न्यायमूर्ति दत्तात्रेय देवदत्त दहाणूकर को सब लोग ‘थ्री-डी जज साहब’ नाम से ज्यादा जानते हैं. वे कई अदालतों में जज रहे, और अंत में हाईकोर्ट के जज बन कर रिटायर हुए. अब पूना में बुधवारपेठ में अपने पुस्तैनी घर में रहते हैं. न्यायाधीशों के बारे में आम लोग सोचते हैं कि वे एकांतप्रिय व असामाजिक लोगों जैसे होते हैं, लेकिन ये उनके व्यवसाय की मजबूरी है क्योंकि उन्हें सुरक्षा कवच में रहना पड़ता है. वे आम लोगों की तरह ही संवेदनशील होते हैं, पर नित्यप्रति के सीमित सम्पर्कों व कानूनी जिंदगी होने के कारण कभी कभी अपने बेटे- बेटियों के अनुचित व्यवहार पर भी प्रतिक्रया कर सकते हैं.
जज साहब का नवी मुम्बई में भी एक शानदार फ़्लैट है, जहाँ उनका बेटा करुणासागर अपनी पत्नी व बेटे के साथ रहता है. करुणासागर मुम्बई के शेयर बाजार का एक बड़ा कारोबारी है. उसे यथा नाम तथा गुण नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अपनी सम्पति तथा लेनदेन में कभी भी नरमी नहीं दिखाता. सच तो यह है कि वह छुटपन से ही रुपयों-पैसों के गणित में प्रवीण है. स्वाभाविक रूप से लालची है. उसको मालूम है कि पिता की जायदाद का पूरा वारिस वही है, फिर भी शंकित रहता है कि कहीं पिताश्री उसमें से हिस्सा निकाल कर बहिनों में न बाँट दें क्योंकि पिता का दिल बेटियों के बहुत नजदीक रहा करता है.
जज साहब की दो बेटियाँ भी हैं. दोनों विवाहित हैं. एक कोल्हापुर में और दूसरी सांगली अपने अपने परिवारों के साथ रहती हैं. दोनों ही बेटियाँ वहीं स्थानीय कालेजों में पढ़ाती भी हैं. भगवत कृपा से दोनों ही सद्बुद्धि वाली हैं, संपन्न और सुखी हैं.
करुणासागर की शंकाएं निराधार भी नहीं हैं क्योंकि गाहे बगाहे माता-पिता दोनों ही खूब सारा रुपया व कीमती सामान बहिनों को दिया करते हैं. इस बाबत करुणासागर कई बार ऐतराज व तकरार कर चुका है. उसका ये व्यवहार जज साहब को बहुत नागवार गुजरता रहा है.
जज साहब ने अपने कार्यकाल में सैकड़ों दीवानी मुकद्दमों के फैसलों में पारिवारिक बंटवारों के झगडों में स्त्रियों के पक्ष में बहुत बढ़िया निर्णय दिये थे. बेटियों के प्रति उनके आत्मिक सत्यभावना उनकी डायरी के मुखपृष्ट पर एक कवयित्री मलिक परवीन की लिखी निम्न कविता की पंक्तिया बहुत खूबसूरती से उजागर करती हैं:
मानव सभ्यता की नींव हैं बेटियाँ,
भगवान की अद्भुत रचना हैं बेटियाँ,
खुश नसीबों के घर जन्म लेती हैं बेटियाँ,
जिंदगी के कर्ज से मुक्त कराती हैं बेटियाँ,
एक पिता का गरूर होती हैं बेटियाँ,
एक माँ की प्रतिरूप होती हैं बेटियाँ,
प्यार और ममता का नाम है बेटियाँ,
किसी के भी घर की शान हैं बेटियाँ,
हर रिश्ते का आधार हैं बेटियाँ ,
घर को खुशियों से महकाती हैं बेटियाँ.
जज साहब सोचते हैं कि ‘अगर आम के पेड़ पर बबूल की फलियाँ उग आयें तो क्या किया जाये?’ बेटे के आये दिन की किचकिच से वे बहुत दु:खी रहते हैं. एक दिन जब ज्यादा ही बहसबाजी हो गयी तो उन्होंने बेटे से कह डाला, “तुम नवी मुम्बई वाले घर को खाली कर दो, अपने रहने का अलग इन्तजाम कर लो.” धीरे धीरे आपसी रिश्ते में इतनी खटास आ गयी कि जज साहब को लगने लगा कि करुणासागर जायदाद के लिए उनके खिलाफ किसी हद तक जा सकता है. उसके हथकंडे व धमकी भरे तेवर देखकर उन्होंने हाईकोर्ट में अर्जी दे कर खुद के लिए सुरक्षा की गुहार लगा दी और हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश देकर उनको चौबीसों घन्टे गार्ड मुहय्या करा दिया तथा करुणासागर को पाबन्द कर दिया.
अब देखिये, दौलत की कमी ना इधर है और ना उधर, लेकिन सोच में भारी फर्क होने से बेटा, बहू और पोता सभी दुश्मनों की तरह व्यवहार करने लगे हैं. ये मामला जब स्थानीय/राष्ट्रीय अखबारों की सुर्ख़ियों में आया तो दोनों बेटियाँ दौड़ी दौड़ी पूना आ गयी और भाई को भी बुला लिया. माता-पिता दोनों के सामने दोनों बहिनों ने कहा, “क़ानून में पिता की जायदाद में बेटियों के हक का प्रावधान जरूर है, पर हमें इसमें से कुछ नहीं चाहिए, हमें केवल स्नेह और प्यार चाहिए.”
