उत्तरी कर्नाटक राज्य का कुछ हिस्सा पहले हैदराबाद निजाम के राज्य के अंतर्गत आता था. यहां आज भी मुस्लिम बाहुल्य है. यहाँ के मुसलामानों की मादरी जबान चाहे उर्दू ही हो, पर अब सभी कन्नड़ बोलते हैं, और जब उर्दू में संवाद करते हैं तो दखिनी बोली व तहजीब का पुट रहता है. कहते हैं कि नवाबों के जमाने में शिक्षा-कला के अलावा अन्य क्षेत्रों से सम्बंधित लोग भी लखनवी तहजीब लेकर यहाँ आ बसे थे. उनके तौर तरीकों की झलक भी यहाँ मिलती है. बहुतों के नाम में ‘साब’ विशेषण भी जुड़ा हुआ रहता है.
हुसैन साब एक पुरानी सीमेंट फैक्ट्री में बतौर मजदूर भर्ती हुए थे और बढ़ते बढ़ते फोरमैन हो गए थे. उनके घर में जब पहली बीवी ने पहला बच्चा जना तो नाम रखा गया, ‘बिस्मिल्ला साब’. बच्चे तो बच्चे होते हैं, जैसा बचपन में दिमाग में भर दो वैसी ही सोच रखते हैं. सुपरवाइजर्स कॉलोनी में उस वक्त हुसैन साब का अकेला मुस्लिम परिवार था. दूसरे मद्रासी, बंगाली, या मराठी लोगों के बच्चों के बीच में अपने साहबजादे को बेहतर बताने के लिए वे उसको खुद ही ‘नवाब साब’ संबोधित करने लगे और बच्चा भी अपने बात व्यवहार व पहनावे मे नवाबी ठसके के साथ रहता था.
यूं तो हुसैन साब के बाद में कुल मिलाकर १४ बच्चे ज़िंदा रहे पर नवाब साब उनके लिए कुछ खास था क्योंकि वे मानते थे कि उसी के भाग्य से वे फोरमैन के ओहदे तक पहुँच पाए हैं. उसे उन्होंने मदरसे में पढ़ने के लिए गुलबर्गा, उसके ननिहाल, भेज दिया, पर वह पढ़ाई से विरक्त रहा क्योंकि पढ़ाई में उसका मन बिलकुल नहीं लगता था. वहां थोड़ी बहुत उर्दू सीखी, लेकिन अपने नवाबी ठसके के रहते वह वापस अपने घर आ गया. यहाँ आकर वह रोडमास्टर हो गया. आलतू-फालतू आवारा लडकों की सोहबत में रहने लगा. अपने दिखावे की नवाबी यानि सलीकेदार कपड़ों के साथ टाई-हैट पहन कर वह अलग ही नजर आता था. अब्बा को कोई शिकायत नहीं थी कि वह पढ़ नहीं पाया, वे खुद भी थोड़ी सी उर्दू जानते थे, और उसी से काम चला लेते थे. वे अकसर साहबजादे के बारे में उसकी बालपन से ही उसके सामने भी एक जुमला कह दिया करते थे कि “मेरा साहबजादा तो आला नवाब है, अल्लाह ने गोश्त-रोटी का इन्तजाम कर रखा है. इसको नौकरी करने की कहाँ जुर्रत होगी.”
नवाब के सोलह साल के होते ही उसका निकाह फूफी की बेटी तस्लीमा से कर दिया गया. जो उम्र में उससे काफी बड़ी थी. उसकी बात यहाँ ना करते तो अच्छा होता क्योंकि वह ऐसी ही थी. इन्द्राइण के फल की तरह बेहद खूबसूरत. अब खूबसूरती की बात करें तो ज्यादा खूबसूरत होना भी बला ही है क्योंकि जिसने भी डाली बुरी नजर ही डाली. तस्लीमा का एक गुण यह भी था कि वह बहुत बेशरम थी. जब किसी ने उससे कहा कि “तू बहुत बदनाम हो रही है,” तो उसने हँसते हुए जवाब दिया, “बदनाम होने पर ही तो नाम होता है.”
ऐसी बीवी होने पर खाविंद को अवश्य तकलीफ़ होनी चाहिए थी, पर नहीं नवाब साब ने तो दिलफरियाद तस्लीमा को अपनी शान समझा, बकायदा बुर्का हटा कर अपने साथ सैर पर ले जाने लगे. कई बुजुर्गों के मुँह से जरूर निकला होगा, ‘लाहौल बिला कूबत’.
तब वहाँ फैक्ट्री का बड़ा मैनेजर एक गोरी चमड़ी वाला स्पैनिश इंजीनियर था, जिसका नाम था, क्रिस्तिन्सन. एक दिन जब उसकी नजर इस जोड़ी पर पड़ी तो देखता ही रह गया. नवाब साब के हाफ पैन्ट, टाई-टोप और हाथ में छड़ी और साथ में खिलखिलाती हुई बेपर्दा तस्लीमा थी. क्रिस्तिन्सन ने अपनी गाड़ी रुकवा कर उनसे पूछा, “हू आर यू, जेंटलमैन?”
