शनिवार, 2 मार्च 2013

ठलुआ पंचायत - २

(ठलुआ पंचायत -१ यहाँ पर पढ़ें)

आज हमारी ठलुआ पंचायत का एजेंडा देश का इस साल का बजट रहा.

'बजट' शब्द की व्यत्युत्त्पति अंग्रेजी के 'बोगेट' शब्द से हुई है. यह फ्रांसिसी भाषा के शब्द 'बौऊगेट' से आया शब्द बताया जाता है. इसका अर्थ होता है, चमड़े का वह थैला जिसमें धन रखा जाता है. हमारी देशी चलन की भाषा में इसे ‘रामकोथली’ भी कहा जा सकता है. आजकल शादी ब्याह के दौरान वर या वधू पक्ष के जिम्मेदार व्यक्ति के हाथ में जो रुपयों का थैला (बटुवा) होता है उसे रामकोथली कहा जाता है.

बहरहाल जैसे हम या हमारी गृहिणियां घर की आमदनी के अनुसार घर का मासिक या वार्षिक खर्चा चलाती हैं, उसी तरह देश का वित्त मन्त्री पूरे देश के सरकारी आमदनी तथा खर्चे पर अगले वित्त वर्ष की संभावनाओं पर लेखा-जोखा तैयार करके देश की सबसे बडी पंचायत संसद में पेश करता है. हर साल आमदनी के नए श्रोत व खर्चे के नए मुद्दों को ढूंढा जाता है. बजट तैयार करने के लिए बड़े बड़े अर्थशास्त्री व आर्थिक सलाहकार काम करते हैं क्योंकि ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है. ये इतनी हल्की चीज नहीं होती जैसा कि आम आदमी सोचते हैं.

रेल विभाग हमारे देश का सबसे बड़ा सरकारी उद्योग है, और उसका कारोबार बहुत विस्तृत भी है इसलिए हर साल आम बजट से पहले ही अलग से उसको प्रकाशित किया जाता है. उसमें भी आमदनी व खर्चे के प्रस्ताव पेश किये जाते हैं. संसद में बहस की जाती है.

हमारी ठलुआ पंचायत के मुख्य सदस्यों का परिचय पिछली पंचायत की रिपोर्टिंग में करवाया जा चुका है. आज की यह बहस उनको दिये गए नम्बर के आधार पर ही अंकित की गयी है:

न. १ - आप लोगों ने कल चिदंबरम साहब के बजट प्रस्तावों को सुना होगा, क्या प्रतिक्रिया है?

न. ७ - हम तो अनेक राजनेताओं की प्रतिक्रिया टी.वी. के चैनलों पर सुन कर आ रहे हैं. पक्ष वाले तारीफों के पुल बाँध रहे हैं और विपक्ष के नेता इसे बेकार बता रहे हैं. विपक्षियों में केवल नितीश कुमार, मुख्य मन्त्री बिहार ने इसकी तारीफ़ की है.

न. ४- नीतीश कुमार ने इसमें गहरी राजनीति खेली है, उनका निशाना इसकी आड़ में भाजपा पर है, जो कि आजकल मोदीराग अलाप रहा है.

न. ५- हाँ, आप ठीक कह रहे हैं. इसमें बहुत बड़ी चाल है, वह भाजपा को सन्देश देना चाहते हैं कि मोदी को आगे करने पर वे काँग्रेस के नजदीक जा सकते हैं. यद्यपि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने सिद्धान्त रूप से बजट की खिलाफत की है. वैसे तो मुलायमसिंह और मायावती ने भी बजट को जन विरोधी कहा है.

न. ४- अरे, इनका क्या, ये सब कुर्सी की लड़ाई है, नूरा कुश्ती है. बजट को शायद ही कोई ठीक से समझ पाया हो. कुछ सालों पहले तक बड़े जानकार, संविधानविद स्वर्गीय नानी पालखीवाला मुम्बई में बजट पर अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया सार्वजनिक रूप से दिया करते थे. दुनिया उनको गौर से सुनती भी थी, बातों में दम होता था. अब तो पक्ष/विपक्ष का एक दस्तूर भर रह गया है. सारे नेता जनता के हमदर्द होने का नाटक करते हैं.

न. ९- कई बार जल्दीबाजी में बिना बहस के भी बजट पास होते रहे हैं. खुद के वेतन-भत्तों व सुविधाएँ बढ़ाने के लिए कोई भी पर्लियामेंटेरियन बहस नहीं करवाता है. ये सब गरीबों के अमीर नुमायंदे हैं. केवल जनता को बहकाते हैं. हर साल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से टैक्स बढ़ाये जाते हैं. बीच बीच में भी जब चाहे वैसे भी रेट बढ़ाते हैं. मुझे तो लगता है कि जमाखोरों व कालाबाजारियों का भी हाथ बजट बनवाने में रहता होगा.

न. ११- इस बार तो इनकम टैक्स के स्लैब में कोई फेरबदल नहीं किया गया. केवल एक करोड़ आमदनी पर सुपर टैक्स १०% लगाया गया है. एक नेता तो कह रहे थे, ये नोशनल बजट मात्र है.

न. ३- ये भाई साहब पूरी तरह मनमोहन सरकार के वित्तमंत्री चिदंबरम का चुनावी बजट है ताकि लोग फिर उनको वोट दें, पर पब्लिक है सब जानती है. इस बार भाजपा को लग रहा है कि वे कुर्सी हथिया लेंगे.

