दिल्ली का मैनहटन कहलाने वाला, गाजियाबाद का इंदिरापुरम इलाका अब चारों ओर गगनचुम्बी इमारतों से भर गया है. एक बिल्डिंग में २०० से ३०० तक फ्लैट्स हैं. आधुनिक सुविधाओं से लैस, जैसे गैस, पानी, बिजली, प्रतिरक्षा, और अग्निरोधक व्यवस्थाओं के साथ यह घनी आबादी वाला क्षेत्र अनेक संस्कृतियों का संगम भी हो गया है.
वास्तु की बात हम यहाँ पर नहीं करेंगे लेकिन भवन निर्माण कला के ये बहुत अच्छे नमूने हैं, भूकंप ज़ोन में होने के कारण विशेष रूप से स्टील के मजबूत सरियों की बुनियाद पर ढाँचे खड़े किये गए हैं. दक्षिण मुखी फ्लैट्स को छोड़ कर शेष में शीत काल में सूर्य भगवान के दर्शन कम या बिलकुल नहीं होते हैं. इसलिए प्राकृतिक ताप का आनन्द लेने के लिए अधिकांश बाशिंदे पार्कों में निकल आते हैं.
एक सुन्दर भद्र स्त्री, श्वेत-लाल चौड़े बोर्डर वाली साड़ी में रोज आकर सीमेंट की बनी छतरी के नीचे आकर अकेले बैठ जाती है. उसके पास एक बड़ा सा काला चमड़े का पर्स रहता है, जिसमें कुछ किताबें तथा स्वेटर बुनाई का सामान रहता है. वह अपने आप में व्यस्त दिखती है. बड़े शहरों में कौन किसका हमदर्द होता है, जो बिना बात किसी अनजान से परिचय करना चाहता हो? पर मेरे साथ ऐसा हुआ. मैं एक दिन उससे ही पहले वहाँ बैठ कर धूप सेक रहा था. वह आई मुझे बैठा देख कर थोड़ा मुस्कुराई फिर बोली “हम इधर बैठ सकता है?” “हाँ, हाँ, जरूर बैठिये.” मैंने कहा. उसके बोलने के लहजे व पहनावे पर उत्कंठित होकर मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए पूछा “आप बंगाली हैं?” “ना, हम आसाम से आया है, पर हमारा घर उत्तराखंड बन गया है.” उसने बताया. उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हो गया उसने जो बताया उसकी रामकहानी इस प्रकार है:
नाम- राधा. पति मि. राबर्ट रॉस उर्फ बॉब, जो अंगरेज है, गोहाटी में रह कर एक सरकारी प्रोजेक्ट में चीफ इंजीनियर था.राधा बेवाकी से बताती है कि वह उसकी घरेलू नौकरानी थी और बाद में बीवी हो गयी. बॉब का बाप मार्टिन रौस ब्रिटिश शासनकाल में जियोलोजिकल सर्वे में काम करने भारत आया था उसने कुमायूँ में अल्मोड़ा के पास जंगल में काफी जमीन घेर कर एक चाय का बगीचा लगवाया. वहीं घर भी बनाया. भारत की आजादी के वक्त उसका पूरा परिवार इंग्लैण्ड वापस चला गया, केवल बॉब यहाँ रह गया उसने भारतीय नागरिकता ले ली थी. वह बहुत हिम्मतवाला है. अब तो वह ८० वर्ष का बूढ़ा हो चुका है. उसने अपनी टी-एस्टेट को बढ़िया ढंग से संभाला है. राधा को बीवी बनाने के बाद उसे रौस-विला ले आया था. उनकी एक बेटी है जो एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर है, उसने अपने एक सहकर्मी प्रोफ़ेसर से सिविल मैरेज कर ली है. यह जोड़ा यहीं इंदिरापुरम के एक फ़्लैट में किराए पर रहता है राधा अल्मोड़ा की ठण्ड से बचने के लिए यहाँ बेटी-दामाद के पास आई हुई है.
