रौशन बड़ा किस्मत वाला है. किस्मतवाले बच्चे ऐसे घरों व ऐसी जगहों में पैदा होते हैं, जहाँ उन्हें सारी नियामतें नसीब रहती हैं.
पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली के संधिस्थल दिल्ली गेट के बहुत नजदीक आसिफ अली रोड पर उसके अब्बू का एक शानदार घर है. घर के बहुत से खंड हैं. निचले हिस्से में दुकानों के शोरूम हैं. सड़क के उस पार रामलीला मैदान है, जिसमें उसने शैशव से ही अनेक लीलाएं देखी हैं. अकसर बड़ी बड़ी रैलियां इस मैदान में हुआ करती हैं. पिछले कुछ वर्षों में जो भी राजनैतिक रैली हुई, उसमें भ्रष्टाचार पर बहुत लम्बे चौड़े भाषण व नारेबाजी होती रही है, पर रौशन तो अभी बच्चा है, उसकी समझ में कुछ नहीं आता है.
उसने एक बार अब्बू से पूछा था, “ये भ्रष्टाचार क्या होता है?”
अब्बू ने बस ये कहा, “बेईमानी से रुपया कमाया जाये तो उसे भ्रष्टाचार कहते हैं.”
उसने फिर से पूछा था, “बेईमानी क्या होती है?” तो अब्बू ने जवाब में कहा, “अब जब तुम बड़े हो जाओगे तो सब समझ में आ जाएगा. अभी तुम अपनी पढ़ाई में ध्यान रखो.”
रौशन के अब्बू सी.पी.डब्लू.डी. में चीफ इंजीनियर हैं. उनको अपने बेटे का इस प्रकार प्रश्न करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा क्योंकि आज तमाम नौकरशाही और राजनीति करने वाले लोगों की बुनियाद में भ्रष्टाचार का ही गारा लगा हुआ है. वे खुद भी इससे बाहर नहीं हैं.
रौशन डी.पी.एस. में आठवीं कक्षा में पढ़ता है. उसे देश में चल रहे हल्ला-गुल्ला की थोड़ी समझ होने लग गयी है, पर वह तो सुविधाभोगी परिवार का वारिस है इसलिए अभाव क्या होते हैं वह बिलकुल नहीं जानता. तभी तो वह किस्मत वाला है.
दिल्ली देश का दिल है. दिल के बीचोंबीच वह रहता है. दिल्ली गेट कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. आसिफ अली रोड की शुरुआत पर स्वतन्त्रता सेनानी आसिफ अली की काँस्य मूर्ति लगी हुई है. इनकी पत्नी अरुणा आसिफ अली ने सन १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय मुम्बई के आजाद मैदान में जबरदस्ती से तिरंगा फहराया था. सामने लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल है. इसका पुराना नाम इर्विन अस्पताल था. १९७० के दशक में देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनैतिक आन्दोलन की अगुवाई करने वाले जयप्रकाश जी का नाम इसे दे दिया गया. दिल्ली का ये पूरा इलाका आजादी के बड़े सिपहसालारों की यादगारों से नामित है. पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त अस्पताल, मौलाना आजाद मेडीकल कॉलेज, बाबू जगजीवन का समता स्थल, चौधरी चरणसिंह का किसान घाट और आगे यमुना तट पर महात्मा गाँधी जी की स्मृति में राजघाट, जवाहर लाल नेहरू जी, लालबहादुर शास्त्री जी, इन्दिरा जी, व राजीव गांघी जी के स्मारक स्थल भी हैं. दिल्ली गेट के चारों दिशाओं में बोलता हुआ इतिहास है. ये सब रौशन के लिए बड़ी किस्मत की ही तो बात है. ऐसा हर किसी को कहाँ नसीब होता है.
एक दिन रौशन अपने अब्बू और उनके एक सहायक के साथ जामा मस्जिद के बाजारों की रौनक देखने निकला, जहाँ उसने चिड़िया बाजार में बहुत खूबसूरत एवँ प्यारी प्यारी चिडियाँ बिकती हुई देखी. उसे लाल कॉलर वाला एक हरा तोता बहुत पसन्द आ गया. उसका मन देखकर अब्बू ने वह मिट्ठू पिंजरे समेत उसके लिए खरीद दिया.
तोते को पहले से कुछ सिखाया गया था, वह जब से घर में आया एक वाक्य बार बार बोलने लगा, “मुझे आजादी चाहिए.” पहले पहले तो ये वाक्य ठीक से समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन दो दिनों के बाद साफ़ साफ़ सुनाई देने लगा, “मुझे आजादी चाहिए.”
