जिस प्रकार लाखों करोड़ों वर्षों की विकास यात्रा करते हुए हम प्राणी लोग आज की स्थिति में पहुँचे हैं, उसी प्रकार पृथ्वी पर पाई जाने वाली तमाम वनस्पतियाँ भी विकास के प्राकृतिक दौर से गुजर कर आई हैं.
मकई अथवा मक्का से आज विश्व के दो तिहाई आबादी का भोजन बनता है. इसकी अनवरत विकास यात्रा के बारे में शोधकर्ताओं ने इसके आनुवंशिक यानि जेनेटिक अध्ययनों में पाया है कि ये मूल रूप से अन्य अनाजों की ही तरह एक जंगली ग्रासमी पौधे (घास) का फल/बीज है. मनुष्य ने इसकी खेती करना सीख लिया. इसकी प्रजातियों में देश-काल, खाद-मिट्टी के अनुसार स्वाद और दानों के रंगों में थोड़ी बहुत भिन्नता होती रही है. अब वैज्ञानिक तरीकों से इसकी हाईब्रिड किस्मों की फसल उगाई जाती है.
मकई बहुत ठन्डे इलाकों को छोड़कर सभी समशीतोष्ण प्रदेशों में उगाया जाता है. दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी पैदावार होती है. हमारे देश में मकई मुख्यत: वर्षा ऋतु शुरू होने पर बोई जाती है. बढ़िया बात ये है कि सिर्फ तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है. इसके पौधे में बढ़त तब होती है, जब रात और दिन का गरम तापमान एक सा रहता है. इसे खूब पानी चाहिए. मकई का पौधा ज्वार-बाजरे जैसे लम्बे पत्तों वाला चार से दस फुट ऊंचा हो सकता है. ये एकलिंगी पौधा होता है जिस पर नर-मादा दोनों ही पुष्प आते हैं. ऊपर जो बालडी निकलती है, वह नर पुष्पों का गुच्छा होता है और भुट्टे तने के बीच में पत्तों वाले जोड़ों पर निकलते हैं. जिनके सिरे पर पतले बालों के सामान बालियां निकलती हैं, जो मादा कोशिकाएं होती हैं. इन्ही से परागण होता है. ये बालियाँ बहुत संवेदनशील होती हैं. एक पौधे पर उसकी खुराक के आधार पर तीन चार भुट्टे आते हैं.
इतिहास बताता है कि सर्वप्रथम मध्य अमेरिका के मेक्सिको प्रदेश में लगभग दस हजार वर्षों से पहले से मकई की उपस्थिति थी. प्राचीन इन्का और माया सभ्यताओं के अवशेषों में भी मकई के नामोनिशान मिले हैं. ये तब भी मुख्य भोजन रहा होगा.
दुनिया में आज लगभग दो तिहाई आबादी का मुख्य भोजन मकई आधारित है, और सारी दुनिया में कुल जितना मक्का पैदा होता है उसका मात्र १.५% ही भारत में होता है. आदिवासी इलाकों में ये खूब उगाई जाती है. इसके पौधे से भुट्टा प्राप्त करने के अलावा जानवरों का चारा भी मिलता है. गाय-भैसें इसकी कुट्टी को बड़े चाव से खाते हैं. ये पोषक तत्वों से भरपूर होता है. सूखे पत्तों का कागज़/गत्ता भी बनाया जा सकता है.
पहले समय में मक्का को गरीबों का भोजन कहा जाता था, पर अब गरीब अमीर सभी इसके उत्पादों को अनेक प्रकार से उपयोग में लाते हैं. भुट्टों को आग में सेक कर स्वाद के साथ खाया जाता है. साबुत दानों को भून कर पॉपकॉर्न एवं कॉर्नफ्लेक्स बनता है. भुट्टों को नमक के पानी में उबाल कर भी खाया जाता है. मकई के आटे की रोटी, बिस्किट, कुरकुरे, दलिया, खिचड़ी, पिज्जा, केक आदि अनेक प्रकार के व्यंजन विश्व के विभिन्न देशों में वहाँ के भोजन की आदतों के अनुसार बनाये व खाए जाते हैं. बेबी-कॉर्न का सूप भी कुछ लोग पसन्द करते हैं. हमारे पंजाब में ‘मक्के दी रोटी और सरसों दा साग’ सर्वविदित स्वादिष्ट भोजन होता है.
