सोमवार, 9 अप्रैल 2012

शुभ आशीषें (माँ के पत्र - 3)


                       तीसरा पत्र.

प्यारी बिटिया,
शत्-शत् आशीषे.
तुम्हारा पत्र मिला. मैं बहुत चिंतित थी क्योंकि इस बार तुमने बहुत विलम्ब से पत्र डाला. तुम परीक्षा की तैयारी कर रही होगी, लेकिन चौबीसों घन्टे पढाई में गुंथे रहने से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में हानि पहुँच सकती है. पढ़ने के समय पढ़ो और खेलने के समय खेलना भी चाहिए.

बहुत से बच्चे पूरे वर्ष भर पढाई को टालते रहते हैं और परीक्षा के समय रात-रात भर पढ़ने का कार्यक्रम बनाते हैं, जो बिलकुल ही अनुचित है. जो बच्चे अपना पाठ हमेशा तैयार करके रखते है, उन्हें परीक्षा के समय केवल सन्दर्भ देखने की जरूरत पडती है, शेष समय वे अपने चिन्तन के लिए ताजगी बनाए रखते हैं.

तुम्हारी सहपाठिन मार्था जेकब ने तुमसे जो अपने धर्म और जीवन दर्शन की बातें कही हैं और तुमसे तुम्हारे धर्म व जीवन दर्शन के बारे में प्रश्न पूछे है, वे बहुत गहरे विषय है, जिनका सही उत्तर देने के लिए सभी धर्मों के शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन होना चाहिए, तभी तुलना की जा सकती है. फिर भी तुम्हारी जिज्ञासा पर मैं थोड़ी बहुत जानकारी देना जरूरी समझती हूँ. कि धर्म शब्द का शाब्दिक अर्थ है धारण करना जिन नियमों और विश्वासों को हम धारण करते हैं या पालन करते हैं वही हमारा धर्म होता है.

आम बोलचाल में धर्म और अंग्रेजी के रिलीजन शब्द को एक ही अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है, लेकिन इसमें बड़ा मौलिक भेद है. हम, हमारा धर्म हिन्दू कहते हैं, परन्तु सच तो ये है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म बना ही नहीं है. हिन्दू शब्द, सिंधु के अपभ्रंश से बना है ये नाम कुछ हजार वर्ष पहले ही सामने आया, जब इस देश में पश्चिम की तरफ से नए कबीलों का आगमन हुआ. मूल मे वैदिक धर्म था जो सनातनी या प्राकृत था. वैदिक इसलिए था कि यहाँ के लोग वेदों के अनुसार आचरण करते थे. वेद सँसार के सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ हैं, ये तत्कालीन विद्वानों, ऋषियों-मुनियों के अनेक अनुभवों और व्यवस्थाओं के परिणाम हैं. इनमें जो ऐतिहासिक वृतांत है, वे लगभग ५००० वर्ष पुराने लगते हैं. उस काल में ये सभ्यता समृद्ध अवस्था में थी, वह अनेक थपेडों के वावजूद ज़िंदा रही और आध्यात्मिक विचारों को संजोते हुए प्रवाहित होती चली आ रही है. इसमें अनेक विशिष्टताएँ भी हैं, हालाँकि बहुत सी बातों का समावेश बाद में भी होता गया, विसगतियाँ भी पनपती रही. कुछ तो भौगोलिक कारणों से भी एक ही मत-मतान्तर में भेद पैदा हो गए. इतना विशाल देश जिसमें विरोधी रक्त-वर्ण, भाषा, पोशाक, सम्प्रदाय, कबीले होते हुए भी भावनात्मक रूप से एक सांस्कृतिक इकाई की तरह हिन्दू धर्म बना रहा. समय समय पर समाज सुधारकों का भी अविर्भाव होता रहा.

आशय यह है कि अन्य धर्म किसी घटना विशेष या व्यक्ति विशेष के अविर्भाव से जुड़े हुए हैं लेकिन हिन्दू धर्म एक प्राकृत धर्म है, जिस पर अनेक बार आक्रमण भी हुए, पर सनातनी विश्वास अमर है.

मैं किसी धर्म की आलोचना नहीं करती हूँ क्योंकि सभी धर्मों का सार होता है, असत्य पर सत्य की विजय, पर-सुख चिन्तन और ईश्वर में श्रद्धा. देश-काल-परिस्थितियों के अनुसार कई आधुनिक धर्मों का प्रादुर्भाव दो-ढाई हजार साल पहले ही हुआ है, चाहे वह बौद्ध, जैन, मुस्लिम या ईसाई धर्म हों. प्राय: अध्ययन करने से ये मालूम होता है कि व्यवहारिक नियमों को छोड़ कर मूलभूत सभी सिद्धांत वैदिक धर्म से ही प्राप्त किये गए हैं.

