कपोल कल्पनाओं का आधार लेकर
निबन्ध के बन्ध लिखना शैशव में
शरद-पूर्णिमा पर, भावातीत ना भी हो
पितृतुल्य अध्यापक के सन्तोष को
आज मन के बन्धों में निबन्धों की छटा
श्रावण की घटा सी छलकती, ना थमती थामे.
किशलय कपोलों के स्पर्श-बन्धों का अमिय सुख
पर खिंचाव दूरी का चाँद से चकोर को.
प्रिय! प्रतिदिन पूर्णिमा होती शरद की पावन,
तुम पास होते निर्मल निबन्धों के अम्बार होते.
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Shard Purnima is the day when I born in 1949!
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