामयिक पोस्ट.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .

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  3. "राजनैतिक दलों के दलदल में सीढिया तलाशने का काम स्कूल-कॉलेज से ही शुरू हो जाता है."

    सटीक आलेख.

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