बुधवार, 20 मार्च 2013

दादू की सगाई

कुसुमखेडा के आनन्द विहार कॉलोनी में आनंद सिंह नेगी के बंगले में बड़ी चहल पहल है. इस कॉलोनी में पहला घर आनंदसिंह नेगी बी.डी.ओ.(ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर) का बना था इसलिए उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण आनन्द विहार हो गया. यह घर बनने के बाद से एकाकी निवास जैसा ही रहा क्योंकि नेगी जी के तीनों बच्चे बाहर व्यवस्थित हैं. बड़ा बेटा गजेन्द्र सिंह एक आई.टी. कम्पनी में मुलाजिम होकर संयुक्त राज्य अमेरिका के टैक्सस में अपनी पत्नी विमला और आठ साल के बेटे मोंटी के साथ रहता है. दूसरा बेटा वीरेन्द्र सिंह भारत सरकार की विदेश सेवा में कार्यरत है. वह वर्तमान में मॉस्को में रहता है. उसने वहीं एक रशियन लड़की से प्रेमविवाह कर लिया है. आनंद सिंह नेगी की एक बेटी भी है, जो उड़ीसा के उत्कल विश्वविद्यालय में फिजिक्स की प्रोफ़ेसर है. उसके पति रेलवे में एक बड़े पद पर कार्यरत हैं. सार यह है कि तीनों बच्चों के परिवार उनसे दूर हैं, लेकिन संचार क्रान्ति के इस युग में दुनिया बहुत छोटी हो गयी है. नेगी जी अपने बच्चों से लगभग रोज ही बात किया करते हैं. ज्यादा याद आने पर कंप्यूटर द्वारा ‘स्काइप’ के माध्यम से उनकी शक्ल देखते हुए बातें करके अपना एकांत दूर करते रहते हैं.

आनंद सिंह नेगी ने अपने कैरियर की शुरुआत एक ग्राम सेवक (वी.एल.डब्लू.) के बतौर की थी और कुमायूँ के कई ब्लॉक्स में सेवारत रहे. नेगी जी का पुश्तैनी घर शीतला खेत में है, जहाँ आज भी उनके चाचा-ताऊ के बेटे-पोते रहते हैं और खेती-बाड़ी करते हैं. गाँव की दृष्टि से उनका परिवार संपन्न परिवारों में से एक था. उनकी दादा और फिर उनके बाद उनके ताऊ गाँव के मालगुजार हुआ करते थे.

नौकरी लगते ही बाईस साल की उम्र में आनंद सिंह की शादी खीमा देवी से हो गयी थी और दस वर्षों के अंतराल में वह तीन बच्चों की माँ भी बन गयी थी. जब १९७५ के बाद देश में आपद्काल का दौर चला तो सरकारी कर्मचारियों पर परिवार नियोजन का दबाव बहुत बुरी तरह बनाया गया था. जिनके घर में दो या तीन बच्चे थे, उनको नसबंदी कराने के लिए हैरान किया गया. आनंद सिंह जब अपनी नसबंदी के लिए उद्यत हो रहे तो खीमा देवी ने उनको मना करते हुए खुद अपना आपरेशन कराने का मन बना लिया. कहते हैं कि ‘जैसी हो होतव्यता वैसी आवे बुद्धि’.  होनहार यह हुई कि डॉक्टरों की लापरवाही से खीमा देवी की कोई रक्त नलिका भी कट गयी. रक्तश्राव रुका ही नहीं. बहुत परेशानी हुई और अंत में उसे बचाया नहीं जा सका. ये एक बड़ी दुखद त्रासदी थी. तब तीनों बच्चे नादान थे. और नेगी जी की उम्र महज बत्तीस वर्ष थी.