अपनी इस लम्बी मजेदार कहानी को सुनाते हुए वह कई बार मुस्कुराई और अपने पति की आदतों को बताते हुए शरमाई भी. बॉब के बारे में वह बताती है कि उसने रौस ग्राम में चाय के बगीचे के साथ ही बहुत से फलों के पेड़ भी लगाए हैं. हालिस्ट्न व जर्सी नस्ल की गायें भी पाल रखी हैं, उसके पास तीन नौकर भी काम करते हैं, घर को आधुनिक बना रखा है, पहले गोबर-गैस प्लांट भी लगाया था पर अब सोलर एनर्जी से काम होता है.
बॉब हफ्ते में एक बार अपनी जीप से अल्मोड़ा जाता है और जरूरत का सामान लेकर आता है. राधा बताती है कि बॉब को सरकारी पेंशन मिलती है और उसके पूर्व संचय का रिटर्न भी मिलता रहता है.
बॉब कुत्ते पालने का बहुत शौक़ीन है, उसके पास दो जर्मन शेपर्ड, दो पहाड़ी भोटिया कुत्ते और पमरेनियन नस्ल के दो कुत्ते हैं. वह कुत्तों से बहुत प्यार करता है इसलिए रौस ग्राम छोड़ कर वह कहीं नहीं जा पाता है.
जब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
मैंने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दी, हालाँकि अब ज़माना बराबरी का आ गया है और आपस में प्यार हो तो पति व पत्नी, दोनों ही एक दूसरे का चाल-चलन सीखने का प्रयास करते हैं.
वास्तु की बात हम यहाँ पर नहीं करेंगे लेकिन भवन निर्माण कला के ये बहुत अच्छे नमूने हैं, भूकंप ज़ोन में होने के कारण विशेष रूप से स्टील के मजबूत सरियों की बुनियाद पर ढाँचे खड़े किये गए हैं. दक्षिण मुखी फ्लैट्स को छोड़ कर शेष में शीत काल में सूर्य भगवान के दर्शन कम या बिलकुल नहीं होते हैं. इसलिए प्राकृतिक ताप का आनन्द लेने के लिए अधिकांश बाशिंदे पार्कों में निकल आते हैं.
एक सुन्दर भद्र स्त्री, श्वेत-लाल चौड़े बोर्डर वाली साड़ी में रोज आकर सीमेंट की बनी छतरी के नीचे आकर अकेले बैठ जाती है. उसके पास एक बड़ा सा काला चमड़े का पर्स रहता है, जिसमें कुछ किताबें तथा स्वेटर बुनाई का सामान रहता है. वह अपने आप में व्यस्त दिखती है. बड़े शहरों में कौन किसका हमदर्द होता है, जो बिना बात किसी अनजान से परिचय करना चाहता हो? पर मेरे साथ ऐसा हुआ. मैं एक दिन उससे ही पहले वहाँ बैठ कर धूप सेक रहा था. वह आई मुझे बैठा देख कर थोड़ा मुस्कुराई फिर बोली “हम इधर बैठ सकता है?” “हाँ, हाँ, जरूर बैठिये.” मैंने कहा. उसके बोलने के लहजे व पहनावे पर उत्कंठित होकर मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए पूछा “आप बंगाली हैं?” “ना, हम आसाम से आया है, पर हमारा घर उत्तराखंड बन गया है.” उसने बताया. उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हो गया उसने जो बताया उसकी रामकहानी इस प्रकार है:
नाम- राधा. पति मि. राबर्ट रॉस उर्फ बॉब, जो अंगरेज है, गोहाटी में रह कर एक सरकारी प्रोजेक्ट में चीफ इंजीनियर था.राधा बेवाकी से बताती है कि वह उसकी घरेलू नौकरानी थी और बाद में बीवी हो गयी. बॉब का बाप मार्टिन रौस ब्रिटिश शासनकाल में जियोलोजिकल सर्वे में काम करने भारत आया था उसने कुमायूँ में अल्मोड़ा के पास जंगल में काफी जमीन घेर कर एक चाय का बगीचा लगवाया. वहीं घर भी बनाया. भारत की आजादी के वक्त उसका पूरा परिवार इंग्लैण्ड वापस चला गया, केवल बॉब यहाँ रह गया उसने भारतीय नागरिकता ले ली थी. वह बहुत हिम्मतवाला है. अब तो वह ८० वर्ष का बूढ़ा हो चुका है. उसने अपनी टी-एस्टेट को बढ़िया ढंग से संभाला है. राधा को बीवी बनाने के बाद उसे रौस-विला ले आया था. उनकी एक बेटी है जो एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर है, उसने अपने एक सहकर्मी प्रोफ़ेसर से सिविल मैरेज कर ली है. यह जोड़ा यहीं इंदिरापुरम के एक फ़्लैट में किराए पर रहता है राधा अल्मोड़ा की ठण्ड से बचने के लिए यहाँ बेटी-दामाद के पास आई हुई है.
अपनी इस लम्बी मजेदार कहानी को सुनाते हुए वह कई बार मुस्कुराई और अपने पति की आदतों को बताते हुए शरमाई भी. बॉब के बारे में वह बताती है कि उसने रौस ग्राम में चाय के बगीचे के साथ ही बहुत से फलों के पेड़ भी लगाए हैं. हालिस्ट्न व जर्सी नस्ल की गायें भी पाल रखी हैं, उसके पास तीन नौकर भी काम करते हैं, घर को आधुनिक बना रखा है, पहले गोबर-गैस प्लांट भी लगाया था पर अब सोलर एनर्जी से काम होता है.
बॉब हफ्ते में एक बार अपनी जीप से अल्मोड़ा जाता है और जरूरत का सामान लेकर आता है. राधा बताती है कि बॉब को सरकारी पेंशन मिलती है और उसके पूर्व संचय का रिटर्न भी मिलता रहता है.
बॉब कुत्ते पालने का बहुत शौक़ीन है, उसके पास दो जर्मन शेपर्ड, दो पहाड़ी भोटिया कुत्ते और पमरेनियन नस्ल के दो कुत्ते हैं. वह कुत्तों से बहुत प्यार करता है इसलिए रौस ग्राम छोड़ कर वह कहीं नहीं जा पाता है.
जब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
मैंने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दी, हालाँकि अब ज़माना बराबरी का आ गया है और आपस में प्यार हो तो पति व पत्नी, दोनों ही एक दूसरे का चाल-चलन सीखने का प्रयास करते हैं.
***
बुध ग्रह, सूर्य से सबसे निकट..
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
वाह एक खूबसूरत एहसास से भीगो दिया ...आपके इस लेख ने .....आभार
जवाब देंहटाएंपुरुषोत्तम जी पांडे संस्मरण शैली में लिखा यह आलेख बहुत जीवंत और रुचिसंपन्न रहा .आखिर तक जिज्ञासा भी बढाता रहा .खुशवंत जी की याद ज़रूर आई लेकिन उनका अंदाज़ अब स्तीइरोटाइप हो चुका था सालों पहले -वही घिसे पीते वाक्य वह बहुत बिंदास लग रहीं थीं .उनके गोरे उरोज ध्यान खींचते थे .वह मेरी दोस्त थीं .आपका अंदाज़ सुरुचि पूर्ण संस्कृति के तत्व समेटे हैं .
जवाब देंहटाएंजब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
बुद्ध सर्वशुद्ध ,सबसे उत्तप्त और रोशन .बधाई इस आलेख के लिए .आपकी टिपण्णी हमें निरंतर अच्छा करने के लिए प्रेरित करेगी .आभार आपका .
पुरुषोत्तम जी पांडे संस्मरण शैली में लिखा यह आलेख बहुत जीवंत और रुचिसंपन्न रहा .आखिर तक जिज्ञासा भी बढाता रहा .खुशवंत जी की याद ज़रूर आई लेकिन उनका अंदाज़ अब स्तीइरोटाइप हो चुका था सालों पहले -वही घिसे पीते वाक्य वह बहुत बिंदास लग रहीं थीं .उनके गोरे उरोज ध्यान खींचते थे .वह मेरी दोस्त थीं .आपका अंदाज़ सुरुचि पूर्ण संस्कृति के तत्व समेटे हैं .
