बुधवार, 12 सितंबर 2012

डायरी के कुछ पन्ने

(१)
मैं आनंदी जायसवाल सवाई माधोपुर के बजरिया में रहती हूँ. अभी मैं कक्षा ९ में पढ़ रही हूँ. मेरे पिता श्री जगन्नाथ जायसवाल एक मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया हैं. वे एक स्नेहिल पिता भी हैं हमारे समाज में उनकी बहुत इज्जत है. मेरे दो छोटे भाई बहन भी हैं. चाचा चाची कई लोग हमारे खानदान में हैं, सभी पास पास रहते हैं. मेरी माँ बहुत सुन्दर है. उनकी छाया हम बच्चों पर भी खूब आयी है. सब लोग कहते हैं कि मैं भी अपनी माँ की तरह ही सुन्दर दीखती हूँ.

मेरी माँ अभी से मेरी शादी की चिंता करने लग गयी है, रिश्तेदारों से कहा करती है कि “कोई लड़का नजर में हो तो बताना.” मैं उनकी ऐसी बातों से असहज हो जाती हूँ क्योंकि मैं अपनी कक्षा में पढ़ने वाले एक लड़के रवि को बहुत चाहती हूँ. वह मेरा पक्का दोस्त है. हम दोनों प्राइमरी से ही साथ साथ पढ़ते आ रहे हैं. वह मेरा बहुत ख्याल रखता है. सच कहूँ हम एक दूसरे से बहुत प्यार करने लगे हैं. मेरी मुसीबत यह है कि मैं अपने दिल की बात किसी को बता भी नहीं सकती हूँ. रवि जाति से खटीक है इसलिए हमारी जातिगत मान्यताओं के अनुसार उससे मेरा रिश्ता होना नामुमकिन है. हम दोनों एक दूसरे को पत्र लिखकर बातें करते हैं. रवि बहुत प्यारी प्यारी भाषा में मुझे पत्र लिखता है,जिन्हें पढकर मैं अपनी रूमानी दुनियाँ में खो जाती हूँ, उसका गुलाबी अहसास मुझ पर वशीकरण की तरह छा गया है. मैं भी उसको लंबे लंबे पत्र लिखती हूँ, लेकिन एक तो मेरी हैंडराइटिंग उसके जैसी सुन्दर नहीं है और न मैं अपने मनोभावों को उसकी तरह खूबसूरत शब्दों में सँजो पाती हूँ.

(२)
इस साल मैं फेल हो गयी हूँ क्योंकि मेरा मन पढाई लिखाई में बिलकुल भी नहीं लगता है. मैं रवि के सपनों मे खोई रहती हूँ. रवि पास हो कर अगली कक्षा में चला गया है. मेरे पिता ने कहा कि “जब पढाई में मन नहीं है तो स्कूल मत जाओ.” इस प्रकार मेरा स्कूल जाना बन्द हो गया और रवि से मिलना-जुलना भी कम हो गया तथा पत्राचार भी नहीं के बराबर रह गया. रवि मेरे घरवालों से बहुत डरता है. आज वह कुछ बहाना बना कर आ ही गया और अपने लिखे हुए तीन पत्र एक साथ मुझे पकड़ा कर मुस्कुराते हुए चला गया. मैं उसे दूर तक साइकिल पर जाते हुए देखती रही. बाद में मैंने उसके पत्रों को पढ़ा उसने लिखा है कि "वह सभी सामाजिक बंधनों को तोड़ कर मुझे अपनाना चाहेगा, इसके लिए कुछ वर्षों तक इन्तजार करना होगा." उसने यह भी लिखा है कि वह फ़ौज में भर्ती होने जाने वाला है. उसने मेरी खूबसूरती पर बहुत सी मनमोहक बातें भी लिखी हैं. मेरी आँखों को वह मधुबनी आर्ट की नायिकाओं तथा रवि वर्मा की कलाकृतियों की स्त्री पात्रों की सर्वांग सुंदरता से तुलना करता है. मैं उसकी लिखी बातों से भाव विभोर हो रही हूँ. मन करता है कि उड़कर उसके पास चली जाऊं और खुले आकाश में पंछी जोड़ों की तरह अठखेलियाँ करूँ. पर ये संभव नहीं है.

(३)
मेरी शादी यहीं सवाई माधोपुर शहर में द्वारिकालाल पारेता के साथ हो गयी है. मेरे ससुर शराब के बड़े व्यवसायी हैं जिनका बड़ा नाम है. मेरे पिता ने मेरी शादी में यथासंभव स्त्रीधन दहेज में दिया. मैं मजबूर थी क्योंकि मैं जानती थी कि अगर मैं रवि से अपने प्रेम व उसकी जीवन संगिनी बनने की इच्छा माता-पिता को बताती तो मेरे साथ क्या वर्ताव होता. मैं कल्पना करके सिहर जाती हूँ. मेरे पति द्वारिकालाल एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हैं. वे स्वभाव से बहुत नीरस और अंतर्मुखी हैं. जब मैं अपने रवि से इनकी तुलना करती हूँ तो सौ में से मात्र दस नम्बर दे पाती हूँ. जबकि रवि की बात ही कुछ और है. मैं बहुत कोशिश करती हूँ कि अब उसको भूल जाऊं. मैंने शादी तय होते ही उसके सारे पत्र कूड़े में जला डाले थे. ससुराल में मुझे यों तो पूरा मान-सम्मान मिल रहा है, पर मैं अनुभव करती हूँ कि इस घर में सबका ध्यान केवल पैसे पर रहता है.

