शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

दो मायके


सोमेश्वर के रिटायर्ड लेफ्टीनेंट कर्नल किसनसिंह रावत के पिता सूबेदार दरबानसिंह द्वितीय विश्व युद्ध के योद्धा रहे थे. उसी परम्परा को कायम रखने के लिए उनके पुत्र दीपेंद्र सिंह ने इन्डियन मिलिट्री एकेडेमी में प्रवेश पा लिया और पासिंग आउट परेड के बाद उसे कश्मीर के उड़ी क्षेत्र में तैनाती मिल गयी. साल भर बाद ही पिथोरागढ़ के मेजर महेंद्रसिंह मेहरा की बेटी प्रतिभा से उसका व्याह धूमधाम से कर दिया गया. घर में समयोचित खुशियाँ थी. बैभव भी था. पर भाग्य में खुशिया लंबे समय तक के लिए नहीं लिखी थी. एक मनहूस दिन खबर आई कि आतंकवादियों से मुठभेड़ में कैप्टन दीपेंद्र शहीद हो गया है. परिवार का इकलौता चिराग बुझ गया. प्रतिभा विवाह के छ: माह के अंतराल में ही विधवा हो गयी. तिरंगे में लिपटा शव घर पहुँचा. इलाके में सर्वत्र शोक की लहर दौड गयी. पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतेष्टि भी हो गयी.

मातमपुर्सी बहुत हुई. जो चला गया वह कभी वापस नहीं आता उसकी यादें भर रह जाती हैं. दीपेंद्र के स्मृति चिन्ह, वर्दी व अनेक पोजों में खींची गयी तस्वीरें रह रह कर माँ, बाप, और प्रतिभा को सुबुक-सुबुक कर रोने को मजबूर कर रही थी. मन कितना भी मजबूत हो, कठोर हो आत्मीय जन का बिछोह तो असहनीय वेदना देता रहता है. धन-वैभव की कमी नहीं थी, कमी थी तो केवल दीपेंद्र की उपस्थिति की, जो अब संभव नहीं थी. कर्नल साहब अब पुत्रशोक से ज्यादा इस बात से दु:खी थे कि पुत्रवधू प्रतिभा की पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी?

शहीदों के स्मारकों पर हर बरस फूल मालाये अर्पित की जाती हैं पर उनके अपनों पर क्या बीतती है, ये उनके दिल ही जानते हैं. आखिर किसन सिंह ने वार्षिक श्राद्ध के पश्चात घोषणा की कि प्रतिभा अब उनकी पुत्रबधू नहीं पुत्री है और वे उसके लिए कोई योग्य वर ढूंढ रहे हैं. सभी प्रबुद्ध जनों ने उनकी इस सोच को प्रगतिशील और समयोचित कहा. प्रतिभा को मानसिक रूप से तैयार करने में उनको बहुत समय लगा. चूंकि प्रतिभा एम्.ए. तक पढ़ी थी, वह कोई जॉब करना चाहती थी. दोनों सम्बन्धियों ने इस बाबत गंभीर मंत्रणा करके सहमति पाली कि नौकरी अपनी जगह ठीक है. उसके लिए प्रयासरत रहा जाये, लेकिन पतिभा के पुनर्विवाह की संभावनाएं जोर-शोर से तलाशी जाएँ.

कर्नल साहब ने राष्ट्रीय अखबारों में इस आशय का मैट्रिमोनियल विज्ञापन छपवाया तो अनेक जगहों से रेस्पोंस आये. जो सबसे उचित लगा वह था प्रोफ़ेसर डॉ. विवेक सिंह का जो दिल्ली में जे.एन.यू. में फिजिक्स पढ़ा रहे थे. उनकी पत्नी का भी बिवाहोपरांत जल्दी ही किसी आकस्मिक दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया था. दोनों परिवारों में पहले पत्राचार द्वारा फिर व्यक्तिगत संपर्क से बात बन गयी. प्रोफ़ेसर का परिवार भी आर्मीबेस था इसलिए बहुत सौहार्द्य पूर्ण वातावरण में उनकी शादी तय हो गयी. कर्नल साहब ने खुद कन्यादान किया. सभी इष्ट-मित्र शामिल हुए. सभी ने कर्नल साहब के इस कदम की सराहना की.   

अब इस बात को पांच साल हो गए हैं. प्रतिभा की सुखी गृहस्थी है, उसके दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक छोटी गोद की बेटी. डॉ. विवेकसिंह बहुत ही सज्जन व सुलझे हुए व्यक्ति है. उन्होंने अपने व प्रतिभा के जीवन में तमाम खुशियों को फिर से आमन्त्रित किया है तथा औरों के लिए मिसाल कायम की है.

अब प्रतिभा के दो मायके हैं और वह दोनों को सामान दर्जा देकर सम्मान देती है. पिछली गर्मियों की छुट्टियों में वह पुत्र ध्रुव को लेकर पहले उसके बड़े नाना कर्नल किसनसिंह के घर सोमेश्वर गयी फिर छोटे नाना मेजर महेंद्रसिंह के घर पिथोरागढ़...
                                     ***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें