अंजीर (चित्र picturesbylinson.wordpress.com के सौजन्य से) |
देशान्तर के अनुसार इसकी अनेक प्रजातियां हैं. उत्तराखंड एवं नेपाल की पहाडियों तथा मैदानी क्षेत्र भाबर में अपने आप उगने वाला मोटी-चौड़ी पत्तियों वाला ‘तिमिल’, पेड़ों के तनों पर छोटी नाशपाती के आकार के फल के रूप में देखा जा सकते हैं. इसी तरह ‘बेडू’ भी है जो आकार में छोटा तथा रंग में हल्का बैंगनी होता है. इसकी तारीफ़ यह भी है कि यह बारहों महीने पकने वाला सदाबहार फल है. बाजार में ताजा पका हुआ अन्जीर का फल हल्की लालिमा लिए हुए रहता है. अन्जीर का फल सुखाया भी जाता है तथा उसकी बकायदा खेती की जाती है.
यूरोपीय देश, पुर्तगाल, इटली, ग्रीस से लेकर तुर्की, ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, मलेशिया तक की पूरी बेल्ट में अन्जीर पैदा होता है. यह दुनिया के सबसे पुराने फलों में से एक है. रोमवासी इसके पेड़ को सुख और समृद्धि का द्योतक मानते थे. पकने पर इसका फल अपने आप झड़ भी जाता है. बीजों को प्रसारित करने में चिड़ियों का भी बड़ा योगदान होता है. व्यवसायिक खेती करने के लिए इसकी पौध कलम द्वारा तैयार होती है. इस वनस्पति की एक विशेष बात यह है कि इसके पेड़ पर फूल नहीं आते हैं, सीधे फल ही आते हैं.
इसके फल में कोई विशेष गन्ध तो नहीं होती, पर पकने पर फल के अन्दर शहदनुमा जेली पैदा हो जाती है, जिसमें ६०% से ज्यादा मिठास होती है. इसमें विटामिन ए और बी के अलावा कैल्शियम व पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होते हैं. सूखे फलों को पानी में भिगोकर खाया जाता है. कब्ज के मरीजों के लिए यह रामबाण औषधि है. इसके अलावा अन्जीर खाने से भूख भी बढ़ती है. अस्थमा के रोगियों के बलगम को बाहर निकालने में भी यह कारगर होता है. डाईबिटीज, तथा मेनोपाज की स्थितियों में भी गुणकारी होता है. इसके नियमित सेवन से उच्च रक्तचाप की स्थिति से भी बचा जा सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इसके प्रयोग से कोई नुकसान यानि कि साइड एफैक्ट नहीं होता है और यह किसी भी मौसम में खाया जा सकता है.
इसके फल में कोई विशेष गन्ध तो नहीं होती, पर पकने पर फल के अन्दर शहदनुमा जेली पैदा हो जाती है, जिसमें ६०% से ज्यादा मिठास होती है. इसमें विटामिन ए और बी के अलावा कैल्शियम व पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होते हैं. सूखे फलों को पानी में भिगोकर खाया जाता है. कब्ज के मरीजों के लिए यह रामबाण औषधि है. इसके अलावा अन्जीर खाने से भूख भी बढ़ती है. अस्थमा के रोगियों के बलगम को बाहर निकालने में भी यह कारगर होता है. डाईबिटीज, तथा मेनोपाज की स्थितियों में भी गुणकारी होता है. इसके नियमित सेवन से उच्च रक्तचाप की स्थिति से भी बचा जा सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इसके प्रयोग से कोई नुकसान यानि कि साइड एफैक्ट नहीं होता है और यह किसी भी मौसम में खाया जा सकता है.
***
वाह!
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक आज दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ
तिमिल का पेड़ भूक्षरण भी रोकता है
जवाब देंहटाएंतिमिल के चौडे़ पत्ते पहाडो़ में भोजन
परोसने के काम में भी आते हैं
पंडित जी जब श्राद्ध कर्म करने
के लिये आते है तब भी तिमिल
के पत्ते मंगवाते हैं । एक पेड़ अपने
घर के पास मैने भी लगाया है
बगल में बेडू़ का भी लगाया है!
बहुत काम का होता है यह फल..
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...अपना आशीष यूँ ही बनाए रखे
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ ....और यहाँ मिली जानकारी सच में हम सब के लिए फायदेमंद हैं और सुशील जी की टिप्पणी ने बाकि की भी जानकारी से आवगत करवा दिया ...
bahumulya jankari... abhaar.
जवाब देंहटाएंअंजीर पर आपने बहु -बिध उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाई है .सूखे हुए अंजीर चार रात को एक ग्लास पानी में भिगोकर हमने खूब खाए हैं .कब्ज़ को तोड़ने में स्टूल को सोफ्ट करने और बल्क देने बौअल मूवमेंट में भी सहायक है अंजीर. हमने खुद आजमाया है .ब्लड प्रेशर कम करता है पोटेशियम की लोडिंग की वजह से .हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है पर्याप्त सुपाच्य कार्ब्स भी मुहैया करवाता है आपका आभार इस महत्वपूर्ण आलेख के लिए .लोक लुभाऊ चित्र के लिए भी .मुंबई में इसका जूस खूब मिलता है जूस की दूकानों पर ताज़ा ताज़ा .
जवाब देंहटाएंसोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त
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ram ram bhai
)
बधाई के पात्र है आप ।।।।।।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारियोः से परिपूर्ण ।।।।
शुभकामनाएं ।।।।।