मकई के बहुत से औद्योगिक उत्पाद भी बनाए जाते हैं जैसे ग्लूकोज, रेसिन, प्लास्टिक, शराब आदि. मक्के की खली से जानवरों के लिए पौष्टिक चारा व मुर्गियों के लिए दाना तैयार किया जाता है.
मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए मकई बहुत गुणकारी है. इसमें विटामिन ए और ई पाया जाता है, और लाइसीन नामक पाचक पदार्थ होता है. चूँकि ये मोटे अनाजों की श्रेणी में है, इसमें फाइबर बहुत होता है. यह आँतों में से वसा और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है, जो वहाँ जमी रहती हैं. हानिकारक कोलेस्ट्रोल को घटाता है. पिताश्मरी को मारता है. मूत्र-पथ के संक्रमण और सूजन को दूर करता है. कब्ज का निवारण करता है, और इसमें जो ग्लूटैनिक ऐसिड होता है, वह शरीर के ऊतकों की उम्र बढ़ाने में सहायक होता है.
इस प्रकार मकई हमारे लिए बहुत लाभकारी है. हाँ दांतों की हिफाजत करने के लिए सख्त दानों को चबाने से परहेज करना आवश्यक है.
मकई अथवा मक्का से आज विश्व के दो तिहाई आबादी का भोजन बनता है. इसकी अनवरत विकास यात्रा के बारे में शोधकर्ताओं ने इसके आनुवंशिक यानि जेनेटिक अध्ययनों में पाया है कि ये मूल रूप से अन्य अनाजों की ही तरह एक जंगली ग्रासमी पौधे (घास) का फल/बीज है. मनुष्य ने इसकी खेती करना सीख लिया. इसकी प्रजातियों में देश-काल, खाद-मिट्टी के अनुसार स्वाद और दानों के रंगों में थोड़ी बहुत भिन्नता होती रही है. अब वैज्ञानिक तरीकों से इसकी हाईब्रिड किस्मों की फसल उगाई जाती है.
मकई बहुत ठन्डे इलाकों को छोड़कर सभी समशीतोष्ण प्रदेशों में उगाया जाता है. दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी पैदावार होती है. हमारे देश में मकई मुख्यत: वर्षा ऋतु शुरू होने पर बोई जाती है. बढ़िया बात ये है कि सिर्फ तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है. इसके पौधे में बढ़त तब होती है, जब रात और दिन का गरम तापमान एक सा रहता है. इसे खूब पानी चाहिए. मकई का पौधा ज्वार-बाजरे जैसे लम्बे पत्तों वाला चार से दस फुट ऊंचा हो सकता है. ये एकलिंगी पौधा होता है जिस पर नर-मादा दोनों ही पुष्प आते हैं. ऊपर जो बालडी निकलती है, वह नर पुष्पों का गुच्छा होता है और भुट्टे तने के बीच में पत्तों वाले जोड़ों पर निकलते हैं. जिनके सिरे पर पतले बालों के सामान बालियां निकलती हैं, जो मादा कोशिकाएं होती हैं. इन्ही से परागण होता है. ये बालियाँ बहुत संवेदनशील होती हैं. एक पौधे पर उसकी खुराक के आधार पर तीन चार भुट्टे आते हैं.
इतिहास बताता है कि सर्वप्रथम मध्य अमेरिका के मेक्सिको प्रदेश में लगभग दस हजार वर्षों से पहले से मकई की उपस्थिति थी. प्राचीन इन्का और माया सभ्यताओं के अवशेषों में भी मकई के नामोनिशान मिले हैं. ये तब भी मुख्य भोजन रहा होगा.
दुनिया में आज लगभग दो तिहाई आबादी का मुख्य भोजन मकई आधारित है, और सारी दुनिया में कुल जितना मक्का पैदा होता है उसका मात्र १.५% ही भारत में होता है. आदिवासी इलाकों में ये खूब उगाई जाती है. इसके पौधे से भुट्टा प्राप्त करने के अलावा जानवरों का चारा भी मिलता है. गाय-भैसें इसकी कुट्टी को बड़े चाव से खाते हैं. ये पोषक तत्वों से भरपूर होता है. सूखे पत्तों का कागज़/गत्ता भी बनाया जा सकता है.
