शुक्रवार, 29 मार्च 2013

दास्तान-ए-आनसिंह

मैं आनसिंह रौतेला, नेवी का रिटायर्ड ले.कमांडेंट, पुत्र स्व. दीवानसिंह रौतेला, बागेश्वर में दुग पट्टी के काफलखेत गाँव का मूल निवासी हूँ, पर अब मैं काठगोदाम में आकर बस गया हूँ. गाँव में बिना पानी वाली थोड़ी सी पुश्तैनी जमीन है, जिस पर अब बिरादरी वालों का कब्जा हो गया है. वैसे भी उस जमीन पर पूरी मेहनत के बावजूद परिवार के लिए साल भर का गुजारा मुश्किल से जुटाया जाता था. मुझे याद है मेरा बचपन बहुत गरीबी में गुजरा था. मैं ‘खातड़ा-संस्कृति’ से उठा हुआ आदमी हूँ. इस खातड़ा अर्थात् गुदड़ी संस्कृति को सब लोग ठीक से नहीं समझ पाते हैं इसलिए मैं बताना चाहता हूँ कि पहाड़ में दूर दराज इलाके में ऐसे अभावग्रस्त गरीब लोग हुआ करते थे अथवा आज भी हो सकते है जिनके घरों में रजाई, कम्बल, गद्दे नहीं होते थे. पुरानी कपड़ों को हाथ से सिल कर खातड़े बनाए जाते थे, उसमें फटी धोतिया, कुर्ते-पायजामे, यहाँ तक कि माँ या दादी के पुराने घाघरे भी समायोजित होते थे.

उन दिनों हमारे गाँव में बच्चों को पढ़ाना असामान्य बात थी. बच्चों को छुटपन से ही जानवर चराने के काम में लगा दिया जाता था, पर मेरे पिता ने मुझे दूर कांडा भेजकर हाईस्कूल तक पढ़ाया. पूरे इलाके में कांडा में ही एकमात्र हाईस्कूल हुआ करता था. हाईस्कूल करने के बाद मैं बागेश्वर जाकर उत्तरायणी मेले के अवसर पर ‘बॉय कम्पनी’ में भर्ती हो गया, तथा नेवी के लिए छाँट लिया गया. रंगरूटी करने के बाद मैं दक्षिण भारत के समुद्री तटों पर नियुक्ति पाता रहा. घर से इतनी दूर नौकरी पाना हम पहाड़ी लडाकों के लिए कोई नई बात नहीं थी. साल भर बाद एक महीने की छुट्टी पाकर गाँव लौटता था तो मुझे वहाँ का अभावपूर्ण जीवन भी सुखद लगता था, पर रोजगार के लिए बाहर जाना एक मजबूरी थी. पाँच साल बाद मेरी शादी नजदीकी गाँव चौरा से लछिमा देवी के साथ हो गयी. फैमिली क्वार्टर की सुविधा मिलते ही मैं उसे अपने साथ ले गया.

मेरा हेडक्वार्टर लम्बे समय तक गोवा में रहा. वहीं मेरे बेटे अमर तथा बेटी भागीरथी का जन्म हुआ. माता-पिता के स्वर्गवास होने के बाद पहाड़ की तरफ आना जाना धीरे धीरे कम होता गया. रिटायरमेंट के बाद तो वहाँ बसना बहुत दुरूह लग रहा था. इसलिए मैंने अपने लिए ‘गेटवे ऑफ पहाड़’ कहे जाने वाले शहर काठगोदाम में मकान लायक जमीन का प्लाट खरीद कर छोड़ दिया था, जिस पर अब एक तीन कमरों का सुन्दर सपनों का घर बनवाया. दोनों बच्चों को सेंट्रल स्कूल की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई के लिए केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम भेजा. दोनों ने आईटी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया बेटे अमर को एक अन्तराष्ट्रीय आईटी कम्पनी में नौकरी मिल गई. वह वर्तमान में इंग्लैंड में रहता है. बेटे की शादी के लिए मुझे ज्यादा कसरत नहीं करनी पड़ी. मेरी अल्मोड़ा वाली साली ने अपनी भतीजी से उसका रिश्ता करवाकर मुझे बड़ी मदद दी. लेकिन बेटी भागीरथी के रिश्ते के लिए मुझे बहुत पापड़ बेलने पड़े, जो कि निरर्थक साबित हुए. मेरे जैसे जड़-जमीन से उखड़े हुए लोगों को या तो अपने जैसा ही कोई मिल जाए, या फिर ईश्वर की कृपा से ठीक लड़का मिल जाये, वरना रिश्ते तलाशना बहुत कठिन काम है, मेरा कटु अनुभव तो यही कहता है.

