अनादि काल से मनुष्यों के साथ उसके तीन अनचाहे दुश्मन भी चले आ रहे हैं. एक है मक्खी, दूसरा चूहा, और तीसरा है तिलचट्टा. आज यहाँ हम तिलचट्टे के बारे में ही चर्चा करेंगे.
तिलचट्टे हमारे घरों में खासकर रसोई घर में, बन्द नालियों में, गटरों में, या नमी वाली अंधेरी जगहों में निवास करते हैं. ये कीट निशाचर होते हैं. जब लाईट बन्द हो, और सुनसान वातावरण हो, तो ये बाहर निकल कर हमारे खाने-पीने की चीजों व बर्तनों को चाट कर गंदा कर जाते हैं. चूँकि इनके शरीर पर असंख्य बैक्टीरिया होते हैं, ये उनका संक्रमण कर जाते हैं.
तिलचट्टों के बारे में अध्ययन करने वालों ने अनेक मजेदार रहस्योद्घाटन किये हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: विश्व भर में तिलचट्टों की लगभग ४००० प्रजातियां पायी जाती हैं. बड़े तिलचट्टों के लाल पँख होते हैं, खतरा होने पर ये थोड़ी दूरी तक उड़ भी सकते हैं. खाने में ये सब कुछ खा लेते हैं, मिल्क प्रोडक्ट्स, मीठा पकवान इनको बहुत प्रिय हैं. ये बीयर के बोतलों को चाटने का शौक भी रखते हैं. इनकी घ्राण शक्ति तेज होती है. तिलचट्टों के सर पर दो एंटीना होते हैं जो उसे आसपास के खतरों से बाखबर रखते हैं. तिलचट्टे चालाक भी गजब के होते हैं. इनकी टांगों में सन्धियुक्त घुटने होते हैं जिनकी सहायता से ये तीन मील प्रतिघंटा की रफ़्तार से भाग भी सकते हैं. श्रीमती तिलचट्टा एक बार गर्भ धारण करती है तो जिंदगी भर अण्डे देती ही जाती है. अपने अण्डों को वह अपने शरीर से चिपका कर सेती भी है.
तिलचट्टे का दिमाग उसके शरीर में कई कैविटीज में रहता है. यदि सर काट दिया जाये तो भी वह एक हफ्ते से ज्यादा दिनों तक ज़िंदा रहता है. बाद में भूखे रहने के कारण मरता है. तिलचट्टों को छिपकलियाँ बड़े चाव से खा जाती हैं. इस दुनिया में तिलचट्टों की कुल संख्या कितनी होगी इसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
चूँकि तिलचट्टे बीमारियों की जड़ हैं इसलिए इनको मारने के लिए अनेक प्रकार के कीटनाशक जहरीली दवाएं बनाई गयी हैं, जो कि हमारे अपने स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं. इन दवओं से भी इन दैत्यों का सफाया नहीं हो पाता है.
सावधानी के तौर पर रसोईघर ऐसा बनाया जाना चाहिए, जहाँ इनके छिपने की कोई गुंजाइश ना हो. पानी की मोरियों में बारीक जाली लगानी चाहिए क्योंकि ये छोटे से छिद्र में से बाहर निकल सकते हैं. खाने-पीने के सामानों को अच्छी तरह बन्द रखना चाहिए ताकि ये उसे जूठा ना कर सकें.
तिलचट्टों से पीड़ित लोगों के हितार्थ मैं एक अचूक, अनुभूत और सस्ती दवा बताना चाहता हूँ:
एक चम्मच दही, एक चम्मच चीनी, एक चम्मच गेहूं का आटा और एक चम्मच बोरिक एसिड पाउडर (ये कैमिस्ट के पास मिल जाता है) का पेस्ट बनाकर रसोईघर के उन तमाम जगहों पर अंगुली से टपका लगा दें जहाँ तिलचट्टों के आने या घूमने की संभावना रहती है. इससे छोटे बड़े सभी तरह के तिलचट्टों से रसोईघर मुक्त रहेगा, जरूर आजमाइए.
तिलचट्टे हमारे घरों में खासकर रसोई घर में, बन्द नालियों में, गटरों में, या नमी वाली अंधेरी जगहों में निवास करते हैं. ये कीट निशाचर होते हैं. जब लाईट बन्द हो, और सुनसान वातावरण हो, तो ये बाहर निकल कर हमारे खाने-पीने की चीजों व बर्तनों को चाट कर गंदा कर जाते हैं. चूँकि इनके शरीर पर असंख्य बैक्टीरिया होते हैं, ये उनका संक्रमण कर जाते हैं.
