रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग-पातालरहीम खानखाना का यह दोहा कई सदर्भों में सटीक बैठता है. मनुष्यों की पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं तथा पाँच ही ज्ञानेन्द्रियाँ. पाँचों ज्ञानेन्द्रियों में रस-रसना वाली जिह्वा अनूठी है. इसका कार्यक्षेत्र भी बहुत बड़ा है. जिह्वा ना हो तो बाकी सब बेकार होता है.
आपहु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल.
ऐनेटमी के हिसाब से जिह्वा के कई केन्द्र हैं, जो सीधे सीधे दिमाग से जुड़े हुए हैं. खट्टा, मीठा, नमकीन, कसैला, कडुवा आदि नौ रसों की पहचान यही करते हैं तदनुसार मुँह मे लार पैदा होती है. जिह्वा बिना हड्डी वाला रबर सा नाजुक यंत्र है जो मनचाहा पलटता है और भोजन को अन्दर बाहर करता है. इसके नीचे छोटे छोटे गह्वर हैं जो सीधे लीवर से जुड़े होते हैं, यही नहीं इसका एक रास्ता सीधे हृदय में भी खुलता है. हृदय रोगियों को फौरन राहत देने, रक्तवाहनियों का संकोचन दूर करने के लिए एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में 'सॉर्विट्रेट’ की गोली जीभ के नीचे रखने को कहा जाता है, जो कुछ ही सेकेण्ड में अपना असर दिखलाती है.
डॉक्टर, वैद्य और हकीम जिह्वा देखकर अनुमान लगा लेते हैं कि मरीज के पेट अथवा बुखार का क्या हाल है? सफ़ेद, मोटी या मैल जमी हुई जीभ अन्दर का सारा हाल बयान कर देती है. जीभ को ठंडा व गरम पदार्थ को सहने की गजब की क्षमता रहती है. कभी कभी पेट की खराबी से इसमें छाले उभर आते हैं, डॉक्टर पेट की सफाई व विटामिन ‘बी’ की कमी बताते हैं.
दांतों के मजबूत किले में कैद रहने वाली जिह्वा अपने को स्वयं सुरक्षित रखती है, मुँह के अन्दर के घाव भरने के लिए लार में प्रतिरोधात्मक क्षमता भी रहती है, पर जो लोग दांत व मसूढों की कायदे से सफाई नहीं करते हैं, वे अपनी जिह्वा को गन्दगी में रहने को मजबूर करते हैं. जिह्वा भी उनसे बदला लेने में देर नहीं करती है, उस गन्दगी को आमाशय में धकेल देती है. फलत: कई तरह के अंदरूनी रोग होने लगते हैं.
जिह्वा रस-रसना को लालायित रहती है. कोई भी खुशबूदार भोजन या रसीली खाद्य वास्तु सामने हो तो मुँह में पानी आ जाता है, यह जिह्वा का ही कमाल होता है. जिह्वा के कार्यपालन में एक अतिरिक्त अहम इन्द्रिय का भी योगदान होता है, इसे ग्यारहवीं अथवा उभय इन्द्रिय भी कहा जाता है, वह है ‘मन’. मन अगर असहयोगी हो तो जिह्वा अपना धर्म छोड़ देती है. पराशक्ति द्वारा सभी जीवों को जिह्वा से नवाजा गया है. कुत्ता, ऊँट, मेंढक आदि कई प्राणियों की जीभ बहुत लम्बी पायी जाती है. साँपों में तो जिह्वा श्रवण यंत्र का भी काम करती है. मनुष्यों के लिए जीभ के साथ ही वाक् यंत्र की भी संरचना की गयी है इसलिये हम अपनी आवाज को कई तरह से निकाल सकते हैं. कुछ अन्य जीवों को भी श्वर यंत्र दिये गए हैं, पर वे हमारी तरह बोल नहीं पाते हैं क्योंकि उनकी जिह्वा हमारी तरह काम नहीं करती है. तोते व उल्लू भी भिन्न भिन्न आवाजें निकाला करते हैं. पौराणिक गाथाओं में जानवरों को मनुष्य की बोली में बोलना बताया गया है, जो कोरी गप्प है.
जो लोग अपनी जिह्वा पर संयम नहीं रखते हैं, उनको रहीम कवि के सत्य कथन के अनुसार अपमान झेलना पड़ता है. मीठा बोलो, सत्य बोलो तो प्यार व सम्मान मिलता है. गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है:
डॉक्टर, वैद्य और हकीम जिह्वा देखकर अनुमान लगा लेते हैं कि मरीज के पेट अथवा बुखार का क्या हाल है? सफ़ेद, मोटी या मैल जमी हुई जीभ अन्दर का सारा हाल बयान कर देती है. जीभ को ठंडा व गरम पदार्थ को सहने की गजब की क्षमता रहती है. कभी कभी पेट की खराबी से इसमें छाले उभर आते हैं, डॉक्टर पेट की सफाई व विटामिन ‘बी’ की कमी बताते हैं.
