वर्जना का शाब्दिक अर्थ है ‘मनाही’ अथवा ‘रोक-टोक’. समाज शास्त्र में वर्जनाहीन समाज का मतलब स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में मान्यताओं की सीमाओं की छूट से लिया जाता है. हम सुनते–पढ़ते हैं कि उत्तरी यूरोप के कुछ स्कैंडिनेवियन देश, जिनमें नार्वे, स्वीडन आदि हैं, में ‘विवाह’ नाम की संस्था का महत्व खतम सा है. कामरेड स्टेलिन ने अपने समय में सोवियत रूस में बच्चों और स्त्रियों का राष्ट्रीयकरण करने का प्रयोग किया. चीन के कुछ प्रदेशों में ऐसे कबीले हैं जो मातृसत्तात्मक हैं जिनके बच्चों को डीएनए टेस्ट कराने की कोई बात नहीं होती है. विशाल अफ्रीकी महाद्वीप में भी कई मातृप्रधान कबीले होते हैं. भारत में भी कुछ आदिवासी क्षेत्रों में इसी प्रकार स्त्री प्रधान सामजिक व्यवस्थाएं चली आ रही हैं. हिमांचल के एक आँचल मे बहुपति प्रथा का चलन रहा है.
अपने को सभ्य कहने वाले समाज का बाहरी चेहरा अनेक नियम-बंधन व पाक प्रतिबद्धता पूर्वक आयने के सामने आता है, पर मनुष्य मूल रूप से एक पशु ही है, जिसे चरित्र में अनेक विद्रूपताएं हैं. दुनियाँ भर में छोटे बड़े शहरों में चकले-वैश्यालय, सैक्स रैकेट ऐसे उदाहरण हैं कि लगता है समाज का चेहरा लिपा-पुता है जिसमें असंख्य दाग छुपाये जाते हैं. वैश्यालयों को सरकारी लाइसेंस दिया जाना या थाई सरकार की तरह वेश्यावृत्ति को सरकारी उद्योग का दर्जा दिया जाना वर्जना हीनता का ही रूप है.
वर्तमान में बड़े शहरों में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव स्वरुप ‘‘लिव इन" सम्बन्धों पर समाज की अघोषित मान्यता को वर्जनाहीन कहा जाय तो गलत नहीं होगा.
नेपाल जो पहले एक घोषित हिन्दू राष्ट्र था और अब राजशाही से हटकर लोकतंत्री प्रपंच के चौराहे पर भ्रमित खड़ा लगता है, आर्थिक दृष्टि से बहुत गरीब व पिछड़ा देश है. यहाँ की लडकियों को दलालों द्वारा भारतीय बाजारों से लेकर खाड़ी देशों तक में बेचा जाता है. गरीबी बहुत बड़ा अभिशाप है. अति गरीब नेपाली पुरुष वर्ग भी भारतीय प्रदेशों की सीमाओं में आकर मेहनत-मजदूरी करते हैं. भूखे नर-नारियों के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्धांत का मतलब कितना मायने रखता होगा? समझा जा सकता है.
एक छोटी सी सत्य कथा, नेपाल की ‘बिजली’ नाम की एक दलित लड़की अल्पायु में प्रेमबहादुर नाम के अपने पति के साथ विवाहोपरांत टनकपुर-सितारगंज होते हुए हल्द्वानी पहुँच जाती है, जहाँ अन्य नेपाली रिश्तेदार कुली, मजदूरी, या रिक्शा चलाने का काम करते हैं. प्रेमबहादुर भी रिक्शा चलाने का काम करने लगता है. गुजारा नहीं हो पा रहा था इसलिए बिजली यहाँ की अन्य नेपाली स्त्रियों की ही तरह घरों में महरी का काम करने लगती है. उसके बच्चे हो जाते हैं, होते रहते हैं. एक दिन ज्यादा ठर्रा-शराब पी जाने के कारण प्रेमबहादुर मर जाता है. उसके मरने के तीन महीने बाद बिजली रणबहादुर की पत्नी बन गयी. बच्चे चाय की दुकानों-ढाबों पर काम करने लगते हैं. बड़ी लड़की मनीषा है जो जल्दी सयानी हो गयी एक सजातीय नेपाली लड़का, जो टेम्पो चलाने लगा था, उनके घर (झोपड़ा) आने जाने लगा. उसके साथ खुशी खुशी मनीषा की शादी कर दी. शादी क्या थी? जान पहचान के दस-पन्द्रह नेपाली परिवार इकट्ठा हुए खूब खाया-पिया और जयमाला डलवा दी. फोटोग्राफर बुला कर बहुत सी फोटो भी खिंचवाई गयी.