तिलचट्टों के बारे में अध्ययन करने वालों ने अनेक मजेदार रहस्योद्घाटन किये हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: विश्व भर में तिलचट्टों की लगभग ४००० प्रजातियां पायी जाती हैं. बड़े तिलचट्टों के लाल पँख होते हैं, खतरा होने पर ये थोड़ी दूरी तक उड़ भी सकते हैं. खाने में ये सब कुछ खा लेते हैं, मिल्क प्रोडक्ट्स, मीठा पकवान इनको बहुत प्रिय हैं. ये बीयर के बोतलों को चाटने का शौक भी रखते हैं. इनकी घ्राण शक्ति तेज होती है. तिलचट्टों के सर पर दो एंटीना होते हैं जो उसे आसपास के खतरों से बाखबर रखते हैं. तिलचट्टे चालाक भी गजब के होते हैं. इनकी टांगों में सन्धियुक्त घुटने होते हैं जिनकी सहायता से ये तीन मील प्रतिघंटा की रफ़्तार से भाग भी सकते हैं. श्रीमती तिलचट्टा एक बार गर्भ धारण करती है तो जिंदगी भर अण्डे देती ही जाती है. अपने अण्डों को वह अपने शरीर से चिपका कर सेती भी है.
तिलचट्टे का दिमाग उसके शरीर में कई कैविटीज में रहता है. यदि सर काट दिया जाये तो भी वह एक हफ्ते से ज्यादा दिनों तक ज़िंदा रहता है. बाद में भूखे रहने के कारण मरता है. तिलचट्टों को छिपकलियाँ बड़े चाव से खा जाती हैं. इस दुनिया में तिलचट्टों की कुल संख्या कितनी होगी इसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
चूँकि तिलचट्टे बीमारियों की जड़ हैं इसलिए इनको मारने के लिए अनेक प्रकार के कीटनाशक जहरीली दवाएं बनाई गयी हैं, जो कि हमारे अपने स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं. इन दवओं से भी इन दैत्यों का सफाया नहीं हो पाता है.
सावधानी के तौर पर रसोईघर ऐसा बनाया जाना चाहिए, जहाँ इनके छिपने की कोई गुंजाइश ना हो. पानी की मोरियों में बारीक जाली लगानी चाहिए क्योंकि ये छोटे से छिद्र में से बाहर निकल सकते हैं. खाने-पीने के सामानों को अच्छी तरह बन्द रखना चाहिए ताकि ये उसे जूठा ना कर सकें.
तिलचट्टों से पीड़ित लोगों के हितार्थ मैं एक अचूक, अनुभूत और सस्ती दवा बताना चाहता हूँ:
एक चम्मच दही, एक चम्मच चीनी, एक चम्मच गेहूं का आटा और एक चम्मच बोरिक एसिड पाउडर (ये कैमिस्ट के पास मिल जाता है) का पेस्ट बनाकर रसोईघर के उन तमाम जगहों पर अंगुली से टपका लगा दें जहाँ तिलचट्टों के आने या घूमने की संभावना रहती है. इससे छोटे बड़े सभी तरह के तिलचट्टों से रसोईघर मुक्त रहेगा, जरूर आजमाइए.
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अच्छी जानकारी, आपकी सलाह भी अपनाते हैं..
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जवाब देंहटाएंअरे ! तिलचट्टा तो रावन के वंशधर हुए, शिर काटने पर भी ज़िंदा रहते है -अच्छी जानकारी
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
बढिया जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
वाह! बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंसार्थक जानकारी। कोक्रौंच को करेंट भी नहीं लगता है। ५०० करोड़ सालों से पृथ्वी पर मौजूद है।
जवाब देंहटाएंअगर तिलचट्टा काटले तो क्या करें
जवाब देंहटाएंअगर तिलचट्टा काटले तो क्या करें
जवाब देंहटाएंतिलचट्टा द्वारा काटे जाने की बात पहले सुनने में नही आयी है, पर ये संभव है। ऐसे मे डीटाल या किसी अन्य ऐन्टीसेप्टिक घोल से तुरन्त साफ कर लेना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंतिलचट्टा द्वारा काटे जाने की बात पहले सुनने में नही आयी है, पर ये संभव है। ऐसे मे डीटाल या किसी अन्य ऐन्टीसेप्टिक घोल से तुरन्त साफ कर लेना चाहिए ।
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