नवाब साब को अंग्रेजी तो आती नहीं थी, पर वह समझ गया कि बड़ा मैनेजर क्या जानना चाहता है? वह बोला, “जनाब, मैं फोरमैन हुसैन साब का बेटा हूँ.”
अगले ही दिन क्रिस्तिन्सन ने हुसैन साब को अपने दफ्तर मे बुलाकर कहा “हम टूमारे सन को अपने बंगले का केयर टेकर बनाना मांगता है.” यह सुन कर हुसैन साब गदगद हो गए. सलाम बजाते हुए बोले, “सर, आपने नवाब साब को बहुत इज्जत बक्श दी है. बहुत बहुत शुक्रिया.”
हुसैन साब एक पुरानी सीमेंट फैक्ट्री में बतौर मजदूर भर्ती हुए थे और बढ़ते बढ़ते फोरमैन हो गए थे. उनके घर में जब पहली बीवी ने पहला बच्चा जना तो नाम रखा गया, ‘बिस्मिल्ला साब’. बच्चे तो बच्चे होते हैं, जैसा बचपन में दिमाग में भर दो वैसी ही सोच रखते हैं. सुपरवाइजर्स कॉलोनी में उस वक्त हुसैन साब का अकेला मुस्लिम परिवार था. दूसरे मद्रासी, बंगाली, या मराठी लोगों के बच्चों के बीच में अपने साहबजादे को बेहतर बताने के लिए वे उसको खुद ही ‘नवाब साब’ संबोधित करने लगे और बच्चा भी अपने बात व्यवहार व पहनावे मे नवाबी ठसके के साथ रहता था.
यूं तो हुसैन साब के बाद में कुल मिलाकर १४ बच्चे ज़िंदा रहे पर नवाब साब उनके लिए कुछ खास था क्योंकि वे मानते थे कि उसी के भाग्य से वे फोरमैन के ओहदे तक पहुँच पाए हैं. उसे उन्होंने मदरसे में पढ़ने के लिए गुलबर्गा, उसके ननिहाल, भेज दिया, पर वह पढ़ाई से विरक्त रहा क्योंकि पढ़ाई में उसका मन बिलकुल नहीं लगता था. वहां थोड़ी बहुत उर्दू सीखी, लेकिन अपने नवाबी ठसके के रहते वह वापस अपने घर आ गया. यहाँ आकर वह रोडमास्टर हो गया. आलतू-फालतू आवारा लडकों की सोहबत में रहने लगा. अपने दिखावे की नवाबी यानि सलीकेदार कपड़ों के साथ टाई-हैट पहन कर वह अलग ही नजर आता था. अब्बा को कोई शिकायत नहीं थी कि वह पढ़ नहीं पाया, वे खुद भी थोड़ी सी उर्दू जानते थे, और उसी से काम चला लेते थे. वे अकसर साहबजादे के बारे में उसकी बालपन से ही उसके सामने भी एक जुमला कह दिया करते थे कि “मेरा साहबजादा तो आला नवाब है, अल्लाह ने गोश्त-रोटी का इन्तजाम कर रखा है. इसको नौकरी करने की कहाँ जुर्रत होगी.”
नवाब के सोलह साल के होते ही उसका निकाह फूफी की बेटी तस्लीमा से कर दिया गया. जो उम्र में उससे काफी बड़ी थी. उसकी बात यहाँ ना करते तो अच्छा होता क्योंकि वह ऐसी ही थी. इन्द्राइण के फल की तरह बेहद खूबसूरत. अब खूबसूरती की बात करें तो ज्यादा खूबसूरत होना भी बला ही है क्योंकि जिसने भी डाली बुरी नजर ही डाली. तस्लीमा का एक गुण यह भी था कि वह बहुत बेशरम थी. जब किसी ने उससे कहा कि “तू बहुत बदनाम हो रही है,” तो उसने हँसते हुए जवाब दिया, “बदनाम होने पर ही तो नाम होता है.”
ऐसी बीवी होने पर खाविंद को अवश्य तकलीफ़ होनी चाहिए थी, पर नहीं नवाब साब ने तो दिलफरियाद तस्लीमा को अपनी शान समझा, बकायदा बुर्का हटा कर अपने साथ सैर पर ले जाने लगे. कई बुजुर्गों के मुँह से जरूर निकला होगा, ‘लाहौल बिला कूबत’.
तब वहाँ फैक्ट्री का बड़ा मैनेजर एक गोरी चमड़ी वाला स्पैनिश इंजीनियर था, जिसका नाम था, क्रिस्तिन्सन. एक दिन जब उसकी नजर इस जोड़ी पर पड़ी तो देखता ही रह गया. नवाब साब के हाफ पैन्ट, टाई-टोप और हाथ में छड़ी और साथ में खिलखिलाती हुई बेपर्दा तस्लीमा थी. क्रिस्तिन्सन ने अपनी गाड़ी रुकवा कर उनसे पूछा, “हू आर यू, जेंटलमैन?”