थ्री-डी अभी भी अपने बेटे से बहुत नाराज थे. वे बोले, “अदालत ने आप लोगों के बयान सुन लिए है, इसका फैसला समय आने पर सुना दिया जाएगा.”
जज साहब का नवी मुम्बई में भी एक शानदार फ़्लैट है, जहाँ उनका बेटा करुणासागर अपनी पत्नी व बेटे के साथ रहता है. करुणासागर मुम्बई के शेयर बाजार का एक बड़ा कारोबारी है. उसे यथा नाम तथा गुण नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अपनी सम्पति तथा लेनदेन में कभी भी नरमी नहीं दिखाता. सच तो यह है कि वह छुटपन से ही रुपयों-पैसों के गणित में प्रवीण है. स्वाभाविक रूप से लालची है. उसको मालूम है कि पिता की जायदाद का पूरा वारिस वही है, फिर भी शंकित रहता है कि कहीं पिताश्री उसमें से हिस्सा निकाल कर बहिनों में न बाँट दें क्योंकि पिता का दिल बेटियों के बहुत नजदीक रहा करता है.
जज साहब की दो बेटियाँ भी हैं. दोनों विवाहित हैं. एक कोल्हापुर में और दूसरी सांगली अपने अपने परिवारों के साथ रहती हैं. दोनों ही बेटियाँ वहीं स्थानीय कालेजों में पढ़ाती भी हैं. भगवत कृपा से दोनों ही सद्बुद्धि वाली हैं, संपन्न और सुखी हैं.
करुणासागर की शंकाएं निराधार भी नहीं हैं क्योंकि गाहे बगाहे माता-पिता दोनों ही खूब सारा रुपया व कीमती सामान बहिनों को दिया करते हैं. इस बाबत करुणासागर कई बार ऐतराज व तकरार कर चुका है. उसका ये व्यवहार जज साहब को बहुत नागवार गुजरता रहा है.
जज साहब ने अपने कार्यकाल में सैकड़ों दीवानी मुकद्दमों के फैसलों में पारिवारिक बंटवारों के झगडों में स्त्रियों के पक्ष में बहुत बढ़िया निर्णय दिये थे. बेटियों के प्रति उनके आत्मिक सत्यभावना उनकी डायरी के मुखपृष्ट पर एक कवयित्री मलिक परवीन की लिखी निम्न कविता की पंक्तिया बहुत खूबसूरती से उजागर करती हैं:
मानव सभ्यता की नींव हैं बेटियाँ,
भगवान की अद्भुत रचना हैं बेटियाँ,
खुश नसीबों के घर जन्म लेती हैं बेटियाँ,
जिंदगी के कर्ज से मुक्त कराती हैं बेटियाँ,
एक पिता का गरूर होती हैं बेटियाँ,
एक माँ की प्रतिरूप होती हैं बेटियाँ,
प्यार और ममता का नाम है बेटियाँ,
किसी के भी घर की शान हैं बेटियाँ,
हर रिश्ते का आधार हैं बेटियाँ ,
घर को खुशियों से महकाती हैं बेटियाँ.
जज साहब सोचते हैं कि ‘अगर आम के पेड़ पर बबूल की फलियाँ उग आयें तो क्या किया जाये?’ बेटे के आये दिन की किचकिच से वे बहुत दु:खी रहते हैं. एक दिन जब ज्यादा ही बहसबाजी हो गयी तो उन्होंने बेटे से कह डाला, “तुम नवी मुम्बई वाले घर को खाली कर दो, अपने रहने का अलग इन्तजाम कर लो.” धीरे धीरे आपसी रिश्ते में इतनी खटास आ गयी कि जज साहब को लगने लगा कि करुणासागर जायदाद के लिए उनके खिलाफ किसी हद तक जा सकता है. उसके हथकंडे व धमकी भरे तेवर देखकर उन्होंने हाईकोर्ट में अर्जी दे कर खुद के लिए सुरक्षा की गुहार लगा दी और हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश देकर उनको चौबीसों घन्टे गार्ड मुहय्या करा दिया तथा करुणासागर को पाबन्द कर दिया.
अब देखिये, दौलत की कमी ना इधर है और ना उधर, लेकिन सोच में भारी फर्क होने से बेटा, बहू और पोता सभी दुश्मनों की तरह व्यवहार करने लगे हैं. ये मामला जब स्थानीय/राष्ट्रीय अखबारों की सुर्ख़ियों में आया तो दोनों बेटियाँ दौड़ी दौड़ी पूना आ गयी और भाई को भी बुला लिया. माता-पिता दोनों के सामने दोनों बहिनों ने कहा, “क़ानून में पिता की जायदाद में बेटियों के हक का प्रावधान जरूर है, पर हमें इसमें से कुछ नहीं चाहिए, हमें केवल स्नेह और प्यार चाहिए.”
थ्री-डी अभी भी अपने बेटे से बहुत नाराज थे. वे बोले, “अदालत ने आप लोगों के बयान सुन लिए है, इसका फैसला समय आने पर सुना दिया जाएगा.”
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काश सभी बेटियां ऐसी ही हों।
जवाब देंहटाएंबेटियाँ पिता को अच्छा समझती हैं..सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसच , बेटियाँ होती ही ऐसी है । बहुत सुन्दर रचना।
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