शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

उलझे रिश्ते


इज्जतनगर, बरेली, में डाक्टर सुनील गुप्ता की बेटी शालिनी का विवाह मुरादाबाद के खजानचंद गुप्ता के बेटे नन्द कुमार से रस्मो-रिवाज के साथ तय किया गया. बरात दरवाजे पर आ गयी तब मालूम हुआ कि शालिनी गायब हो गयी है.

शालिनी शुरू से ही अपने इस विवाह के बारे में माँ-बाप से असहमत थी क्योंकि वह सुदर्शन कश्यप नामक एक क्लासमेट के साथ बरसों से सपने संजोये हुए थी. चूँकि सुदर्शन गैर जाति वाला था इसलिए डाक्टर गुप्ता ने डाट-डपट कर बेटी को बहुत सारे वास्ते दिए क्योंकि अभी छोटी बहिन व भाई भी लाइन में थे. बिरादरी से बाहर जाने का मतलब था भविष्य में समाज में बैठने लायक नहीं रहेंगे. अब ऐन वक्त पर वह भाग गयी तो और भी बुरा होने वाला था. आनन्-फानन में छोटी बेटी नलिनी को हाथ पैर जोड़े कि वह मंडप में बैठ कर घर की इज्जत बचा ले. उसने अपने मन की बात कभी बताई नहीं थी कि उसका भी कहीं चक्कर है. परिस्थितियों के वशीभूत दबाव में उसे नंदकुमार के साथ फेरे लेने ही पड़े. ये सारा अंदरूनी खेल घर के चंद लोगों तक ही सीमित रहा. जैसे तैसे व्याह हो गया. बारात विधिवत विदा भी हो गयी.

ससुराल पहुँच कर नव वधू गुमसुम हो गयी. शाम होते होते तो वह अर्धचेतना की अवस्था में आ गयी. नन्दकुमार को जब दुल्हन के बीमार होने की बात मालूम हुई तो वह उससे मिलने आया. वह दंग रह गया कि वहाँ बहू के रूप में शालिनी नहीं नलिनी थी. उसने नलिनी से इसका कारण पूछा तो उसने सारा सच उगल दिया और ये भी बताया कि वह किसी और की अमानत है. उसने भी इज्जतनगर में ही विवेक गुप्ता नाम के लड़के के गले में भगवान के मंदिर में जयमाला डाली हुई है.

नंदकुमार ने सारी बात अपने माता-पिता को बताने में देर नहीं की. खजानचंद गुप्ता को डाक्टर गुप्ता पर बहुत गुस्सा आया और तुरन्त फोन मिलाया कि उन्होंने उनके साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया?

डाक्टर गुप्ता ने क्षमा मांगते हुए एक ही वाक्य में उनको निरुत्तर कर दिया कि अगर उनकी जगह खुद खजानचंद जी होते तो क्या करते?

घर में मेहमान भी थे अभी शगुन ही गाये जा रहे थे. ऐट होम में खाना खाने के लिए स्थानीय आमन्त्रित लोग आने लग गए थे. अन्दर ये नया डेवलपमेंट होने होने से रंग में भंग जैसी स्थिति हो गयी.

खजांनचंद गुप्ता बड़े जिम्मेदार आदमी थे पीतल के कारोबारी समाज में उनका बहुत मान था. मुरादाबाद के गण्यमान्य व्यक्तियों में उनकी गिनती होती थी. उनको लगा कि अब बड़ी छीछालेदर होने वाली है तो उन्होंने घर परिवार के, निकट बिरादरी के और रिश्तेदारों को जल्दी से बुलाया और विस्तार से सारी कहानी कह डाली. अंत में प्रमुखतया कहा कि चूँकि उनके घर में कोई बेटी नहीं है इसलिए वे नलिनी को बहू नहीं बेटी का दर्जा देते है. नलिनी को भी आश्वासन दिया कि जिस लड़के से वह बंधन बंधा हुआ बता रही है, उससे ही उसका ब्याह करा देंगे.

लोगों ने तालियाँ बजाई. पूरे एपिसोड में नया मोड आ गया. सबने खजानचंद गुप्ता के बड़प्पन  व उनके आदर्शवादी होने पर बहुत खुशी जताई. अगले ही दिन तमाम स्थानीय व राष्ट्रीय अखबारों में ये डबल प्रेम कहानी चटाखेदार शब्दों में छप गयी. इज्जतनगर के घर घर तक बात पहुँच गयी.

खोजी पत्रकार विवेक गुप्ता को खोजते हुए उसके घर तक पहुँच गए. एक तमाशा हो गया. जब विवेक से इस बारे में कमेंट्स पूछे गए तो उसने कहा, मैं अब किसी नलिनी गुप्ता को नहीं जानता. ना ही उससे विवाह करूँगा क्योंकि वह दूसरे की पत्नी हो गयी है.

ये वक्तव्य भी दूसरे ही दिन अखबारों में आ गया. अब नलनी त्रिशंकु होकर रह गयी. खजानचंद गुप्ता ने उसे बाइज्जत उसके दान-दहेज सहित माँ-बाप के पास इज्जतनगर भेज दिया.

इस प्रकार के अनेक अभिषप्त परिवार हमारे देश में है जहाँ जाति, धर्म व अमीरी-गरीबी के मापदंडों से दुर्दिन देखने पड़ते हैं. लड़के और लड़कियों को अपने पैरों पर खड़े होकर ही भविष्य के निर्णय लेने चाहिए और माँ-बाप को भी समय की नजाकत व बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए.
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