गुरुवार, 2 अगस्त 2012

गुरुमंत्र

लगभग ४०० वर्ष पहले महान विचारक, कवि व समाज सुधारक कबीर दास का एक समय समाज के ठेकेदारों तथा कट्टरपंथियों ने बहुत विरोध किया लेकिन उनकी वाणी हमेशा पाखण्ड व अनीति के विरुद्ध मुखर रही. आज भी उनकी उलटबासियां, नीतिपरक दोहे व कवितायें उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब रही होंगी.

कहा जाता है कि कबीर व उनकी पत्नी में प्रेम व सामंजस्य बहुत था. उन्होंने एक-दूसरे की बात कभी भी नहीं काटी और जीवन भर समर्पित रहे. एक बार एक पत्नीपीड़ित व्यक्ति कबीर के पास आकर सुखी गृहस्थ का मन्त्र जानना चाहता था. कबीर ने कुछ सोचा फिर अपनी पत्नी को आवाज दी, “लालटेन जला कर लाओ.” भरी दुपहरी में तेज धूप थी, फिर भी श्रीमती कबीर, पति के कहने पर लालटेन जला कर ले आई. आगंतुक को बड़ा आश्चर्य कुआ कि इतनी रोशनी होते हुए भी कबीर ने लालटेन क्यों जलवाई? उसने कारण पूछ डाला तो कबीर ने कहा, “तुमको ये बताने के लिए कि अजब-गजब होने पर भी हम ना-नुकुर या प्रश्न नहीं करते है. यही बड़ा मन्त्र है.”

यह  तो एक दृष्टांत है, तब लालटेन होती भी थी, या नहीं? किसको पता है? लेकिन इसमें बहुत गहरा भाव छुपा है, जो सभी गृहस्थी लोगों के लिए एक सीख है.

जिस गृहस्थी नायक की यहाँ बात हो रही है, वे हैं कृष्णचन्द्र सती और नायिका है उनकी पत्नी सावित्री. उनकी कथा ये है कि ना जाने किस ज्योतिषी ने उन दोनों की कुंडली मिलाकर ये कहा था कि ‘२८/३३ गुण साम्य हो गए हैं’, लेकिन अब प्रत्यक्ष मे ऐसा लगता है कि दोनों चुम्बक के विलोम ध्रुव हैं. पर शुरू में ऐसा नहीं था. शादी के समय तो सती जी को अपनी पत्नी परी सी नजर आती थी. उसके बोल में शहद घुला महसूस करते थे. वह समय ही ऐसा होता है पसीना भी गुलाब होता है.

कृष्णचन्द्र सती पुलिस मे कांस्टेबुल थे और हेड कांस्टेबुल के पद पर आठ वर्ष रहने के बाद उनको सबइंस्पेक्टर यानि थानेदार बना दिया गया. उनके थानेदार बनते ही सावित्री देवी भी थानेदारनी बन गयी और अपने नए अंदाज मे आ गयी.  कृष्णचन्द्र सती रौबीले मूछ वाले आम थानेदारों की तरह हैं और वैसे ही पुलिसिया व्यवहार भी करते हैं, लेकिन जब सावित्री के सामने आते हैं तो सारी थानेदारी गायब हो जाती है क्योंकि वह अब बदमिजाज और नकारात्मक सोच वाली बन चुकी है. उसे दूसरों की हर बात में खोट नजर आती है. यही कारण है कि कोई महरी भी सावित्री देवी के घर चार दिनों से ज्यादा नहीं टिकती है.

उनके दो बेटे हैं जो अब सयाने हो गए हैं, पर माँ से भय खाते रहे हैं. दोनों की शादियाँ कर दी तो घर में बहुएँ आ गयी, जो सासू माँ के आतंक से त्रस्त रहती हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह टी.वी. सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ मे ताई (सासू) का खौफ रहता है. थानेदार जी नौकरी से रिटायर होकर आ गए हैं और पत्नी का बहुओं के प्रति व्यवहार देख कर परेशान हैं. कुछ कहते हैं तो वह हिटलरी आवाज में डांटते हुए कहती है, "तुम चुप रहो जी.” ये अच्छा हुआ दोनों बेटों की जल्दी नौकरी लग गयी. नौकरियाँ भी घर से दूर एक को महाराष्ट्र में और दूसरे को मध्य प्रदेश मे पोस्टिंग मिल गयी. सावित्री देवी चाहती तो यह थी कि बहुवें उसके पास मे रहें, पर बेटे नहीं माने, साथ ही ले गए. बहुवें बहुत खुश हो गयी कि उनको सासू जी के खौफ से मुक्ति मिल गयी.