जाति-बिरादरी में दूर दूर तक ऐसा कोई लड़का नहीं मिला, जो भागीरथी के योग्य हो. दोस्तों-पड़ोसियों की सलाह पर अखबारों में शादी के विज्ञापन दिये. उनके जवाब तो बहुत आये - पचास से अधिक लोगों ने पत्राचार करके हमसे जानकारी मांगी, पर जब उनको बताया गया कि लड़की बंगलूरू में नौकरी करती है तो आगे बात नहीं बढ़ी. कुछ कुमाउनी/गढ़वाली लड़कों के माता-पिता ने रिश्ते में रूचि दिखाई थी पर जब बात आगे बढ़ती तो अनेक प्रश्नचिन्ह सामने आ जाते थे. इसमें उनके ज्योतिषियों व पुरोहितों का रोल अहम होता था. एक पण्डित जी ने गणना करके बताया कि ‘लड़की  की कुंडली नकली बनाई गयी है'. जन्मलग्न चिन्ह के अनुसार लड़की को साँवली- अनपढ़ होना चाहिये था.’ दूसरी जगह से जवाब आया कि लड़का-लड़की के चिन्हों में नाड़ीभेद खडकास्ट् है’, तीसरी जगह से बताया गया कि ‘लड़की की लम्बाई बहुत कम है. हमारा लड़का तो छ: फुट लम्बा है’. चौथी जगह से प्रत्युत्तर मिला, ‘लड़की के ग्रह लड़के से ज्यादा शक्तिशाली हैं इसलिए मेल नहीं खाते हैं’. पांचवी जगह से बताया गया कि ‘लड़की के ग्रह सास-ससुर को टोकने (मारने) वाले है’ एक विद्वान पण्डित ने तो यहाँ तक कह दिया कि इसकी कुंडली में शादी का योग है ही नहीं'. ऐसे अनेक हृदयविदारक सन्देश मिलते रहे, जिससे मैं और मेरी धर्मपत्नी बहुत दु:खी और चिंतित हो गए.

पिछली गर्मियों में जब भागीरथी एक महीने की अपनी छुट्टी लेकर घर आई तो सारी व्यथा-कथा से परिचित हो गई. किसी समझदार लड़की के लिए इससे बड़ी दुखदाई बात क्या हो सकती है कि सब तरह से योग्य व चरित्रवान होने के बावजूद घटिया किस्म के लड़के अथवा उनके परिवार वाले उसे किसी न किसी बहाने नापसंद करते रहें.

मेरी बेटी मगर बहुत समझदार है. उसने अपनी माँ व मेरे दिल के दर्द को महसूस किया और सामान्य होकर खुशी खुशी बोली, “आप लोग मेरे शादी की चिंता करना बिलकुल छोड़ दें. अगर मुझे कोई अपने लायक सही लड़का मिल गया तो मैं खुद आपको सूचित करूंगी आपको भरोसा देती हूँ की मेरे निर्णय से आपकी इज्जत पर कोई आंच नहीं आयेगी.”

सचमुच हुआ भी ऐसा ही, पिछले महीने उसने हम दोनों को बंगलूरू बुलाया हमसे भी पहले हमारा बेटा अमर तथा बहू वहाँ पहुंचे हुए थे. वहीं जाकर हमको पता चला कि श्रीराम शर्मा नाम के एक सहकर्मी के साथ भागीरथी ने अपनी शादी का रिश्ता पक्का कर रखा था. मैं अपने कुछ नजदीकी मित्रों/दोस्तों को विवाहोत्सव में बंगलूरू बुलाना चाहता था पर समय बहुत कम था. वैदिक रीति फेरे पड़वा कर हम बिटिया का विधिवत कन्यादान करके एक बहुत बड़े बोझ से हल्के हो गए. दामाद श्रीराम शर्मा के माता-पिता, भाई बन्धु और नजदीकी रिश्तेदार इस विवाहोत्सव में मौजूद थे. यह परिवार चेन्नई में निवास करता है, पर मूल रूप से राजस्थान के मारवाड़ इलाके के हैं. पिछली दो पीढ़ियों से चेन्नई में कपड़े का कारोबार कर रहे हैं. परिवार में नौकरी करने वाला पहला व्यक्ति मेरा दामाद ही है. इस परिवार से रिश्ता जुड़ने पर अनेक सुखद अनुभव हो रहे हैं.

बेटी-दामाद दोनों खुश हैं एक ही कम्पनी में जूनियर एक्जेक्यूटिव के पदों पर हैं. हम दोनों पति-पत्नी इस संयोग से अभिभूत हैं. काठगोदाम लौट आये हैं. अब अप्रेल महीने में समधी जी को सपरिवार यहाँ आने का निमंत्रण दे आये हैं, यहाँ सभी स्वजनों को आमन्त्रित करके अपनी खुशी में शामिल करना है. दिल से ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि वह जो भी करता है, हमारे भले के लिए करता है.
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