जिस तरह से विष्णु सहस्र नाम का श्रोत्र लिखा गया है, उसी तरह से अगर कोई राजनीतिशास्त्र का विद्यार्थी हमारे आदरणीय प्रधान मन्त्री श्री मनमोहन सिंह के शतनाम लिखना चाहेगा तो उसे अनेक सुन्दर उपमान और समानार्थक शब्द आसानी से मिलते जायेंगे. शुरू किया जाये; निर्विकार, नाकारा, निच्छल, निरुत्साही, निराधार, अक्षम जैसे आवरणों से एक ऐसे राष्ट्रीय नेता की छबि सामने आती है, जो लगता है ‘अपश’ है, प्लास्टिक के गुड्डे की तरह स्थाई भावाव्यक्ति--मुस्कराहट व भींची आवाज से नवाजा गया हो. लीक पर पड़े रहना, किसी की मेहरबानियों का भारी भरकम ‘पगड़ा’ सर पर ढोते हुए अनिश्चय के बोझ तले बोल बोलना, महान देश के महान सपूतों की विरासत को धकेलते हुए, यथास्थिति कृतित्व के पोषक, मजबूर व्यक्ति कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा.
इतिहास में कोई आलोचक उनको ‘घोंघावतार’ या ‘कच्छप मुनि’ कह कर याद करेगा . वे ज्ञानी-ध्यानी और पी.एच.डी. अर्थशास्त्री हैं. देश की आर्थिक दिशा तय करने में उनका योगदान सारी दुनिया के विकासोन्मुख देशों को मार्गदर्शन करता है लेकिन यह सच है कि जब पूरे विश्व मे मन्दी छाई हुयी है तो यहाँ चमक कैसे आ सकती है? सब तरह घाटा और कर्जा ही कर्जा है. देश के कई अन्नदाता आत्महत्या करने को मजबूर हैं.
बीसवीं व इक्कीसवीं सदी के संक्रमणकाल में जवान स्वतंत्र भारत के ‘जेट विमान’ को बैलगाड़ी की तरह हांकने का अध्याय उनके नाम लिखा जाएगा. उनकी रोबोटीय छबि पर विपक्षी राजनैतिक नेतागण, चाहे वह धाकड़ महत्वाकांक्षी राजनीति के पण्डित अडवानी जी हों या चवन्नी छाप कोई राष्ट्रीय/क्षेत्रीय नेता, चटाखेदार चुटकियाँ ले कर तालियाँ बटोर लेता है. हाल में हुए दोनों आन्दोलनों के सिपहसालारों ने उनको ‘महँगाईद्योतक’ ‘भ्रष्टाचार संगरक्षक’ यहाँ तक कि ‘धृतराष्ट्र’ की संज्ञा दे डाली है. यह ‘राजनैतिक अजान पढ़ने वाले’ अपनी नक्कारखाने में बजाई हुई तूती को आम लोगों के के गले उतारने में सफल रहे हैं.
हे स्वनाम धन्य, लोगों को मालूम है कि आपका स्वाथ्य बहुत अच्छा नहीं रहता है, पर आदरणीय आप अपने हित में और राष्ट्रहित में किसी इंकलाबी को जिम्मेदारी देकर रुखसत तो हो ही सकते हैं. नए समीकरण बनेंगे, एकाएक नया जोश उभर कर सामने आएगा. खास फ़ायदा यह होगा कि जो लोग इन्द्रप्रस्थ पर पत्थर व कीचड़ उछाल रहे हैं, उनकी बोलती बन्द हो जायेगी.
इतिहास में कोई आलोचक उनको ‘घोंघावतार’ या ‘कच्छप मुनि’ कह कर याद करेगा . वे ज्ञानी-ध्यानी और पी.एच.डी. अर्थशास्त्री हैं. देश की आर्थिक दिशा तय करने में उनका योगदान सारी दुनिया के विकासोन्मुख देशों को मार्गदर्शन करता है लेकिन यह सच है कि जब पूरे विश्व मे मन्दी छाई हुयी है तो यहाँ चमक कैसे आ सकती है? सब तरह घाटा और कर्जा ही कर्जा है. देश के कई अन्नदाता आत्महत्या करने को मजबूर हैं.
बीसवीं व इक्कीसवीं सदी के संक्रमणकाल में जवान स्वतंत्र भारत के ‘जेट विमान’ को बैलगाड़ी की तरह हांकने का अध्याय उनके नाम लिखा जाएगा. उनकी रोबोटीय छबि पर विपक्षी राजनैतिक नेतागण, चाहे वह धाकड़ महत्वाकांक्षी राजनीति के पण्डित अडवानी जी हों या चवन्नी छाप कोई राष्ट्रीय/क्षेत्रीय नेता, चटाखेदार चुटकियाँ ले कर तालियाँ बटोर लेता है. हाल में हुए दोनों आन्दोलनों के सिपहसालारों ने उनको ‘महँगाईद्योतक’ ‘भ्रष्टाचार संगरक्षक’ यहाँ तक कि ‘धृतराष्ट्र’ की संज्ञा दे डाली है. यह ‘राजनैतिक अजान पढ़ने वाले’ अपनी नक्कारखाने में बजाई हुई तूती को आम लोगों के के गले उतारने में सफल रहे हैं.
हे स्वनाम धन्य, लोगों को मालूम है कि आपका स्वाथ्य बहुत अच्छा नहीं रहता है, पर आदरणीय आप अपने हित में और राष्ट्रहित में किसी इंकलाबी को जिम्मेदारी देकर रुखसत तो हो ही सकते हैं. नए समीकरण बनेंगे, एकाएक नया जोश उभर कर सामने आएगा. खास फ़ायदा यह होगा कि जो लोग इन्द्रप्रस्थ पर पत्थर व कीचड़ उछाल रहे हैं, उनकी बोलती बन्द हो जायेगी.
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एक बेहतरीन कटाक्ष के माध्यम से बहुत बढ़िया बात /सुझाव रखा है हमारे प्रधान मंत्री जी के सामने काश वो इस लेख को पढ़ पाते ----बहुत अच्छा प्रभावशाली आलेख बधाई आपको |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंजल्दी बनाइये
मनमोहन सहस्त्रनाम
बहुत अच्छा होगा
करना देश हित में
यह काम
काम का काम हो जायेगा
और आपका पेपर भी
एक अच्छे इंपेक्ट फेक्टर
वाले शोध पत्रिका में छप जायेगा
क्या पता मनमोहन के मन भा जायेगा
तो यू जी सी का एक प्रोजेक्ट भी
आपको जरूर मिल जायेगा
और हम को जपने के लिये
मनमोहन माला मिल जायेगी
भारत की जनता भी तब
आपके गुण गायेगी ।