गुरुवार, 1 सितंबर 2011

अग्निगर्भा

मैं दियासलाई हूँ  
 सूर्यपुत्री हूँ
  अग्निगर्भा हूँ.
   आदिकाल से-
    किसी न किसी रूप में
     इंसानों के काम आई हूँ.

मुझे खुशी होती है
 जब दीप जलाती हूँ,
  संतों के हाथों से
   यज्ञ प्रज्वलित करती हूँ.
    धूप-अगर सुलगाती हूँ,
     बच्चों के दीवाली-पटाखे,
      घर के चूल्हे-लालटेन,
       कूड़ा-चिता सभी जलाती हूँ.

मैं दु:खी होती हूँ
 जब कोई अज्ञानी
  घास के जंगल-
   बस्तियों के दंगल
    बदहवास जलाता है,
     या खुदकुशी में जलता है.

खुदाया !
 मैं तुझसे एक हाथ मांगती हूँ
  सिर्फ एक हाथ.
   ताकि गलत मौकों पर-
    इंसान का हाथ पकड़ सकूं.
               ***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें