आज की बैठक केन्द्र सरकार द्वारा निकट भविष्य में प्रस्तुत किये जाने वाले ‘खाद्य सुरक्षा बिल’ पर विचार करने के लिए आहूत की गयी थी. उपस्थिति २२ रही.
न. १- आप लोग सभी प्रबुद्ध वरिष्ठ नागरिक हैं, अनुभवी हैं और मीडिया द्वारा प्रचारित ‘ खाद्य सुरक्षा बिल के बाबत अवश्य जानकारी रखते होंगे. मैं चाहता हूँ कि इस ऐतिहासिक बिल पर आप अपने विचार बताएँ.
न. ६- ये केवल एक राजनैतिक शगूफा है. चुनाव आने वाले हैं इसलिए सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का तरीका लगता है.
न. ४- लेकिन जो आप समझ रहे हैं, ये पूर्ण सत्य नहीं है. सरकार के पास इस वक्त भंडारण क्षमता से ढाई गुना ज्यादा अनाज है. अगर उसे निकाला नहीं गया तो अगले फसल पर खरीद भी नहीं हो पायेगी.
न. ८- इसमें वर्तमान सत्ता के विरोधी लोगों को स्वभावत: पाप नजर आ रहा होगा, पर ऐसा ठीक नहीं है. देश की गरीब जनता को इस बिल के माध्यम से भोजन की गारंटी दी जा रही है. हर महीने बहुत सस्ते दर पर अनाज दिया जाने वाला है, इसमें कहाँ गलती है?
न. ५- ये बात आज ही सरकार को क्यों याद आ रही है, अब तक भी लोग भूखों मर रहे थे, किसान कर्ज व अभावों के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होते रहे हैं?
न. ८- अगर आपकी याददाश्त कमजोर नहीं है तो आपको याद होगा कि २००९ के आम चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने इस बारे मे स्पष्ट अपने घोषणापत्र में वायदा किया था. आपको कहना चाहिए ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’. मेरे ख्याल से इसमें कोई खोट नहीं है. अब रह गयी वोटों की बात, सो लोकतंत्र वोटों से ही चलता है.
न. ११- इस बाबत अभी बहुत शंकाएं हैं. आपकी वितरण मशीनरी व प्रणाली ठीक से बनी नहीं है. इसमें फिर से भ्रष्टाचार होगा. जिन लोगों को वास्तव में लाभ मिलना चाहिए उनको मुश्किल से मिलेगा.
न. ९- मैं भी यही समझता हूँ कि यह कदम एक स्टंट साबित होगा, अगर सस्ता अनाज बांटा भी गया तो आप पायेंगे कि वह अच्छी हालत में नहीं होगा.
न. ६- ऐसी बात तो नहीं है आप हर बात में खोट क्यों देख रहे हैं? अगर प्रणाली में कहीं भ्रष्टाचार होगा तो सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों को ही क्यों कोसते हो, उनकी नियत में कहाँ खोट है? दरअसल हमारे देश में सरकारी व गैर सरकारी तंत्रों में अन्दर तक बेईमानी घुसी हुई है, अन्यथा इस बिल का उद्देश्य बहुत बढ़िया और दूरगामी है.
न. ५- मुझे तो इस बिल में वोटों की खुली राजनीति नजर आती है. ये सरकार भ्रष्टाचार और काले धन पर कोई नियंत्रण तो कर नहीं पा रही है. इस बार देखना स्वामी रामदेव झंडा उठाने वाले हैं, इस सरकार को जीतने नहीं देंगे.
न. ८- लगा लेना तुममें जितना जोर हो. रामदेव की खुद की छलनी में कई छेद हैं. देश में कॉग्रेस का अभी भी सब तरफ असर है, जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है, कौन सी पार्टी के लोग दूध के धुले हैं ज़रा बताइये?
न. १- विषय से भटकिए मत, ये सोचिये कि जब बहुतायत में अनाज वितरण नियमित होता रहेगा तो आगे आने वाले समय में जब कभी उत्पादन में कमी आ गयी और भण्डार खाली हो जायेंगे तक भी क्या ये गारंटी काम करेगी?
न. ३- अगर आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती तो आप लोगों को इस बारे में इतनी बातें करने की जरूरत ही नहीं होती. अटल जी के जमाने में शक्कर के भाव १५ रुपयों से ऊपर नहीं गए, खाद्यान्न के बारे में कोई हो-हल्ला नहीं हुआ.
न. १०- ये बात तो आपकी गलत है, भ्रष्टाचार तो तब भी बहुत था, पर उजागर नहीं हो रहा था. जॉर्ज फर्नान्डीस जब रक्षा मन्त्री थे तो ताबूत काण्ड और सैनिक साजो सामान में कमीशनखोरी की बात जग जाहिर हुई थी.
बंगारू का स्टिंग तो आपको अवश्य याद होना चाहिए. ये अटल जी के जमाने की ही बातें हैं, माफ करना.
न.१५(शेरसिंह ड्राईवर)- महंगाई ने तो कमर तोड़ रखी है, ये क्यों नजर नहीं आ रहा है, आप लोगों को?
न. ८- महंगाई के कई कारण हैं, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय हालात और अंदरूनी व्यवस्था व जनसंख्या का बढ़ता दबाव आदि हैं. अब से पचास साल पहले ढाई रूपये किलो देशी घी तथा एक रूपये का दो किलो दूध मिला करता था. उससे अब तुलना करना बेकार सी बात है. महंगाई तो इसी तरह बढ़ती ही रहती है, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में आये.
न. १- जहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय बात आपने कही है, कई देशों में उपभोक्ता सामग्री के दाम कई वर्षों से स्थिर रखे गए हैं सरकार की इसमें कड़ी निगरानी रहती है. यहाँ हमारे देश में तो राम-राज है, डीजल-पेट्रोल के भाव बाद में बढ़ाते हैं पर जिंसों के भाव व उनकी ढुलाई पहले ही बढ़ जाती है. मुख्य मुद्दे की बात, ये बताइये कि आप इस ‘खाद्य सुरक्षा बिल’ को जायज मानते हैं या नहीं?
न. ४- नाजायज तो नहीं कहा जा सकता है. यदि इसकी सही मायनों में क्रियान्वित किया जाएगा और निगरानी, मशीनरी, ईमानदारी से काम करेगी तो यह एक क्रांतिकारी कदम होगा.
न. १- आज की बैठक अब यहीं समाप्त की जाती है.
न. १- आप लोग सभी प्रबुद्ध वरिष्ठ नागरिक हैं, अनुभवी हैं और मीडिया द्वारा प्रचारित ‘ खाद्य सुरक्षा बिल के बाबत अवश्य जानकारी रखते होंगे. मैं चाहता हूँ कि इस ऐतिहासिक बिल पर आप अपने विचार बताएँ.
न. ६- ये केवल एक राजनैतिक शगूफा है. चुनाव आने वाले हैं इसलिए सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का तरीका लगता है.
न. ४- लेकिन जो आप समझ रहे हैं, ये पूर्ण सत्य नहीं है. सरकार के पास इस वक्त भंडारण क्षमता से ढाई गुना ज्यादा अनाज है. अगर उसे निकाला नहीं गया तो अगले फसल पर खरीद भी नहीं हो पायेगी.
न. ८- इसमें वर्तमान सत्ता के विरोधी लोगों को स्वभावत: पाप नजर आ रहा होगा, पर ऐसा ठीक नहीं है. देश की गरीब जनता को इस बिल के माध्यम से भोजन की गारंटी दी जा रही है. हर महीने बहुत सस्ते दर पर अनाज दिया जाने वाला है, इसमें कहाँ गलती है?
न. ५- ये बात आज ही सरकार को क्यों याद आ रही है, अब तक भी लोग भूखों मर रहे थे, किसान कर्ज व अभावों के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होते रहे हैं?
न. ८- अगर आपकी याददाश्त कमजोर नहीं है तो आपको याद होगा कि २००९ के आम चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने इस बारे मे स्पष्ट अपने घोषणापत्र में वायदा किया था. आपको कहना चाहिए ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’. मेरे ख्याल से इसमें कोई खोट नहीं है. अब रह गयी वोटों की बात, सो लोकतंत्र वोटों से ही चलता है.
न. ११- इस बाबत अभी बहुत शंकाएं हैं. आपकी वितरण मशीनरी व प्रणाली ठीक से बनी नहीं है. इसमें फिर से भ्रष्टाचार होगा. जिन लोगों को वास्तव में लाभ मिलना चाहिए उनको मुश्किल से मिलेगा.