दांतों के मजबूत किले में कैद रहने वाली जिह्वा अपने को स्वयं सुरक्षित रखती है, मुँह के अन्दर के घाव भरने के लिए लार में प्रतिरोधात्मक क्षमता भी रहती है, पर जो लोग दांत व मसूढों की कायदे से सफाई नहीं करते हैं, वे अपनी जिह्वा को गन्दगी में रहने को मजबूर करते हैं. जिह्वा भी उनसे बदला लेने में देर नहीं करती है, उस गन्दगी को आमाशय में धकेल देती है. फलत: कई तरह के अंदरूनी रोग होने लगते हैं.
जिह्वा रस-रसना को लालायित रहती है. कोई भी खुशबूदार भोजन या रसीली खाद्य वास्तु सामने हो तो मुँह में पानी आ जाता है, यह जिह्वा का ही कमाल होता है. जिह्वा के कार्यपालन में एक अतिरिक्त अहम इन्द्रिय का भी योगदान होता है, इसे ग्यारहवीं अथवा उभय इन्द्रिय भी कहा जाता है, वह है ‘मन’. मन अगर असहयोगी हो तो जिह्वा अपना धर्म छोड़ देती है. पराशक्ति द्वारा सभी जीवों को जिह्वा से नवाजा गया है. कुत्ता, ऊँट, मेंढक आदि कई प्राणियों की जीभ बहुत लम्बी पायी जाती है. साँपों में तो जिह्वा श्रवण यंत्र का भी काम करती है. मनुष्यों के लिए जीभ के साथ ही वाक् यंत्र की भी संरचना की गयी है इसलिये हम अपनी आवाज को कई तरह से निकाल सकते हैं. कुछ अन्य जीवों को भी श्वर यंत्र दिये गए हैं, पर वे हमारी तरह बोल नहीं पाते हैं क्योंकि उनकी जिह्वा हमारी तरह काम नहीं करती है. तोते व उल्लू भी भिन्न भिन्न आवाजें निकाला करते हैं. पौराणिक गाथाओं में जानवरों को मनुष्य की बोली में बोलना बताया गया है, जो कोरी गप्प है.
जो लोग अपनी जिह्वा पर संयम नहीं रखते हैं, उनको रहीम कवि के सत्य कथन के अनुसार अपमान झेलना पड़ता है. मीठा बोलो, सत्य बोलो तो प्यार व सम्मान मिलता है. गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है:
कागा का को धन हरे कोयल का को देत,मीठे वचन बोलने के लिए कोई अतिरिक्त कीमत नहीं चुकानी पडती है, लेकिन मीठे बोल बोलने के अनेक लाभ मिलते हैं. जो लोग नित्य मीठे व मधुर बोल बोलते हैं वे खुशहाल और सर्वप्रिय रहते हैं. इसलिए नीति उपदेशों में कहा गया है:
तुलसी मीठे वचन से जग अपनों कर लेत.
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय,गौर करने योग्य एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सँसार में जितने भी झगड़े-लफड़े, युद्ध-लड़ाई, मार-काट, बँटवारे, कडुवाहट पैदा होती हैं सब के पीछे मनुष्यों की वाणी ही प्रमुख कारण होती है. यह तो रही बोल वचन की बातें, लेकिन शरीर के पोषण में जिह्वा की जो जिम्मेदारी है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है. भोजन भट्ट या पेटू लोग अथवा नशेड़ी लोग जिह्वा का सम्मान नहीं करते हैं, नतीजा ये होता है कि शरीर के दूसरे अवयव असहयोग करने लगते हैं और शरीर रोगी हो जाता है. जो लोग जिह्वा का सम्मान करना जानते हैं अर्थात जिनको अपनी जिह्वा पर संयम होता है वे स्वस्थ रहते हैं तथा सुखी रहते हैं.
औरन को शीतल करे, आपहूँ शीतल होय.
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जवाब देंहटाएंकहते हैं न जिह्वा तो बोलकर अन्दर चली जाती है पर सर पिटवा देती है --------यह कहावत याद आ गई आपका ये आलेख पढ़कर ---बहुत बढ़िया प्रभावशाली आलेख बधाई आपको
जवाब देंहटाएंजीभ हर तरह के स्वाद देती हैं, चख कर भी, बोल कर भी।
जवाब देंहटाएंसटीक आलेख ...'जिह्वा' पर कंट्रोल होना ही चाहिए.
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