हमारे घरों में खासकर व्रत-उपवास के दिनों में साबूदाने की खीर, साबूदाने के पापड़, साबूदाने की खिचड़ी, यहाँ तक कि इसके मिक्चर में सेंधानमक डालकर स्वादिष्ट पकोड़े खाने का शौक बहुत से खाऊ लोग किया करते हैं. इसे शुद्ध फलाहार या शाकाहार के रूप में मान्यता मिली हुई है.
सच्चाई यह है कि साबूदाना एक कन्द कसावा (टेपीयोका) से बनाया जाता है, जो सागो ताड़ की तरह का पौधा होता है. मूलत: ये पूर्वी अफ्रीका में पाया जाता है. इसे पिछली सदी के चौथे दशक में तमिलनाडु व केरल में लाकर उगाया जाने लगा. और कुटीर उद्योग के रूप में साबूदाने का उत्पादन किया जाने लगा. वर्तमान में करीब एक हजार इकाइयां इस धन्धे में लगी हुई हैं.
कसावा के कंदों में भरपूर स्टार्च होता है. ये हल्के पारदर्शी भी होते हैं. इस कन्द से साबूदाना बनाने की प्रक्रिया बहुत अपवित्र होती है. क्योंकि कंदों को चार-पाँच महीनों तक सड़ाने के लिए कुंडों में डाला जाता है, स्वाभाविक रूप से इनमें मुर्दाखोर जैसे सफ़ेद लम्बे कीड़े हजारों की संख्या में पैदा हो जाते हैं. बाद में इस लुगदी को उन कीड़ों सहित पैरों से रौंदा जाता है. अब ये काम मशीनों से भी होने लग गया है. इस प्रकार ये गंदा पदार्थ छान लिया जाता है, और गरम नारियल के तेल में उसी प्रकार निकाला जाता है, जिस प्रकार बूंदी के लड्डुओं के लिए बूंदी छानी जाती है. फिर इस बूंदी को सुखाया जाता है. आकार व चमक के आधार पर अलग अलग पैकेट में पैक करके बाजार में भेजा जाता है.
इस लेख का उद्देश्य पाठकों को साबूदाने की असलियत बताने तक सीमित है. इसे खाने ना खाने का फैसला उन्हें खुद करना चाहिए, परन्तु इसे शाकाहारी पदार्थ मानना एक भ्रान्ति है.
सच्चाई यह है कि साबूदाना एक कन्द कसावा (टेपीयोका) से बनाया जाता है, जो सागो ताड़ की तरह का पौधा होता है. मूलत: ये पूर्वी अफ्रीका में पाया जाता है. इसे पिछली सदी के चौथे दशक में तमिलनाडु व केरल में लाकर उगाया जाने लगा. और कुटीर उद्योग के रूप में साबूदाने का उत्पादन किया जाने लगा. वर्तमान में करीब एक हजार इकाइयां इस धन्धे में लगी हुई हैं.
कसावा के कंदों में भरपूर स्टार्च होता है. ये हल्के पारदर्शी भी होते हैं. इस कन्द से साबूदाना बनाने की प्रक्रिया बहुत अपवित्र होती है. क्योंकि कंदों को चार-पाँच महीनों तक सड़ाने के लिए कुंडों में डाला जाता है, स्वाभाविक रूप से इनमें मुर्दाखोर जैसे सफ़ेद लम्बे कीड़े हजारों की संख्या में पैदा हो जाते हैं. बाद में इस लुगदी को उन कीड़ों सहित पैरों से रौंदा जाता है. अब ये काम मशीनों से भी होने लग गया है. इस प्रकार ये गंदा पदार्थ छान लिया जाता है, और गरम नारियल के तेल में उसी प्रकार निकाला जाता है, जिस प्रकार बूंदी के लड्डुओं के लिए बूंदी छानी जाती है. फिर इस बूंदी को सुखाया जाता है. आकार व चमक के आधार पर अलग अलग पैकेट में पैक करके बाजार में भेजा जाता है.
इस लेख का उद्देश्य पाठकों को साबूदाने की असलियत बताने तक सीमित है. इसे खाने ना खाने का फैसला उन्हें खुद करना चाहिए, परन्तु इसे शाकाहारी पदार्थ मानना एक भ्रान्ति है.
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रोचक जानकारी..वीडियो देख कर कई लोग खाना न बन्द कर दें। उसे अलग करने का कोई और उपाय।
जवाब देंहटाएंसाबूदाने पर मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी !!
जवाब देंहटाएंक्या आप जानते हैं साबूदाना कैसे बनता है
Yeh mere liye ek bahut hairane bharee jankaree hai.. Kyoki main non veg nahin khata or yeh jaan kar bada dukh ho raha hai kee lakhon log jo upwaas main saboodana khate hain unhe iskee asliyat nahin pata
जवाब देंहटाएंआँखें हिरनी सी खोलने वाली जानकारी।
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