रौशन को लगा कि पिंजड़े में बन्द होने से मिट्ठू बहुत दु:खी है इसलिए आजादी की गुहार लगा रहा है. वह सोचने लगा कि हमने भी तो अंग्रेजों से आजादी चाही थे, लम्बी लड़ाई लड़ी थी, बहुत से देशभक्त शहीद भी हुए थे. उसने अब्बू और अम्मी दोनों से कहा, “ये बेचारा कब से आजादी माँग रहा है. मेरा मन हो रहा है कि इसका पिंजड़ा खोल कर इसे आजाद कर दिया जाये.” बेटे की बात सुन कर अम्मी का मन भर आया. वह खुश हो गयी और अब्बू को भी बेटे की संवेदनशीलता अच्छे लगी. वे बोले, “ये तो बहुत अच्छी बात है.”
रोशन ने बाल्कनी में जाकर एक स्टूल पर चढ़ कर मिट्ठू के पिंजरे की खिड़की खोल दी. मिट्ठू को भी शायद इस प्रकार खुला हो जाने की आशा नहीं थी. वह पिंजरे को अपनी चोंच से पकड़ते हुए बाहर निकल आया और एक बार फिर से बोला, “मुझे आजादी चाहिए.”
मिट्ठू बाल्कनी में इधर उधर उड़ने की कोशिश करता रहा, पर उससे उड़ा नहीं जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उड़ना भूल गया था. इस बीच उसने अपना वाक्य कई बार जरूर दोहराया, “मुझे आजादी चाहिए.”
काफी देर तक यों फुदकते हुए वह घूमता रहा. घर से बाहर नहीं गया और फिर वापस अपने पिंजरे में घुस कर जोर से बोला, “मुझे आजादी चाहिए.”
मिट्ठू के इस व्यवहार से सब लोग हैरान थे. तब अब्बू ने कहा, “ये मिट्ठू ठीक हमारे आज के समाज की तरह बोली बोलता है. आजकल छोटे बड़े सभी लोग कहते हैं, "भ्रष्टाचार मिटाओ", लेकिन गौर करनेवाली बात यह है कि कोई भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है और अंग्रेजों से आज़ाद होने के बाद भी रूढ़ीवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, व निजी स्वार्थ के बंधनों में बंधे हुए है. यों सिर्फ नारे लगाने से समस्या का हल नहीं होगा.”
पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली के संधिस्थल दिल्ली गेट के बहुत नजदीक आसिफ अली रोड पर उसके अब्बू का एक शानदार घर है. घर के बहुत से खंड हैं. निचले हिस्से में दुकानों के शोरूम हैं. सड़क के उस पार रामलीला मैदान है, जिसमें उसने शैशव से ही अनेक लीलाएं देखी हैं. अकसर बड़ी बड़ी रैलियां इस मैदान में हुआ करती हैं. पिछले कुछ वर्षों में जो भी राजनैतिक रैली हुई, उसमें भ्रष्टाचार पर बहुत लम्बे चौड़े भाषण व नारेबाजी होती रही है, पर रौशन तो अभी बच्चा है, उसकी समझ में कुछ नहीं आता है.
उसने एक बार अब्बू से पूछा था, “ये भ्रष्टाचार क्या होता है?”
अब्बू ने बस ये कहा, “बेईमानी से रुपया कमाया जाये तो उसे भ्रष्टाचार कहते हैं.”
उसने फिर से पूछा था, “बेईमानी क्या होती है?” तो अब्बू ने जवाब में कहा, “अब जब तुम बड़े हो जाओगे तो सब समझ में आ जाएगा. अभी तुम अपनी पढ़ाई में ध्यान रखो.”
रौशन के अब्बू सी.पी.डब्लू.डी. में चीफ इंजीनियर हैं. उनको अपने बेटे का इस प्रकार प्रश्न करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा क्योंकि आज तमाम नौकरशाही और राजनीति करने वाले लोगों की बुनियाद में भ्रष्टाचार का ही गारा लगा हुआ है. वे खुद भी इससे बाहर नहीं हैं.
रौशन डी.पी.एस. में आठवीं कक्षा में पढ़ता है. उसे देश में चल रहे हल्ला-गुल्ला की थोड़ी समझ होने लग गयी है, पर वह तो सुविधाभोगी परिवार का वारिस है इसलिए अभाव क्या होते हैं वह बिलकुल नहीं जानता. तभी तो वह किस्मत वाला है.
