मैं विग्रही हूँ.
मैं अशांति का बेटा हूँ
मेरी माँ ने अनिश्चित काल तक
मुझे अपने गर्भ में ढोया है.
असह्य प्रसव वेदना पाई है.
मैं उत्तेजित हूँ,
आक्रोशित हूँ,
अनियमित भी हो गया हूँ.
क्योंकि मेरी माँ को बहुविध दौरे पड़ने लगे हैं.
जिससे सर्वत्र भ्रांतियां पैदा हो रही हैं.
मेरी मुट्ठी कसी हुई है,
मेरी मुट्ठी तनी हुई है,
इसके अन्दर कोई सिक्का नहीं है,
लेकिन इंकलाब का बीज जरूर है.
माँ चाहती है कि
***
मैं अशांति का बेटा हूँ
मेरी माँ ने अनिश्चित काल तक
मुझे अपने गर्भ में ढोया है.
असह्य प्रसव वेदना पाई है.
मैं उत्तेजित हूँ,
आक्रोशित हूँ,
अनियमित भी हो गया हूँ.
क्योंकि मेरी माँ को बहुविध दौरे पड़ने लगे हैं.
जिससे सर्वत्र भ्रांतियां पैदा हो रही हैं.
मेरी मुट्ठी कसी हुई है,
मेरी मुट्ठी तनी हुई है,
इसके अन्दर कोई सिक्का नहीं है,
लेकिन इंकलाब का बीज जरूर है.
माँ चाहती है कि
शतरंजी विसात को उलट दिया जाये
शान्ति और विश्रान्ति की बात मत करो,
मुझे व्यवस्था बदलनी है.
इसमें क्या जायज है?
क्या नाजायज है?
उसकी सीख मत दो.
मैं क्रान्ति चाहता हूँ,
समानता, न्याय और सदाचार चाहता हूँ.
आन्दोलन मेरा धर्म है-
मुझको मेरा धर्म निभाने दो.
मैं विग्रही हूँ.
शान्ति और विश्रान्ति की बात मत करो,
मुझे व्यवस्था बदलनी है.
इसमें क्या जायज है?
क्या नाजायज है?
उसकी सीख मत दो.
मैं क्रान्ति चाहता हूँ,
समानता, न्याय और सदाचार चाहता हूँ.
आन्दोलन मेरा धर्म है-
मुझको मेरा धर्म निभाने दो.
मैं विग्रही हूँ.
***
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
जवाब देंहटाएंवर्तमान व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह का परचम उठाती है यह बंदिश ,आक्रोश को सुनिश्चित दिशा में ले जाती है .
कसमसाहट सी उठती है, इस अंधकार से निकल आने के लिये..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबार-बार 'मैं' न लिखे होते तब भी काम चल जाता।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंक्राँति चाह रहे हैं
बहुत से लोग यहाँ
हर किसी को चाहिये
क्राँति उसके अपने
घर के दरवाजे तक!