यह दुर्घटना, सरकारी मातमपुर्सी व इन्क्वायरी में भटकती रही, पर नेगी जी का हँसता-खेलता परिवार गहरे सदमे में आ गया. तब आनंद सिंह के माता-पिता व दादा-दादी मौजूद थे. सभी ने उनको संबल दिया व ढाढस बढ़ाया. बच्चों के प्रति सभी का अतिरिक्त प्यार-दुलार छलकता रहा. थोड़े समय बाद परिवार के बुजुर्गों ने आनंद सिंह पर पुनर्विवाह का दबाव बनाया. अनेक तरह से समझाया, लेकिन आनंदसिंह ने किसी की बात नहीं मानी. उसका सोचना था कि दूसरा विवाह का मतलब बच्चों के साथ अन्याय होगा. इस प्रकार अल्पायु से विधुर जीवन जीते रहे. उन्होंने कोशिश करके अपना स्थान्तरण नैनीताल जिले के भीमताल ब्लॉक में करवा लिया. यहीं बच्चों को सयाना किया. बड़े बेटे व बेटी की शादियाँ यहीं के सामाजिक रीति-रीवाज से की. छोटे बेटे ने जब प्रेम विवाह किया तो उनको उसमें कोई बुराई नजर नहीं आई और अपनी सहमति दे दी

सं २००४ में साठ साल की उम्र होने पर उनको सेवामुक्ति मिल गई. सेवा काल के अन्तिम वर्षों में उन्होंने हल्द्वानी के आउटस्कर्ट कुसुमखेडा क्षेत्र में दो बीघा जमीन खरीद कर घर बनवा लिया था. घर का काम करने के लिए एक पहाड़ी लड़का, पिछले ५-६ सालों से, सेवक के रूप में उन्होंने रखा हुआ है.

अपने साहित्यिक शौक पूरा करने के लिए तथा समय साधना के लिए अपने कम्प्युटर को आना साथी बनाया हुआ है. घंटों उस पर दूसरे लेखकों की रचनाओं/ब्लॉगों को पढ़ कर या अपनी खुद की वेबसाईट पर अपने अनुभवों को लिखते हुए संतुष्टि अनुभव करते रहे हैं. नेगी जी ने अपना फेसबुक अकाउंट भी खोला हुआ है, जिसमें उनको अपने अनेक पुराने परिचितों तथा रिश्तेदारों से संपर्क करने का अच्छा अवसर मिल गया. इसमें वे नित्य नई नई बातें पढ़ते हुए व्यस्त रहते हैं. गत वर्ष उनकी फ्रेन्ड लिस्ट में एक हमउम्र महिला प्रेमा बिष्ट के नाम की दस्तक हुयी. वह एक अविवाहित, रिटायर्ड अध्यापिका है. लखनऊ में रहती है. मूल रूप से वह भी अल्मोड़ा की रहने वाली है.

फेसबुकीय मित्रता धीरे धीरे व्यक्तिगत मित्रता में बदलती रही. नित्य चैटिंग होने लगी. उम्र के इस पड़ाव पर किसी महिला से इस तरह लगाव हो जाएगा, ये उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. एक दिन यों ही उन्होंने हेमा की जाँच करने के लिए लिख दिया “क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” इसका उत्तर "हाँ” होते ही उनकी वीरान प्यार की दुनिया में मानो हजारों खुशबूदार फूल खिल उठे. नेगी जी ने संकोच के साथ यथास्थिति तीनों बच्चों को बताई तो उनको सब की तरफ से ये सुखद प्रत्युत्तर मिला, "हाँ पापा, यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था. हम खुश हैं आप जल्दी सगाई की तारीख निकालिए हम लोग घर आने को उतावले हैं.”

ये सब गतिविधियां इतनी जल्दी हुई कि सुनने वाले विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. उधर प्रेमा जी कल सुबह की ट्रेन से हल्द्वानी पहुँचने वाली हैं. नेगी जी के तीनों बच्चे सपरिवार पहले ही घर पहुँच चुके हैं. उनका पोता मोंटी सब को बता रहा है कि "कल दादू की सगाई है."
***

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया आदरणीय-
    शुभकामनायें-

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरे लिए विडंबनात्‍मक.......क्‍योंकि आनंद सिंह जी की सगाई पर मुझे खीमा देवी याद आ रही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बढिया व रोचक ... नेगी जी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।

    जवाब देंहटाएं
  5. जय हो..कोई न कोई तो हो साथ रहने के लिये..

    जवाब देंहटाएं
  6. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  7. तब तो शुभकामनाएं देनी चाहिए..

    जवाब देंहटाएं