जवाब देंहटाएंजब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
बुद्ध सर्वशुद्ध ,सबसे उत्तप्त और रोशन .बधाई इस आलेख के लिए .आपकी टिपण्णी हमें निरंतर अच्छा करने के लिए प्रेरित करेगी .आभार आपका .
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
पुरुषोत्तम जी पांडे संस्मरण शैली में लिखा यह आलेख बहुत जीवंत और रुचिसंपन्न रहा .आखिर तक जिज्ञासा भी बढाता रहा .खुशवंत जी की याद ज़रूर आई लेकिन उनका अंदाज़ अब स्तीइरोटाइप हो चुका था सालों पहले -वही घिसे पीते वाक्य वह बहुत बिंदास लग रहीं थीं .उनके गोरे उरोज ध्यान खींचते थे .वह मेरी दोस्त थीं .आपका अंदाज़ सुरुचि पूर्ण संस्कृति के तत्व समेटे हैं .
जवाब देंहटाएंजब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
बुद्ध सर्वशुद्ध ,सबसे उत्तप्त और रोशन .बधाई इस आलेख के लिए .आपकी टिपण्णी हमें निरंतर अच्छा करने के लिए प्रेरित करेगी .आभार आपका .
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
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भाई साहब स्पैम बोक्स चेक करें टिपण्णी खा रहा है सुसरा .
लो जी पुरुषोत्तम पांडे जी का स्पैम बोक्स भी तीन टिपण्णी खा गया .हम भी ढीठ पूरे हैं एक टिपण्णी और सही .
जवाब देंहटाएंबुद्ध ग्रह बढिया संस्मरण शैली में लिखी सुरुचि पूर्ण प्रस्तुति है .खुशवंत सिंह जी की याद ज़रूर आई लेकिन वह तो कब के स्टीरियोटाइप हो चलें हैं -एक ही अंदाज़ ,वह बहुत बिंदास लग रहीं थीं ,उनके सुर्ख ला ब्लाउज से उरोज उचक रहे थे .
पांडे जी एक दर्शन लेकर आये भारतीय महिला बुद्ध ग्रह की तरह होती है .बुद्ध सर्व-शुद्ध ,सबसे प्रदीप्त ,उत्तपत .एक बानगी देखिए -
जब बात बात में राधा से मैंने पूछा “राबर्ट का कल्चर, रहन सहन, खान-पान सब अलग होगा? क्या तुम उसके साथ खुश रहती हो?” उसने मुस्कुराते हुए बड़ी दार्शनिक बात कही, “बाबा, आप तो जानते ही हैं हम हिन्दुस्तानी औरतें ‘बुध ग्रह’ की तरह होती हैं, जिसका साथ मिलता है उसी की चाल पकड़ लेती हैं.”
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
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फूल फूल पर उड़ती तितली
जवाब देंहटाएंकहाँ है तेरा बसेरा?
तू नित्य लगाती फेरा
मन मोहा करती मेरा.
कली कली से पूछ के जाती
कान में भी कुछ कह जाती
कौन है प्रियतम तेरा?
कि कहाँ है उसका डेरा?
बड़े कोमल भाव लिए आई है यह रचना .तितली का मानवीयकरण है यहाँ पर भाई तितलियाँ तो अब शहर में दिखती ही नहीं ,स्वस्थ पारितंत्रों की नींव होतीं हैं तितलियाँ .अब तो शहर गंधाने लगें हैं ,तितलियों को डराने लगें हैं .कैसे उड़ें तितलियाँ ?पाल ही नाव को खाने लगी है .लडकियों को कोख भी डराने लगी है .
इसपैम बोक्स चेक करते रहना .
इसपैम बोक्स चेक करते रहना .
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