पहले समय में मक्का को गरीबों का भोजन कहा जाता था, पर अब गरीब अमीर सभी इसके उत्पादों को अनेक प्रकार से उपयोग में लाते हैं. भुट्टों को आग में सेक कर स्वाद के साथ खाया जाता है. साबुत दानों को भून कर पॉपकॉर्न एवं कॉर्नफ्लेक्स बनता है. भुट्टों को नमक के पानी में उबाल कर भी खाया जाता है. मकई के आटे की रोटी, बिस्किट, कुरकुरे, दलिया, खिचड़ी, पिज्जा, केक आदि अनेक प्रकार के व्यंजन विश्व के विभिन्न देशों में वहाँ के भोजन की आदतों के अनुसार बनाये व खाए जाते हैं. बेबी-कॉर्न का सूप भी कुछ लोग पसन्द करते हैं. हमारे पंजाब में ‘मक्के दी रोटी और सरसों दा साग’ सर्वविदित स्वादिष्ट भोजन होता है.
मकई के बहुत से औद्योगिक उत्पाद भी बनाए जाते हैं जैसे ग्लूकोज, रेसिन, प्लास्टिक, शराब आदि. मक्के की खली से जानवरों के लिए पौष्टिक चारा व मुर्गियों के लिए दाना तैयार किया जाता है.
मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए मकई बहुत गुणकारी है. इसमें विटामिन ए और ई पाया जाता है, और लाइसीन नामक पाचक पदार्थ होता है. चूँकि ये मोटे अनाजों की श्रेणी में है, इसमें फाइबर बहुत होता है. यह आँतों में से वसा और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है, जो वहाँ जमी रहती हैं. हानिकारक कोलेस्ट्रोल को घटाता है. पिताश्मरी को मारता है. मूत्र-पथ के संक्रमण और सूजन को दूर करता है. कब्ज का निवारण करता है, और इसमें जो ग्लूटैनिक ऐसिड होता है, वह शरीर के ऊतकों की उम्र बढ़ाने में सहायक होता है.
इस प्रकार मकई हमारे लिए बहुत लाभकारी है. हाँ दांतों की हिफाजत करने के लिए सख्त दानों को चबाने से परहेज करना आवश्यक है.
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हमें भी बहुत अच्छा लगता है मक्का।
जवाब देंहटाएंक्या बात बधाई!
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा जानकारी से परिपूर्ण आलेख
latest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही संग्रहणीय जानकारी। सुन्दर किशोर कोना।
जवाब देंहटाएंबेहद जानकारी पूर्ण अव्वल कोटि का आलेख। कोर्न सिरप भूल गए भाई साहब।जिस बिन पान केक न खाया जाय।
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जवाब देंहटाएं"कबीर के अद्वैत और आध्यात्म की व्याख्या में भी आपने मनमोहन, सोनिया और दामाद की छाया को बहुत खलिश के साथ लिखा है जिसकी इन गंभीर संदेशों में आवश्यकता नहीं लगती है. आपका लेखन कबीर के सिद्धांतों पर 'ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' के आधार पर शुद्ध 'लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल' जैसे वैराग्य भाव से ज्यादे अच्छा लगता है."
Virendra Kumar Sharma ने कहा…
पुरुषोत्तम पाण्डेय जी ,लिखते वक्त मेरे चेतन ने भी मुझे खड़काया था।मैं राष्ट्र हित में उसकी अन देखी कर गया।
शुक्रिया आपका इस त्रुटी की और ध्यान दिलाने का। अध्यात्म से राजनीति विलग रहेगी आइन्दा।
NATURAL SWEETENERS
जवाब देंहटाएंNatural sweeteners are created by refining foods found in nature such as sugar cane, fruit or corn. These sweeteners are also called caloric sweeteners because they provide calories which your body uses to produce energy. The most common of these sweeteners includes:
Table sugar (sucrose)
High fructose corn syrup
Honey
Cane juice
Fruit juice concentrate
सत्या नाशी का बी ज है यह कोर्न सिरप। जो फ्रक्तोज़ की लोडिंग है। यह हमारे लीवर को फेटि बना सकता है अधिक सेवन करते रहने पर। खुराक से पोषक तत्वों को तो नष्ट करता ही है शरीर से खनिज चूस लेता है फ्रक्तोज़। मीठे के रूप में स्क्रोज़ (सुक्रोज sucrose ))भला था लेकिन फ्रक्तोज़ सस्ता पड़ता है सेहत जाय भाड़ में।
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