नवाब साब को अंग्रेजी तो आती नहीं थी, पर वह समझ गया कि बड़ा मैनेजर क्या जानना चाहता है? वह बोला, “जनाब, मैं फोरमैन हुसैन साब का बेटा हूँ.”
अगले ही दिन क्रिस्तिन्सन ने हुसैन साब को अपने दफ्तर मे बुलाकर कहा “हम टूमारे सन को अपने बंगले का केयर टेकर बनाना मांगता है.” यह सुन कर हुसैन साब गदगद हो गए. सलाम बजाते हुए बोले, “सर, आपने नवाब साब को बहुत इज्जत बक्श दी है. बहुत बहुत शुक्रिया.”
इस प्रकार छप्पर फाड़कर नौकरी मिल गयी. काम कुछ भी नहीं था, बस बड़े साहब के साथ अर्दली की तरह रहो, खूब खाओ, खूब पियो और पड़े रहो. तसलीमा को भी मन की मुराद मिल गयी. वह खुश थी. गली से कंपनी के क्वार्टर में और अब बड़े साहब के बंगले में आ गयी थी. बड़े साहब की मुंहलगी होने के कारण उसने अपने एक दर्जन भाई/रिश्तेदारों को फैक्ट्री मे रोजगार पर भी लगवा दिया. लोगों में बातें तो खूब बनती रही, पर ‘जब मियाँ राजी तो क्या करेगा काजी?’
चार वर्षों के बाद जब क्रिस्तिन्सन हिन्दुस्तान से वापस अपने देश जाने को हुआ तो उसने नवाब साब से पूछा, “मैन, टूम यूरोप आना मांगता?“
तो उसने हामी भर दी, अंजाम के बारे में सोचा भी नहीं क्योंकि तब पूरे यूरोप को लोग विलायत ही कहा करते थे. विलायत जाना जन्नत जाने का सा सपना होता था.
क्रिस्तिन्सन नवाब साब व तस्लीमा को मुम्बई (तब बम्बई था) ले आया. यहाँ आकर उसने नवाब के साथ एक धोखेबाजी की कि हवाई-यात्रा के सिर्फ दो टिकट, अपने व तस्लीमा के लिए खरीदे. नवाब साब को बताया गया कि उसके टिकट कटाने में कुछ गलती हो गयी है. उसकी बुकिंग अगली फ्लाईट से है. यूं बेवकूफ बना कर उसको एक जगह बिठा दिया. पर्याप्त रूपये देकर, तस्लीमा को साथ लेकर टा-टा करते हुए फुर्र हो गया.
नवाब साब को अपने लुटने का अहसास तो हो गया था, लेकिन परदेश में असहाय होकर रह गया. बाद में अपना लुटा-पिटा मुँह लेकर घर लौट आया.
यह कहानी तब की है, जब देश गुलाम था और नवाब साब जैसे अनेक लोग जानते सुनते हुए अपनी आन और आबरू गंवाकर भी गोरी चमड़ी वालों की गुलामी में अपना बड़प्पन समझते थे.
चार वर्षों के बाद जब क्रिस्तिन्सन हिन्दुस्तान से वापस अपने देश जाने को हुआ तो उसने नवाब साब से पूछा, “मैन, टूम यूरोप आना मांगता?“
तो उसने हामी भर दी, अंजाम के बारे में सोचा भी नहीं क्योंकि तब पूरे यूरोप को लोग विलायत ही कहा करते थे. विलायत जाना जन्नत जाने का सा सपना होता था.
क्रिस्तिन्सन नवाब साब व तस्लीमा को मुम्बई (तब बम्बई था) ले आया. यहाँ आकर उसने नवाब के साथ एक धोखेबाजी की कि हवाई-यात्रा के सिर्फ दो टिकट, अपने व तस्लीमा के लिए खरीदे. नवाब साब को बताया गया कि उसके टिकट कटाने में कुछ गलती हो गयी है. उसकी बुकिंग अगली फ्लाईट से है. यूं बेवकूफ बना कर उसको एक जगह बिठा दिया. पर्याप्त रूपये देकर, तस्लीमा को साथ लेकर टा-टा करते हुए फुर्र हो गया.
नवाब साब को अपने लुटने का अहसास तो हो गया था, लेकिन परदेश में असहाय होकर रह गया. बाद में अपना लुटा-पिटा मुँह लेकर घर लौट आया.
यह कहानी तब की है, जब देश गुलाम था और नवाब साब जैसे अनेक लोग जानते सुनते हुए अपनी आन और आबरू गंवाकर भी गोरी चमड़ी वालों की गुलामी में अपना बड़प्पन समझते थे.
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Ohh... Bechare nawaab saab...
जवाब देंहटाएंअंग्रेजों पर थोड़ा कम भरोसा किया होता तो यह हाल न होता।
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