(४)
मेरी शादी के बाद करीब दो साल हो गए. आज रवि मुझसे आज बाजार में अचानक मिला. बहुत गबरू-हैंडसम लग रहा था, बोला, “तुमने मेरा इन्तजार नहीं किया,” मैं लाचार सी उसके चेहरे को देखती रही क्योंकि मेरे पास उसका कोई जवाब नहीं था. उसने फिर कहा, “मैं तुमसे आज भी उतना ही प्यार करता हूँ... मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा... मैं तुम्हें सीधे पंजाब ले जाऊंगा जहाँ मेरी नौकरी लग गयी है.” उसने एक सांस में बहुत सी बातें कह डाली. मेरी सासू को आता देख वह वहाँ से खिसक लिया. मेरे स्थिर-शांत मन रूपी तालाब में जैसे ज्वार-भाटा पैदा कर गया.

(५)
रवि का छोटा भाई राजू ना जाने कब से हमारे घर के बाहर बैठा मेरा इन्तजार कर रहा था. मुझे देखकर चुपके से पास आया और बोला, “भैया आज रात को देहरादून एक्सप्रेस से दिल्ली जायेंगे आप ९ बजे तैयार रहना, मैं मोटर-साइकिल से आपको स्टेशन छोड दूंगा.”.

मैं अपनी सुध-बुध खो बैठी हूँ. जाऊँ या ना जाऊँ की मानसिक उथल-पुथल में बेचैन रही. अंत में दिल की जीत हुई. जब प्यार किया तो डरना क्या!

(६)
मैं रवि के साथ भाग कर जलंधर आ गयी हूँ. रवि यहाँ एक कारखाने में काम करता है. मैं सब छोड़-छाड़ कर आई हूँ. वहाँ जरूर मेरी खोज खबर की जा रही होगी. मेरे ससुराल व पीहर् वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे. लेकिन मैं अभी अपने प्यार को पाकर बहुत खुश हूँ. मैंने खुद को रवि को समर्पित कर दिया है. मैं जिस ठाठ-बाट को छोड़ कर आई हूँ, उसके मुकाबले यहाँ बहुत कमियां हैं, पर मैं ठीक हूँ. राजू के पत्रों से मालूम हुआ कि वहाँ मेरी बहुत खोज हो रही है किसी को संदेह नहीं है कि मैं रवि के साथ हूँ.

(७)
रवि की पत्नी बने हुए मुझे चार साल हो गए हैं. मेरे दो बच्चे हैं. मैं अब एक ऐसे मुकाम पर पहुँच गयी हूँ जहाँ से लौटना अब मुमकिन नहीं है, पर मुझे अपने माता-पिता व भाई-बहन की बहुत याद आती है. वार-त्यौहार पर अपने आंसू पी लिया करती हूँ. रवि तो कई बार सवाईमाधोपुर आता जाता है, पर मेरा वहाँ लौटना अनेक दुश्वारियां पैदा करेगा. मैं अपने पिता का गुस्सा जानती हूँ, वे जरूर कहते होंगे, “आनंदी हमारे लिए मर गयी है." जब भी यह बात खुलेगी कि मैं खटीक जाति वाले के साथ भागी थी तो बिरादरी-रिश्तेदारी थू-थू करेंगे, जिसे मैं और मेरे ये मासूम बच्चे सहन नहीं कर पायेंगे.

(८)
मेरे दोनों बेटी-बेटा क्रमश: १५-१३ वर्ष के हो गए हैं. गृहस्थी की गाड़ी सामान्य निम्न मध्यवर्ग की तरह खींचती जा रही है. मैं अकेले में बैठ कर अपने दुस्साहस और भविष्य पर चिन्तन करती रहती हूँ कि ‘प्यार’ के जुनून में मैंने बहुत कुछ खोया है, विशेषकर माता-पिता का आशिर्वादपूर्ण हाथ और भाई-बहन का अप्रतिम प्यार, जिसके लिए मैं तरसती हूँ और तड़पती भी हूँ.


***

4 टिप्‍पणियां:

  1. पता नहीं कब क्या अच्छा लगे जिन्दगी को।

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  2. हम दोनों एक दुसरे(दूसरे ) को पत्र लिखकर बातें करते हैं. रवि बहुत प्यारी प्यारी भाषा में मुझे पत्र लिखता है-

    दूसरे

    मेरे पिता ने मेरी शादी मे(में ) यथासंभव स्त्रीधन

    में

    . गृहस्थी की गाड़ी सामान्य निम्न मध्यवर्ग की तरह खींचती(खिंचती) जा रही है. मैं अकेले में बैठ कर अपने दुस्साहस और भविष्य पर चिन्तन करती रहती हूँ कि ‘प्यार’ के जूनून (जुनून,जुनूँ) में मैंने बहुत कुछ खोया है, विशेषकर माता-पिता का आशिर्वादपूर्ण (आशीर्वाद )पूर्ण हाथ और भाई-बहन का अप्रतिम प्यार, जिसके लिए मैं तरसती हूँ और तड़पती भी हूँ.

    ज़माने में किसी को मुकम्मिल जहां नहीं मिलता ,किसी को ज़मीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता .

    नै ज़मीं की तलाश है पुरानी परम्पराओं ,रिवाजों को ....नै कसक है यह सहजीवन का मेला है "लिविंग टुगेदर" खेला है,सब किस्मत का रेला है ....चयन का यहाँ झमेला है .
    आप ब्लॉग पे तशरीफ़ लाइए मान बढ़ाया अपनी टिपण्णी से शुक्रिया ज़नाब का .शब्बा खैर (वहां रात ही होगी बजे होंगे रात के पौने दस ,यहाँ केंटन (मिशिगन )में दिन के सवा बारह बजें हैं .

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  4. बहुत खूब !
    अब हिट ऎंड ट्रायल में यही होता है
    इधर होता है पूरा या उधर होता है !

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