न. ८- ये उनका खयाली पुलाव है, उत्तरांचल व हिमांचल में उनके हाथों से सता निकल गयी. अभी कल ही पूर्वोत्तर से जो रिजल्ट आये हैं, उनमें मेघालय में फिर कॉग्रेस सरकार बन रही है, भाजपा को वहाँ केवल एक सीट मिली है. बाकी में भी लेफ्टिस्ट रूलिग़ पार्टी ही जीती हैं. भाजपा का हिन्दू वोट बैंक हिन्दी भाषा वाले शहरी क्षेत्रों में है क्योंकि यहीं ज्यादा हुल्लड़बाजी होती है.

न.६- लेकिन अब लोग परिवर्तन चाहते हैं, गाँवों में भी गैस की कीमत बढ़ाने और सिलेंडर कम करने से लोग नाराज हैं

न. ५ - आप लोग बाबा रामदेव जी को आस्था चेनल पर सुनिए, वे फिर से बिगुल बजायेंगे.

न. १- मैं समझता हूँ कि इससे बहुत ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है. महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों से कॉग्रेस बैकफुट पर जरूर आई है, लेकिन जब तक सम्पूर्ण विपक्ष बंटा हुआ रहेगा बीस प्रतिशत वोटों से ही उम्मेदवार जीत जाता है.

न. ४- काँग्रेस को जड़ से उखाडना तो संभव नहीं होगा क्योंकि इसकी जड़ें दूब की जैसी हैं, फिर फिर हरी होती रहेंगी. जहाँ तक बजट का सम्बन्ध है, चुनावी साल में सभी सत्ताधारी पार्टियां लोक लुभावन बजट लेकर आती रही हैं. क्योंकि असल लड़ाई तो कुर्सियों के लिए लड़ी जाती है.

न. १- अभी तो पूरी बहस संसद में होनी है, अफसोस तो ये है कि सब लोग राष्ट्रीय विषयों को भी दलगत चश्मों से देखते हैं.

न. १२- ये सब सोनिया गाँधी का खेल है. वह सब को नचा रही है. जैसा वह चाहती है वैसा ही सब करते जाते हैं. बजट पर उसकी पूरी नजर रही होगी.

न. ८- आप कुछ लोगों को तो सोनिया फोबिया हो गया लगता है. अरे, उसने एक बिखरती पार्टी की कमान संभल रखी है इसलिए सभी जल रहे रहे हैं. शरद पवार कह रहे हैं कि “विदेशी मूल का अब कोई मुद्दा नहीं है.” सच तो ये भी है कि भारतीय मूल के कई लोग मारीशस, फिजी, गुयाना, यहाँ तक कि इंग्लेंड की संसद व अमेरिका के प्रशासन में झंडे गाड़ रहे हैं, तब तो आप वाह वाह कहते हैं.

न. ३- पर देसी मूल का कोई और नेता नहीं है जो कमान संभाले?

न. ८- तुम देसी मूल के लोगों से तो वह बहुत ठीक है, उसने हिन्दी सीखी, भारतीय लिबास साड़ी पहन कर रहती है. कभी ओछी बात नहीं करती है, मुझे आश्चर्य होता है कि लोग गाँधी परिवार को परिवारवाद का नाम देकर गालिया देना अपना हक समझते हैं, पंजाब में बादल परिवार, यू.पी. में मुलायम परिवार, तमिलनाडू में करूणानिधि परिवार, कश्मीर में अब्दुला परिवार, महाराष्ट्र में शरद पवार का परिवार, शिव सेना का परिवारवाद, आदि अनेकों खानदान हैं, जो राजनीति करते हैं वे सब नजर नहीं आते हैं. जबकि देश की अखंडता के लिए सबसे ज्यादा कुर्बानी इसी परिवार ने दी है.

न. १- बहस बजट पर हो रही है.... मैं समझ रहा हूँ कि हम लोग विषय से भटक रहे हैं.

न. ११- ये देश ऐसे ही चलेगा. अपने अपने घरों के बजट को संभालिए, देश की चिंता करने वाले बहुत बड़े बड़े अर्थशास्त्री बैठे हैं.

आज के बैठक यहीं समाप्त कर दी गयी.
***

6 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा आपने, कुछ ऐसा ही मानना है मेरा भी..

    ये देश ऐसे ही चलेगा. अपने अपने घरों के बजट को संभालिए, देश की चिंता करने वाले बहुत बड़े बड़े अर्थशास्त्री बैठे हैं.

    शुक्रिया..


    नोट: अगर आपको रेल बजट की बारीकियां समझनी है तो देखिए आधा सच पर लिंक...
    http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/02/blog-post_27.html#comment-form

    बजट पर मीडिया के रोल के बारे में आप TV स्टेशन पर जा सकते हैं।

    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/03/blog-post.html?showComment=1362207783000#c4364687746505473216


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  2. अजी काहे का बजट ?कैसा बजट ?यहाँ तो बजट पूर्व ही जिंसों के रेट बढ़ा दिए जाते हैं .चाहे रेल किराया हो या कुछ ओर .जहां सब कुछ बजट के आगे पीछे ही होता हो वहां बजट एक शगूफा ही है .आपकी ठलुवा पंचायत अच्छा काम कर रही है .

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  3. तत्व छूट गया, सब तो अर्थ पर ही लड़ बैठे..

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  4. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  5. बहुत खूब ।।।।।

    मेरी नई रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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