दिल्ली देश का दिल है. दिल के बीचोंबीच वह रहता है. दिल्ली गेट कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. आसिफ अली रोड की शुरुआत पर स्वतन्त्रता सेनानी आसिफ अली की काँस्य मूर्ति लगी हुई है. इनकी पत्नी अरुणा आसिफ अली ने सन १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय मुम्बई के आजाद मैदान में जबरदस्ती से तिरंगा फहराया था. सामने लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल है. इसका पुराना नाम इर्विन अस्पताल था. १९७० के दशक में देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनैतिक आन्दोलन की अगुवाई करने वाले जयप्रकाश जी का नाम इसे दे दिया गया. दिल्ली का ये पूरा इलाका आजादी के बड़े सिपहसालारों की यादगारों से नामित है. पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त अस्पताल, मौलाना आजाद मेडीकल कॉलेज, बाबू जगजीवन का समता स्थल, चौधरी चरणसिंह का किसान घाट और आगे यमुना तट पर महात्मा गाँधी जी की स्मृति में राजघाट, जवाहर लाल नेहरू जी, लालबहादुर शास्त्री जी, इन्दिरा जी, व राजीव गांघी जी के स्मारक स्थल भी हैं. दिल्ली गेट के चारों दिशाओं में बोलता हुआ इतिहास है. ये सब रौशन के लिए बड़ी किस्मत की ही तो बात है. ऐसा हर किसी को कहाँ नसीब होता है.
एक दिन रौशन अपने अब्बू और उनके एक सहायक के साथ जामा मस्जिद के बाजारों की रौनक देखने निकला, जहाँ उसने चिड़िया बाजार में बहुत खूबसूरत एवँ प्यारी प्यारी चिडियाँ बिकती हुई देखी. उसे लाल कॉलर वाला एक हरा तोता बहुत पसन्द आ गया. उसका मन देखकर अब्बू ने वह मिट्ठू पिंजरे समेत उसके लिए खरीद दिया.
तोते को पहले से कुछ सिखाया गया था, वह जब से घर में आया एक वाक्य बार बार बोलने लगा, “मुझे आजादी चाहिए.” पहले पहले तो ये वाक्य ठीक से समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन दो दिनों के बाद साफ़ साफ़ सुनाई देने लगा, “मुझे आजादी चाहिए.”
रौशन को लगा कि पिंजड़े में बन्द होने से मिट्ठू बहुत दु:खी है इसलिए आजादी की गुहार लगा रहा है. वह सोचने लगा कि हमने भी तो अंग्रेजों से आजादी चाही थे, लम्बी लड़ाई लड़ी थी, बहुत से देशभक्त शहीद भी हुए थे. उसने अब्बू और अम्मी दोनों से कहा, “ये बेचारा कब से आजादी माँग रहा है. मेरा मन हो रहा है कि इसका पिंजड़ा खोल कर इसे आजाद कर दिया जाये.” बेटे की बात सुन कर अम्मी का मन भर आया. वह खुश हो गयी और अब्बू को भी बेटे की संवेदनशीलता अच्छे लगी. वे बोले, “ये तो बहुत अच्छी बात है.”
रोशन ने बाल्कनी में जाकर एक स्टूल पर चढ़ कर मिट्ठू के पिंजरे की खिड़की खोल दी. मिट्ठू को भी शायद इस प्रकार खुला हो जाने की आशा नहीं थी. वह पिंजरे को अपनी चोंच से पकड़ते हुए बाहर निकल आया और एक बार फिर से बोला, “मुझे आजादी चाहिए.”
मिट्ठू बाल्कनी में इधर उधर उड़ने की कोशिश करता रहा, पर उससे उड़ा नहीं जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उड़ना भूल गया था. इस बीच उसने अपना वाक्य कई बार जरूर दोहराया, “मुझे आजादी चाहिए.”
काफी देर तक यों फुदकते हुए वह घूमता रहा. घर से बाहर नहीं गया और फिर वापस अपने पिंजरे में घुस कर जोर से बोला, “मुझे आजादी चाहिए.”
मिट्ठू के इस व्यवहार से सब लोग हैरान थे. तब अब्बू ने कहा, “ये मिट्ठू ठीक हमारे आज के समाज की तरह बोली बोलता है. आजकल छोटे बड़े सभी लोग कहते हैं, "भ्रष्टाचार मिटाओ", लेकिन गौर करनेवाली बात यह है कि कोई भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है और अंग्रेजों से आज़ाद होने के बाद भी रूढ़ीवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, व निजी स्वार्थ के बंधनों में बंधे हुए है. यों सिर्फ नारे लगाने से समस्या का हल नहीं होगा.”
रौशन ने फिर से पिंजरा बन्द कर दिया. मिट्ठू अभी भी आजादी माँग रहा है.
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कुछ और बढ़ो, कुछ आप गढ़ो
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमिट्ठू अभी भी आजादी माँग रहा है..... सुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें.
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