रविवार, 27 जनवरी 2013

ताऊ श्री

मेरे ताऊ, विश्वनाथ जी, को मुझसे बेहतर कौन जानता था? मैं बचपन से ही उनका मित्र और राजदार रहा हूँ. उम्र में इतना बड़ा अंतर होते हुए भी वे मुझसे हमउम्र दोस्त की तरह बात-व्यवहार किया करते थे.

होने को तो उनके दो सगे बेटे भी हैं और दोनों अलग अलग शहरों में अच्छी नौकरियों में हैं, और अपने बाल-बच्चों सहित ऐश कर रहे हैं. लेकिन ताऊ जी की स्थिति ‘बागवान’ फिल्म के हीरो की तरह ही रही. वे अपने बच्चों के साथ सामंजस्य नहीं कर पाए क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा खुद्दारी थी और किसी के अहसान के तले नहीं रहते थे.

ताऊ जी को सँभालती थी ताई जी, जो एक सम्पूर्ण भारतीय गृहणी थी या यों कह दूं कि लक्ष्मी थी. ताऊजी की हर छोटी छोटी जरूरतों का ख़याल रखती आई थी. वे एक प्रकार से ताई पर पूरी तरह आश्रित रहते थे.

ताऊ जी जंगलात के अकाउंट्स विभाग में नौकरी करते थे. वे कहा करते थे कि शादी के बाद हनीमून के लिए ताई जी को स्विटजरलैंड घुमाना चाहते थे, पर तब पासपोर्ट+वीजा का चक्कर हो गया था, जिसके बारे में उन्होंने पहले कभी सोचा ही नहीं था. इस तरह हसरत धरी की धरी रह गयी थी. वे कहा करते थे कि अब उनको सब बातें मालूम हैं, रूपये भी उनके पास जमा हैं इसलिए अपने रिटायरमेंट के बाद ताई जी को साथ लेकर जरूर स्विट्जरलैंड के नजारों का आनन्द लेने जायेंगे. उन्होंने दोनों के पासपोर्ट भी बनवा रखे हैं.

अभी जब ताऊ जी सर्विस में हैं, बच्चों के पास बारी बारी से छुट्टियों में घूम आते हैं. वे महसूस करते हैं कि सबको अपनी आजादी चाहिए. लंबे समय तक माँ-बाप को साथ में नहीं रखना चाहते हैं. मजबूरी में रहने पर मजा नहीं आता है. उससे तो अच्छा है कि अपने गाँव में रहें, जहाँ असुविधाओं के होते हुए भी दिन अच्छे कटते हैं. सब अपने लोग हैं. एक अघोषित भरोसा हमेशा रहता है. ताऊ जी को इस प्रकार से व्यवस्थित करने में ताई जी का बड़ा हाथ था. वे भी गाँव की खुली हवा व वातावरण छोड़कर रेवाड़ी या मुम्बई की बहुमंजिली इमारतों के छोटे छोटे कमरों में कैद होकर नहीं रहना चाहती थी. बड़ा बेटा कहा तो करता था, “जगह घर में नहीं, दिल में होती है. आप लोग अब यहीं हमारे पास ही आकर रहो, बच्चों की पढ़ाई की वजह से अब बार बार बरेली नहीं आ सकते हैं.” ताऊ जी कह देते थे अब इस बारे में रिटायरमेंट के बाद सोचा जाएगा.

ताऊ जी ने कभी बच्चों की कभी बुराई नहीं की क्योंकि वे जानते थे कि अब समय बदल गया है. जिम्मेदारी से सभी बचना चाहते हैं. इस बारे में बात करते हुए एक बार जरूर उनके मुँह से निकला था कि बेटे अगर अपने भी हैं तो बहुएँ तो पराए घर से आई हैं. फिर भी बहुओं के बारे में ताऊ जी या ताई जी हमेशा अच्छा ही बतातें हैं.

आखिरी वषों में ताई जी बहुत मुटा गयी थी. ताऊ जी उनसे कहा करते थे, “अगर यही हाल रहा तो हवाई जहाज की सीट छोटी पड़ जाने वाली है. स्विट्जरलैंड जाना है कि नहीं?”

सचमुच ताई जी स्विट्जरलैंड नहीं जा पाई. वे ताऊ जी के रिटायरमेंट से कुछ महीनों पहले ही हार्ट अटैक से चल बसी.