धर्म कोई भी हो, मनुष्य को बुराइयों से बचने और सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है. इसलिए धर्म के नाम पर लड़ने वाले लोग धार्मिक नहीं कहे जा सकते. एक समय था जब राजकीय क़ानून नहीं थे, तब धर्मों द्वारा ही समाज का नियंत्रण हुआ करता था.

जहां तक कर्म-कांड व पूजा के तरीकों का प्रश्न है, मैं बहुत विस्तार में ना जाकर मैं तुमको ये बताना चाहूंगी कि जिस काल में कोई केन्द्रीय शक्ति या प्रचार प्रसार के माध्यम नहीं थे, लोगों ने अपनी अपनी सोच व सुविधा के अनुसार परम्पराएं बना दी ओर कालान्तर में इनमें अन्धविश्वास व अनावश्यक आस्थाएं पैदा होती गयी. जैसे देवताओं के नाम पर नरबलि या पशुबलि आदि. इसी तरह सामाजिक व्यवस्थाओं में भी विकृतियां घुस आई जैसे सती प्रथा. इसीलिये इन विकृतियों के विरुद्ध  समय समय पर क्रांतियां हुई. गौतम बुद्ध और महावीर जी के द्वारा नए धर्म के उपदेश तत्कालीन धार्मिक क्रान्ति ही थी.

इन सभी घटनाओं से जुड़े इतिहास को पढ़ने से मालूम होता है कि कई हमलों व क्रांतियों के बावजूद हमारा सनातन या हिन्दू धर्म नष्ट नहीं हुआ जबकि रोम, यूनान, और नील घाटी की सभ्यताएं अपने आदि स्वरूपों के साथ लुप्त हो गयी.

तुम मार्था को बताना कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो महान दार्शनिक थे और हमारे देश के राष्टपति रह चुके हैं, उन्होंने हिंदुओं के जीवन दर्शन पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जो तुम्हारे पुस्तकालय में जरूर होंगी. उन्हें छुट्टियों में अवश्य पढ़ना.

एक प्रश्न किसी के मन में आ सकता है कि क्या धर्म के बिना काम नहीं चल सकता है? इसका उत्तर है जब धर्म नहीं होगा तो हम समाज के रूप में नहीं रह पायेंगे. हमारे रिश्ते, हमारा दैनिक रोजगार सभी धर्म के हिस्से होते हैं. विद्यार्थी का धर्म होता है, विद्याध्ययन, मनन, तदनुसार जीवन में अनुपालन करना. एक श्रमिक का धर्म है, श्रम व मेहनत से जीविकोपार्जन करना. इस प्रकार धर्म की व्याख्या बहुत बृहद है.

आज के पत्र का विषय बहुत गंभीर हो गया है. यह बड़ा जटिल भी है. तुमने पूछा था इसलिए स्पष्ट करना जरूरी हो गया था. अगर स्कूलों में धार्मिक शिक्षा सही ढंग से दी जाये तो बच्चों का दृष्टिकोण व्यापक हो सकता है. लेकिन अफ़सोस की बात तो ये है कि आज के राजनेता, धर्म माने साम्प्रदायिकता समझते हैं.

तुम नित्य प्रात: एवं सायं देव-स्तुति करना मत भूलना. श्रद्धा व भक्ति से आत्मबल और आत्म सन्तोष मिलता है. जीवन के लंबे रास्ते में जिसके पास आत्मबल और आत्मसन्तोष होता है उसे हमेशा सही दिशा मिल जाती है और वह कठिनाइयों में भी हिम्मत नहीं हारता है.

तुम अब शीघ्र घर लौट आओगी. तुम्हें लेने तुम्हारे पापा आयेंगे. अपने सभी पुराने कपड़े लेती आना, किसी के काम आयेंगे.
अपनी सभी सहेलियों को मेरी शुभकामनाएं देना.

तुम्हारी माँ
                                   ***

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि आज दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. धर्म संदेशयुक्त सीख....उम्दा शैली में ...

    सादर.

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  3. जीवन दर्शन, मार्ग दर्शन ,धर्म ,राजनीति ,परोपकार ,सभी कुछ छिपाए हैं ये पत्र.सुन्दरम मनोहरम.

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  4. excellent-such a concise,interesting & informative post about our Dharm...i am so pleased i clicked this site which i now follow!

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