जिन जिन घरों मे बिजली काम करती है, सबने बेटी के व्याह के नाम पर रूपये देकर और गिफ्ट देकर बिजली की मदद की. कहानी का पटाक्षेप इस प्रकार होता है कि मनीषा शादी के लगभग चार महीनों के बाद पति को छोड़कर एक अन्य लड़के के साथ भागकर रुद्रपुर चली गयी है. बिजली बिलकुल भी विचलित नहीं हुई है क्योंकि उनके समाज में ऐसा होता ही रहता है.
अपने को सभ्य कहने वाले समाज का बाहरी चेहरा अनेक नियम-बंधन व पाक प्रतिबद्धता पूर्वक आयने के सामने आता है, पर मनुष्य मूल रूप से एक पशु ही है, जिसे चरित्र में अनेक विद्रूपताएं हैं. दुनियाँ भर में छोटे बड़े शहरों में चकले-वैश्यालय, सैक्स रैकेट ऐसे उदाहरण हैं कि लगता है समाज का चेहरा लिपा-पुता है जिसमें असंख्य दाग छुपाये जाते हैं. वैश्यालयों को सरकारी लाइसेंस दिया जाना या थाई सरकार की तरह वेश्यावृत्ति को सरकारी उद्योग का दर्जा दिया जाना वर्जना हीनता का ही रूप है.
वर्तमान में बड़े शहरों में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव स्वरुप ‘‘लिव इन" सम्बन्धों पर समाज की अघोषित मान्यता को वर्जनाहीन कहा जाय तो गलत नहीं होगा.
नेपाल जो पहले एक घोषित हिन्दू राष्ट्र था और अब राजशाही से हटकर लोकतंत्री प्रपंच के चौराहे पर भ्रमित खड़ा लगता है, आर्थिक दृष्टि से बहुत गरीब व पिछड़ा देश है. यहाँ की लडकियों को दलालों द्वारा भारतीय बाजारों से लेकर खाड़ी देशों तक में बेचा जाता है. गरीबी बहुत बड़ा अभिशाप है. अति गरीब नेपाली पुरुष वर्ग भी भारतीय प्रदेशों की सीमाओं में आकर मेहनत-मजदूरी करते हैं. भूखे नर-नारियों के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्धांत का मतलब कितना मायने रखता होगा? समझा जा सकता है.
एक छोटी सी सत्य कथा, नेपाल की ‘बिजली’ नाम की एक दलित लड़की अल्पायु में प्रेमबहादुर नाम के अपने पति के साथ विवाहोपरांत टनकपुर-सितारगंज होते हुए हल्द्वानी पहुँच जाती है, जहाँ अन्य नेपाली रिश्तेदार कुली, मजदूरी, या रिक्शा चलाने का काम करते हैं. प्रेमबहादुर भी रिक्शा चलाने का काम करने लगता है. गुजारा नहीं हो पा रहा था इसलिए बिजली यहाँ की अन्य नेपाली स्त्रियों की ही तरह घरों में महरी का काम करने लगती है. उसके बच्चे हो जाते हैं, होते रहते हैं. एक दिन ज्यादा ठर्रा-शराब पी जाने के कारण प्रेमबहादुर मर जाता है. उसके मरने के तीन महीने बाद बिजली रणबहादुर की पत्नी बन गयी. बच्चे चाय की दुकानों-ढाबों पर काम करने लगते हैं. बड़ी लड़की मनीषा है जो जल्दी सयानी हो गयी एक सजातीय नेपाली लड़का, जो टेम्पो चलाने लगा था, उनके घर (झोपड़ा) आने जाने लगा. उसके साथ खुशी खुशी मनीषा की शादी कर दी. शादी क्या थी? जान पहचान के दस-पन्द्रह नेपाली परिवार इकट्ठा हुए खूब खाया-पिया और जयमाला डलवा दी. फोटोग्राफर बुला कर बहुत सी फोटो भी खिंचवाई गयी.
जिन जिन घरों मे बिजली काम करती है, सबने बेटी के व्याह के नाम पर रूपये देकर और गिफ्ट देकर बिजली की मदद की. कहानी का पटाक्षेप इस प्रकार होता है कि मनीषा शादी के लगभग चार महीनों के बाद पति को छोड़कर एक अन्य लड़के के साथ भागकर रुद्रपुर चली गयी है. बिजली बिलकुल भी विचलित नहीं हुई है क्योंकि उनके समाज में ऐसा होता ही रहता है.
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व्यक्तिगत आकाक्षायें समाज में बँधती जाती हैं।
जवाब देंहटाएंव्यक्ति को अपनी पूरी कोशिश के साथ अपने चरित्र को ऊंचा रखना चाहिए ! समाज ने बहुत सोच-समझ कर ये वर्जनाएं बनायीं हैं ! इनका पालन होना चाहिए !
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