ताऊ जी अकेले रह गए. बच्चों के लाख कहने पर भी गाँव छोड़ने को तैयार नहीं हुए. कुछ समय तक तो वे मेरे परिवार के साथ जुड़े रहे, बाद में एक पहाड़ी लडके को फुल टाइम नौकर रख लिया. ताऊ जी की एक पहिये वाली गाड़ी फिर चल पडी, पर वो बात नहीं रही. नौकर एक समर्पित पत्नी की जगह नहीं ले सकता है. ऊपर से हमेशा यह डर भी बना रहता था कि वह चोरी करके भाग ना जाये.

मैं ताऊ जी के ही बताए रास्ते पर चलकर मार्केटिंग में एम.बी.ए. करके एक स्विस कम्पनी ‘होलसिम’ में नौकरी पा गया. ‘स्विस’ नाम सुनकर ताऊ जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि स्विटजरलैंड उनका ड्रीमलैंड था. उनको बेहद खुशी तब हुई जब मैं एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए कम्पनी की तरफ से पन्द्रह दिनों के लिए स्विट्जरलैंड, कम्पनी के हेडक्वाटर, गया. मैं जब वहाँ से वापस आया तो वे बहुत उत्साहित हो कर मेरे पास देहरादून आ धमके. उन्होंने वहाँ के बारे में अनेक बातें मुझसे पूछी. वे तमाम फोटो चित्र भी देखे जो मैं साथ में खींच कर लाया था. उनकी उत्कंठा को और शान्ति तब मिली जब मैंने अपने कंप्यूटर पर स्विट्जरलैंड बारे में इंटरनेट पर वहाँ का इतिहास+भूगोल व प्राकृतिक सौंदर्य वाले दृश्य उनको दिखाए. वे इतने अभिभूत हो गए कि बोले, “मैं अपना अगला जन्म स्विट्जरलैंड में ही लूंगा.”

ताऊ जी का पासपोर्ट बने दस साल हो गए थे इसलिए उसको रिन्यू करवाना आवश्यक था. ये सब काम मैंने आनलाइन, पासपोर्ट-सेवा वाली वेबसाईट द्वारा किया. उनको दस दिन बाद कार्यालय में उपस्थित होने की तारीख भी मिल गयी. सब हंसी-खुशी चल रहा था. ताऊ जी कहने लगे, “तुमको भी अपने साथ स्विट्जरलैंड ले जाऊंगा क्योंकि मुझे हवाई जहाज में सफर करने का व विदेश जाने का कोई पूर्व अनुभव नहीं है.”

“अभी तो वहां बहुत ठण्ड हो रही होगी, गर्मियों का वीजा लेंगे,” यह कहते हुए वे बहुत गहरी सोच में पड़ गए. मैंने उनसे पूछा, “ताऊ जी, किस सोच में पड़ गए हो?” वे बोले, “आज तेरी ताई होती तो कितना आनंदित होती?” यह कहते हुए उनकी आँखें नम हो आई.

वे वापस गाँव चले गए. एक महीने बाद मुझे मेरे पिता जी का फोन आया कि “तुम्हारे ताऊ अब नहीं रहे. वे सुबह बिस्तर पर मृत मिले.”

मैं स्तब्ध हूँ. किन शब्दों में, कैसे उनको श्रद्धांजलि दूं, समझ नहीं पा रहा हूँ. स्विट्जरलैंड के उनके सपने को अब इस कहानी द्वारा साकार करके इतिश्री कर रहा हूँ.
***

11 टिप्‍पणियां:

  1. विनम्र श्रद्धांजलि..
    मन की मन में रह न पाये,
    राह बिसारी अब न जाये।

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि!
    आपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. भावभीनी श्रद्धांजलि | बजरंगबली ताउजी की आत्मा को शांति प्रदान करें | पढ़कर बहुत दुःख हुआ |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  4. संयुक्त परिवार में ऐसा लगाव देखने को मिलता था की लोग अपने पुत्र से ज्यादा अपने भाईओ के बच्चो से पयार करते थे ,अब एकल परिवारों ने वे स्नेह बंधन न जाने कब के ढीले कर दिए भतीजे से लगाव को दर्शाती मार्मिक कथा ,बहुत बहुत साधुवाद

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  5. बहुत खूब भाई साहब .
    महाप्रयाण को चले गए ताऊ जी .यूं एक दिन सभी को जाना है पर वैसी खुद्दारी भी तो चाहिए और आपसा भतीजा .मार्मिक हार्दिक प्रसंग यादों के झुरमुट से कँवल सा खिलता .

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  6. यादें ही रह जाती हैं, श्रद्धांजलि!

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