बच्चों के इधर उधर जाने के बाद सावित्री देवी पति के साथ अकेले हो गयी और आदत के अनुसार अब सारा गुबार थानेदार जी पर निकालती रही. उनसे घर का सारा काम भी करवाती और हर काम मे खोट भी बताती रहती थी. कृष्णचन्द्र सती ने कई बार उसको प्यार से समझाया भी कि वह अपने बोलने के लहजे में सुधार करे, पर कुत्ते की दुम की तरह वह टेढ़ी की टेढ़ी ही  रही. कभी कभी तो वे उसके वचनों से आहत हो जाते थे. एक बार तो उन्होंने कह ही डाला, “तू अगर इसी तरह बात करेगी तो मैं हरिद्वार चला जाऊंगा और सन्यासी बन जाऊंगा.” लेकिन सावित्री जानती है कि पालतू जानवर जंगल मे जाने से डरते हैं.

अब किच किच से बचने के लिए कोई काम का बहाना बनाकर थानेदार जी सुबह घर से निकल जाते और देर शाम लौटते थे पर तनाव तो था ही. राम मंदिर में हरिद्वार से एक कथावाचक स्वामी चंद्र्वेश आये तो थानेदार जी भी प्रवचन सुनने बैठ गए. कथा के अंत मे कथावाचक जी ने पूछा “किसी का कोई प्रश्न है?” कृष्णचन्द्र सती ने उनसे कहा, “स्वामी जी मुझे आपसे एकांत में बात करनी है.” गुरू जी ने समय दिया और पूरी दास्ताँन सुनी.

ये एक मानवीय समस्या थी. पति पत्नी की आपसी व्यवहार का मामला था वह भी, दोनों की पक्की उम्र में. गुरू जी ज्ञानी आदमी थे, उन्होंने कृष्णचन्द्र सती को मन्त्र दिया कि “बहरे बन जाओ. मतलब की बात सुनो-समझो बाकी पर कोई प्रतिक्रिया मत करो.” सती जी ने घर जाकर पत्नी को बताया, “‘रास्ते में एक ट्रक का टायर इतनी जोर से फटा कि दोनों कानों में भयंकर दर्द है और सुनाई देना बन्द हो गया है.” इस प्रकार सती जी बहरे हो गए हैं. सावित्री देवी ने दो दो बार ई.ऐन.टी. डाक्टर के पास भी खदेड़ दिया पर वह कहता है कि “परदे फट गए हैं, मशीन लगाने से भी कुछ नहीं होगा." सावित्री बहुत परेशान है कि थानेदार जी कुछ सुनते ही नहीं हैं. घर के काम काज पर भी असर पडता है. सावित्री नजदीक आकर कुछ कहती है तो थानेदार जी जोर-जोर से “हैं-हैं” कह देते हैं. अब थानेदार जी के पास कुछ काम भी नहीं रहता है, बस किताबों में डूबे रहते हैं. घर में कोई आता है तो सावित्री यही दुखड़ा रोती है कि "थानेदार जी के कान खराब हो गए हैं." बेचारी बहुत उखड़ी उखड़ी रहती है क्योंकि उसकी खीज सुनने वाला कोई नहीं है.

कृष्णचन्द्र सती को इस एक्टिंग मे बहुत मजा आ रहा है. कोई मतलब की बात होती है तो कहते हैं कि होंठों के ऊपर-नीचे देखकर वे कुछ बातें यों ही समझने लगे हैं. परेशानी उनको सिर्फ यह हो रही है कि अपने मोबाईल पर किसी से बात नहीं कर पा रहे हैं. सावित्री अगर दृश्यपटल से दूर हो तो वे मौक़ा देख लेते हैं. अपने बेटों को भी उन्होंने यथास्थिति से अवगत करा दिया है और फोन न करने की ताकीद कर दी है. अकेले मे शरारतन खुद से कहते हैं, “गुरु जी की जय हो ,” और मुस्कुरा लेते हैं.

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