न. ९- मैं भी यही समझता हूँ कि यह कदम एक स्टंट साबित होगा, अगर सस्ता अनाज बांटा भी गया तो आप पायेंगे कि वह अच्छी हालत में नहीं होगा.
न. ६- ऐसी बात तो नहीं है आप हर बात में खोट क्यों देख रहे हैं? अगर प्रणाली में कहीं भ्रष्टाचार होगा तो सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों को ही क्यों कोसते हो, उनकी नियत में कहाँ खोट है? दरअसल हमारे देश में सरकारी व गैर सरकारी तंत्रों में अन्दर तक बेईमानी घुसी हुई है, अन्यथा इस बिल का उद्देश्य बहुत बढ़िया और दूरगामी है.
न. ५- मुझे तो इस बिल में वोटों की खुली राजनीति नजर आती है. ये सरकार भ्रष्टाचार और काले धन पर कोई नियंत्रण तो कर नहीं पा रही है. इस बार देखना स्वामी रामदेव झंडा उठाने वाले हैं, इस सरकार को जीतने नहीं देंगे.
न. ८- लगा लेना तुममें जितना जोर हो. रामदेव की खुद की छलनी में कई छेद हैं. देश में कॉग्रेस का अभी भी सब तरफ असर है, जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है, कौन सी पार्टी के लोग दूध के धुले हैं ज़रा बताइये?
न. १- विषय से भटकिए मत, ये सोचिये कि जब बहुतायत में अनाज वितरण नियमित होता रहेगा तो आगे आने वाले समय में जब कभी उत्पादन में कमी आ गयी और भण्डार खाली हो जायेंगे तक भी क्या ये गारंटी काम करेगी?
न. ३- अगर आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती तो आप लोगों को इस बारे में इतनी बातें करने की जरूरत ही नहीं होती. अटल जी के जमाने में शक्कर के भाव १५ रुपयों से ऊपर नहीं गए, खाद्यान्न के बारे में कोई हो-हल्ला नहीं हुआ.
न. १०- ये बात तो आपकी गलत है, भ्रष्टाचार तो तब भी बहुत था, पर उजागर नहीं हो रहा था. जॉर्ज फर्नान्डीस जब रक्षा मन्त्री थे तो ताबूत काण्ड और सैनिक साजो सामान में कमीशनखोरी की बात जग जाहिर हुई थी.
बंगारू का स्टिंग तो आपको अवश्य याद होना चाहिए. ये अटल जी के जमाने की ही बातें हैं, माफ करना.
न.१५(शेरसिंह ड्राईवर)- महंगाई ने तो कमर तोड़ रखी है, ये क्यों नजर नहीं आ रहा है, आप लोगों को?
न. ८- महंगाई के कई कारण हैं, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय हालात और अंदरूनी व्यवस्था व जनसंख्या का बढ़ता दबाव आदि हैं. अब से पचास साल पहले ढाई रूपये किलो देशी घी तथा एक रूपये का दो किलो दूध मिला करता था. उससे अब तुलना करना बेकार सी बात है. महंगाई तो इसी तरह बढ़ती ही रहती है, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में आये.
न. १- जहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय बात आपने कही है, कई देशों में उपभोक्ता सामग्री के दाम कई वर्षों से स्थिर रखे गए हैं सरकार की इसमें कड़ी निगरानी रहती है. यहाँ हमारे देश में तो राम-राज है, डीजल-पेट्रोल के भाव बाद में बढ़ाते हैं पर जिंसों के भाव व उनकी ढुलाई पहले ही बढ़ जाती है. मुख्य मुद्दे की बात, ये बताइये कि आप इस ‘खाद्य सुरक्षा बिल’ को जायज मानते हैं या नहीं?
न. ४- नाजायज तो नहीं कहा जा सकता है. यदि इसकी सही मायनों में क्रियान्वित किया जाएगा और निगरानी, मशीनरी, ईमानदारी से काम करेगी तो यह एक क्रांतिकारी कदम होगा.
न. १- आज की बैठक अब यहीं समाप्त की जाती है.
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कुछ नहीं है, सब ड्रामा है। हवा में लाठियां भांजी जा रही हैं और दुनिया और अपना भारत देश चल रहा है। कहां जा रहा है विश्व सहित भारत, कोई नहीं जानता।
जवाब देंहटाएंआपकी पंचायत से जनता के मन की जानकारी मिल जाती है
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
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