मैं श्वेत कमल सा पुष्प अफीम का
दम्भी, गन्धी और नशीला,
तुम मेढ़ के उस पार, पीली सरसों,
नेह-स्नेह और शर्मीली सी.
बयार बसंती छूकर आती तुमको
मधुप, कीट-पतंगे दे जाते संदेशे.
मैं मजबूर कि पहरे हैं भारी मुझपर
चीरा जाऊंगा इसी अपराध में इक दिन
मैंने अनजाने में क्यों यों चाहा तुमको,
तुम तो नारी हो कोमल-प्यारी-मनभावन
काटी-पीसी जाओगी, कोल्हू में होगा मर्दन.
कि तुमने भी तो सैन किये थे अल्हड़पन में.
मैं कोई सर, तुम कोई जलधार नहीं
जो मिल पायें जाकर आगे किसी डगर
ये तो ना कोई बात नई है दस्तूर पुरातन
चाहना की भावना की, है जग दुश्मन.
***
दम्भी, गन्धी और नशीला,
तुम मेढ़ के उस पार, पीली सरसों,
नेह-स्नेह और शर्मीली सी.
बयार बसंती छूकर आती तुमको
मधुप, कीट-पतंगे दे जाते संदेशे.
मैं मजबूर कि पहरे हैं भारी मुझपर
चीरा जाऊंगा इसी अपराध में इक दिन
मैंने अनजाने में क्यों यों चाहा तुमको,
तुम तो नारी हो कोमल-प्यारी-मनभावन
काटी-पीसी जाओगी, कोल्हू में होगा मर्दन.
कि तुमने भी तो सैन किये थे अल्हड़पन में.
मैं कोई सर, तुम कोई जलधार नहीं
जो मिल पायें जाकर आगे किसी डगर
ये तो ना कोई बात नई है दस्तूर पुरातन
चाहना की भावना की, है जग दुश्मन.
***
उपमायें कल्पनाओं में डूब जाने को विवश करती हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर कल्पना, सुंदर उपमा
हटाएंआपकी टिपण्णी हमें प्रासंगिक बनाए रहती है ,ऊर्जित करती है .शुक्रिया आपका तहे दिल से .चर्चा मंच में हमें बिठाके आप हमारा मान बढाते हैं शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति के नाम एक शैर -मकतबे इश्क का दस्तूर निराला देखा ,उसको छुट्टी न मिली जिसने सबक याद किया .बहुत बढ़िया लिखा है -मैं फूल अफीम का तुम बसंत की पीली पीली सरसों ....
आपकी टिपण्णी हमें प्रासंगिक बनाए रहती है ,ऊर्जित करती है .शुक्रिया आपका तहे दिल से .
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति के नाम एक शैर -मकतबे इश्क का दस्तूर निराला देखा ,उसको छुट्टी न मिली जिसने सबक याद किया .बहुत बढ़िया लिखा है -मैं फूल अफीम का तुम बसंत की पीली पीली सरसों ....
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रयोग किये हैं आपने इस रचना में .रूपक तत्व का बेहतरीन समावेश .विश्लेषण और वर्रण दोनों तत्व लिए है रचना .कल भी इस पोस्ट पर टिपण्णी की थी .कृपया स्पेम से निकालें .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति के नाम एक शैर -मकतबे इश्क का दस्तूर निराला देखा ,उसको छुट्टी न मिली जिसने सबक याद किया .बहुत बढ़िया लिखा है .-मैं फूल अफीम का तुम बसंत की पीली पीली सरसों ....
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जवाब देंहटाएंसुन्दर उपमा -सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
सार्थक प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
waah ...bahut khub
जवाब देंहटाएं"मैं फूल अफीम का तुम बसंत की पीली पीली सरसों ...."
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .