शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

नाम की महिमा

नाम से ही मनुष्य की पहचान होती है. होना तो यह चाहिए कि यथा नाम तथा गुण हो, पर ऐसा कम ही हो पाता है. हास्य कवि काका हाथरसी ने ऐसे विरोधाभाषी नाम-गुणों की फेहरिस्त बहुत मजेदार ढंग से अपनी कविता में उतारी है.

बहुत पुरानी बात नहीं है, हमारे एक साथी (जो अब इस दुनिया में नहीं हैं) लोगों के नाम बिगाड़ने में बहुत माहिर थे. इन्दिरा गाँधी को उन्दरा गाँधी, मोरार जी को मरोड़ जी, चरणसिंह को चूरंनसिंह, नरोत्तम को नराधम, धर्मानंद को धर्मान्ध आदि कह कर अपना मुँह बिगाड़ा करते थे. सुनने वालों का क्या, वे तो चुहल का मजा लेते थे.

नाम की महिमा पर मुझे स्व. महावीर प्रसाद शर्मा, एक सीनियर एडवोकेट याद आ रहे हैं, वे कोटा राजस्थान में रहते थे और वकालत किया करते थे. वे सच्चे मानों में सोशलिस्ट थे. गरीब मजदूरों के केस मुफ्त में भी लड़ते थे. उनको लोग ‘महावीरजी’ के नाम से ज्यादा जानते थे. तीन दशक पुरानी बात है. उनको किसी केस में दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में जाना था, उनके एक मुवक्किल की अगले ही दिन जयपुर के लेबर कोर्ट में भी तारीख थी. दिल्ली से रात १० बजे मुम्बई जाने वाली देहरादून एक्सप्रेस ट्रेन से वापसी थी. उन्होंने मुवक्किल को कहा कि सवाईमाधोपुर जंक्शन पर वह स्लीपर कोच के बाहर से आवाज देकर उनको जगाये, जहाँ ट्रेन सुबह लगभग ५ बजे पहुँचती है. सवाईमाधोपुर से जयपुर को तब मीटरगेज गाड़ी चला करती थी.

महावीर जी दिल्ली से वापसी में आराम से सो गए. वे जब गहरी नींद में थे तो उनको खिड़की पर से आवाजें आई ‘महावीरजी’ ‘महावीरजी’ वे हड़बड़ा कर उठे और अपने सामान+बैग सहित तुरन्त उतर गए. ट्रेन वहाँ से केवल ३ मिनट में आगे बढ़ गयी. प्लेटफॉर्म पर इक्के-दुक्के यात्री थे. वे परेशान से अजनबी जगह को पहचानने की कोशिश करते रहे, एक से उन्होंने पूछा “भाई, ये कौन सा स्टेशन है?” उसने बताया “महावीर जी है.”

इस रेल मार्ग पर सवाईमाधोपुर से पहले जैन तीर्थ ‘महावीर जी’ नाम का एक छोटा स्टेशन है. यह किस्सा मैंने खुद उनके मुखारविन्द से सुना था.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ||
    शुभकामनायें भाई जी ||

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  2. बहुत बढ़िया पोस्ट है भाई साहब .हमारे एक मित्र हैं शब्दों के बाज़ीगर .शब्द सफाई में माहिर .किसी को बे -वकूफ कहना हो तो कहेंगे -अरे साहब आपका क्या मुकाबला आप बड़े मूढ़ धन्य है

    (मूर्धन्य

    बोले तो विद्वान ,मूढ़ धन्य बोले तो मूर्ख ).किसी को काना कहना हो ,तो कहेंगे अरे साहब आप का क्या मुकाबला आप तो सबको एक ही दृष्टि से देखते हैं , डिप्युटी कमीश्नर हैं आप .कोहनी

    सम्प्रदाय

    के मुखिया कहतें हैं ये- भीड़ में कोहनी मारने छेड़खानी करने वालों को .अति वाली बात भी आपकी ठीक है हम हर काम थोक के भाव करते हैं चटनी खाने से लेकर पढ़ने लिखने तक .एक्सट्रीम पे

    चले

    आते हैं हम लोग .पर इम्तिहानी लाल कभी न रहे .सामान्य क्षात्र ही रहे .चस्का पढने का व्याख्याता बनने के बाद लगा .अखबार पढने शुरू किये तो दिन में आठ आठ नौ नौ .पहले अंग्रेजी का

    अखबार

    पढ़ते ही नहीं थे जब पढ़ना शुरू किया ,लगा ज़िन्दगी के बेशकीमती साल हमने यूं ही बिना अंग्रेजी रिसाला पढ़े जाया कर दिए .यकीन मानिए हमारे पास हर विषय का शब्द कोष है .अंग्रेजी अंग्रेजी

    हिंदी

    ,अंग्रेजी -अंग्रेजी ,मुहावरे दार केम्ब्रिज कोष ,एनकार्टा कन्साइस ,ऑक्सफोर्ड ,पुराना हुआ झट नवीन तर संस्करण खरीद लिया .ओस्क्फोर्ड से नीचे बात नहीं करते .अंग्रेजी -अंग्रेजी -हिदी कोष भी

    ओक्शफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस का है 2012 संस्करण ,राजपाल एंड संस ,सहानी ब्रदर्स ,विद्या पब्लिशर्स ,,एस चंद एंड कम्पनी लिमिटिड (फादर कामिल बुल्के ),ऑक्सफोर्ड मेडिकल डिक्शनरी

    ,ओक्सफोर्ड

    डिक्शनरी आफ कम्प्युटिंग ,टेबर्स साइक्लोपीदिक मेडिकल डिक्शनरी आदि .यकीन मानिए लिस्ट बहुत लम्बी है अभी और भी अंग्रेजी- अंग्रेजी शब्द कोष तथा पेङ्गुइन्स शब्द कोष हैं विषय वार

    .यहाँ बानगी भर पेश की है .

    सिर्फ अति ही अति है .स्वभावगत विलक्षणता कह लीजिए या सनक ,ओबसेशन ,...इसके बिना बात बनती नहीं ....

    आपकी सद्य टिपण्णी हमारे सिरहाने की निकटतर राजदान हैं रहेंगी .

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