किसी वस्तु या धन का लोभ करना मनुष्य की आम फितरत है, जो झगडों की जड़ बनती है. ठेठ पौराणिक काल से आज तक के इतिहास में हम पाते हैं कि चाहे महाभारत का युद्ध हो या अर्वाचीन राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्वार्थ के कारण वैमनस्य, कारण लोभ ही होता है.
जुआ खेलना और इस तरह से धन का लोभ करना हर तरफ से निंदनीय कहा जाता है, तथा जुआरी लोग लुटने-पिटने के बाद भी दाँव लगाने की प्रवृत्ति नहीं छोड़ पाते हैं क्योंकि यह ऐसी विधा है जिसमें कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती. जुए के अनेक रूप हैं, सरकारी–गैरसरकारी लाटरियाँ, कैसीनो (जुआघर) में खेले जाने वाले खेल, शर्त लगाना या हमारी देसी तीन पत्ती ‘फ्लैश’ सब जुआ ही होते हैं. यह लालच-लोभ का आकर्षण वाला होता है, जिसकी कोई सीमा नहीं होती है. इसका परिणाम किसी किसी भाग्यशाली के लिए लाभकार हो सकता है, अन्यथा लोभी लोग अपना धन गंवाते ही हैं.
यह भी जरूरी नहीं कि धनिक या दो नम्बर वाले ही जुआ खेलते हों, इसमें छोटे स्तर पर मटका-खाईवाल जैसे असाध्य मानसिकता वाले लोग भी बुरी तरह फंसे हुए हैं, यह एक तरह का नशा है, लत है.
इस कहानी का पहला पात्र दामू उर्फ दामोदर भी ऐसे ही बर्बाद लोगों में से एक है. मजेदार बात यह है कि इस तरह जुए में लूटे-पिटे, चोट खाये लोग बात करने में माहिर हो जाते हैं. उनकी ऊँची ऊँची बातें सुनकर घोड़ा भी घास खाना छोड़ देता है. मतलब यह कि अतिशयोक्तिपूर्ण गप्प मार कर सामने वाले को प्रभावित कर देते हैं और कुछ न कुछ झटक लेते हैं, कुछ नहीं तो एक कप चाय ही सही. पर कभी कभी सेर को सवा सेर भी मिल ही जाता है. हुआ यों कि दामू की मुलाक़ात एक जुए की फड़ पर दूसरे पात्र दिलबाग उर्फ टीटू से हो गयी. बातों में दोनों ने एक दूसरे को खूब झेला और अपने-अपने खानदान तथा धन-दौलत की ऊँची ऊँची फैंकते रहे। मालूम दोनों को हो रहा था कि सामने वाला यों ही फैंक रहा है. जब बहुत हो गयी तो टीटू ने दामू से कहा, “यार, मुझे मालूम हो गया है कि अपन दोनों एक ही नाव के पैसेंजर हैं. गप्पी तुम भी हो और गप्पी मैं भी हूँ” इस पर दामू ने अपनी खीसें निपोरी और बेशर्मी से हँस दिया.
टीटू ने जुआरी अंदाज में कहा, “चल यार, आज हो जाये, तू भी अपनी कोई गप्प मुझे सुना और मैं भी अपनी तुझे सुनाऊंगा.”
इस बात पर दामू खिल गया बोला, “पहले मैं सुनाता हूँ.” तो टीटू ने कहा “वो तो ठीक है, लेकिन गप्प ऐसी हो जिसे दूसरा ये न कहे कि ‘ऐसा नहीं हो सकता है’ अगर ये बात हुई तो पाँच सौ रुपयों की हार-जीत होगी.”
दामू ने मंजूर कर लिया और दोनों ने टेबल पर ५०० रुपयों के अपने अपने नोट रख दिये तथा प्रक्रिया शुरू हो गयी.
दामू- मेरे दादा के पास एक मील लंबा बाँस था. वे उसे बादलों में घुसेड़ कर पानी निकाल लेते थे.
टीटू- हाँ, हो सकता है. पहले जमाने में तो इससे भी लंबे बाँस पैदा होते थे. लोग तो चाँद को भी टोचा करते थे.
दामू- मेरे नाना के पास एक रत्नजडित सोने का घोड़ा था, जो चलता भी था.
टीटू- अरे, वह उड़ता भी होगा सूरज के सातों घोड़े ऐसे ही हैं.
दामू- मेरे पिता जी क्रिकेट में दर्जनों गोल मार देते थे.
टीटू- हाँ पहले गोल ही होते होंगे. बाद में बाल छोटी होने पर बैट से खेला जाने लगा होगा.
दामू- मेरे चाचा नाश्ते में एक हजार लड्डू निगल जाते थे.
टीटू- ये कौन सी बड़ी बात है, तुमने सुना नहीं, कुम्भकर्ण तो नाश्ते में दो चार भैसों को चट कर जाता था.
दामू- मैं अगले ओलम्पिक में दस मीटर ऊँची कूद का विश्व रिकोर्ड बनाने वाला हूँ.
टीटू- ये तो बहुत अच्छी बात होगी लेकिन लम्बी कूद में हनुमान जी का रिकार्ड चेक कर लेना.
दामू- बहुत हो गया यार. अब तेरी बारी, तू सुना.
टीटू- मेरा बाप तो बहुत गरीब था उसके पास खेतीबाड़ी के लिए कोई जमीन भी नहीं थी.
दामू- हाँ, भिखारी बेचारे गरीब ही होते उनके जमीन होती तो भीख थोड़े ही मांगते.
टीटू- किसी भले आदमी ने अपना बूढ़ा मरियल सा बैल दान में मेरे बाप को दे दिया था.
दामू- हाँ, हाँ, गरुड़ पुराण में भी लिखा है कि मृतात्मा के तारण के लिए बैल दान में देना चाहिए.
टीटू- मेरे बाप ने एक लकड़ी की काठी बनवा कर उसकी पीठ मे फिट कर दी और ऊपर से मिट्टी भर कर खेत बना दिया.
दामू- अच्छा आइडिया है. ऐसा पहले जमाने में लोग करते ही होंगे. खानाबदोश लोग इस तरह अपने खेतों को भी साथ ले जाते होंगे.
टीटू- मेरे बाप ने उस खेत में गेहूं बोया तो बढ़िया फसल हुई. पूरे पाँच क्विंटल गेहूं निकला.
दामू- जरूर थोड़ी बहुत फसल बैल गर्दन पीछे करके चट कर गया होगा, अन्यथा आठ-दस क्विंटल गेहूं होता.
टीटू- जब मेरा बाप बोरी उठाकर घर लाने की तैयारी कर रहा था तो कहीं से उछलते-कूदते तेरा बाप आ गया.
दामू- हाँ, मेरा बाप तो बहुत फास्ट था, वह जरूर पहुँच गया होगा.
टीटू- तेरा बाप मेरे बाप से बोला, “इसमें से दो बोरी मुझे दे दे, इसका रुपया मेरा बेटा दामोदर चुकायेगा”.
इस पर दामू कुछ सोच में पड गया और बोला, “मेरा बाप ऐसा नहीं कह सकता.”
टीटू- इसी बात पर शर्त मैं जीत गया हूँ.
उसने नोट अपनी जेब के हवाले किये और चलता बना. दामू हार कर खिसियाया सा बैठा रहा. सोचने लगा, 'किसी ने सच ही कहा है लालच बुरी बला है.'
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