सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

जगत-कल्याणी

मानव जीवन कितना छोटा होता है, जब तक हम इसके बारे में ठीक से सोचने समझने लग पाते हैं इसकी शाम हो जाती है. कुछ जगत-कल्याणकारी लोग अपनी पारी को अल्पायु में ही खेल कर पैविलियन लौट जाया करते हैं. स्वामी विवेकानंद, गणितज्ञ रामानुजन, व आदि शंकराचार्य इसके उदाहरण हैं. इनके अलावा अनेक मनीषी ऐसे हैं, जिनका इतिहास आम लोगों को मालूम नहीं पड़ता है. यह स्थिति केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम क्षेत्रों में उदित होने वाले/अवतार लेने वाले महान व्यक्तियों के बारे में है. यों हम करोड़ों लाखों लोग बिना कुछ खास काम किये ही चले भी जाते हैं. कुछ ही लोग होते हैं, जिनको उनके द्वारा किये गए सद्कर्मों की वजह से लंबे समय तक याद किया जाता है.

अर्वाचीन महिलाओं में मदर टेरेसा एक नाम है, जो पिछली सदी की महान विभूतियों में एक थी, जिनका मिशन मानव-सेवा था. एल्बेनिया मूल के परिवार में पैदा होकर हमारे देश में आकर दीन-दु:खी लोगों की सेवा में स्वयं को समर्पित किया अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनको हम श्रद्धा-आदर से याद करते हैं क्योंकि उनका जीवन पर- सुखचिंतन व दरिद्र नारायण की सेवा में समर्पित रहा. उनका मिशन आफ चैरिटी उनको हमेशा अमर रखेगा.

इसी तरह सरला बहन के नाम से प्रसिद्द कैथरीन मेरी हेलमैन, समाजसेवी, शिक्षाविद एवं सर्वोदयी महिला इंग्लैण्ड में पैदा हुई और भारत के कुमाऊं क्षेत्र को अपना कार्यस्थल बना कर, कौसानी में लक्ष्मी आश्रम नाम से संस्था बना कर अद्वितीय कार्य किया. सरला बहन नाम उनको गाँधी जी ने दिया था. अपने नाम को पूरी तरह सार्थक करते हुए उन्होंने महिला जागरण के क्षेत्र में इस पिछड़े इलाके को अपनी कार्यस्थली बनाया.

इंग्लैण्ड में वे भारतीय क्रांतिकारी विद्यार्थियों के संपर्क में आई और प्रभावित होकर ३१ वर्ष की उम्र में भारत आ गयी तथा यहीं की होकर रह गयी. उन्होंने स्वराज आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जेल भी जाना पड़ा. यहाँ के मौसम/वातावरण में जब वे बीमार रहने लगी तो सन १९४१ में उनको कुमायूं की तरफ जाने की सलाह दी गयी. कौसानी, जिसे गाँधी जी ने छोटे स्विट्जरलैंड की संज्ञा दी थी, वहां स्वास्थ्य लाभ करने लगी. यहाँ उन्होंने कस्तूरबा महिला उत्थान नाम की संस्था बनाई, जिसमें आस-पास की ग्रामीण महिलाओं को सर्वोदयी शिक्षा दी जाने लगी. प्रारम्भ में ये बहुत छोटे स्तर पर था, बाद में एक सैन्य अधिकारी द्वारा अपना बंगला+जमीन दान में दिए जाने पर, उसकी पत्नी लक्ष्मी देवी के नाम से संस्था का नाम लक्ष्मी आश्रम हो गया. लगभग ११ एकड़ जमीन में फैले इस आश्रम में खेती भी की जाती है तथा दूध के लिए गायें भी पाली जाने लगी. आम लोग इसे आज भी सरला आश्रम ही कहा करते हैं. आश्रम में आसपास के ग्रामीण आँचल की लडकियां, निराश्रित महिलायें व गरीब-दलित लडकियां थी, जिन्हें ग्रामोद्धार की शिक्षा के साथ साथ स्कूली शिक्षा भी दी जाती रही है.

यह गाँधी जी का ग्राम स्वराज्य का एक अनूठा प्रयोग भी था, जो महिला उत्थान के साथ साथ राष्ट्रीय जागरण के प्रति समर्पित था.

आजादी के बाद उनको ससम्मान भारत की नागरिकता भी दी गयी. हमारे देश के प्रति उनका समर्पित जीवन कभी भुलाया नहीं जा सकता है.

सरला बहन वृद्धावस्था में ब्रोंकाइटिस से पीड़ित रही और सन १९८२ में नैनीताल में स्वर्गवासी हो गई.
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6 टिप्‍पणियां:

  1. जामकारिपूर्ण आलेख... बहुत कम लोगों में होता है ऐसा सेवा भाव

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  2. In such a pacey life we never realize and appreciate the great work done by these people whether for humanity , social welfare or lifting the society. Thanks for making us remember these great personalities again. Hearty thanks for making us think about our life again. I salute all those who are not with us physically but their sacrifice and contribution will always be highly appreciated.

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  3. Sorry for interruption in your blog. I just want to share a portrait i made for Mother Teresa. https://youtu.be/t1Q-Y7ADVIE I hope you like it and share it, thanks for your time.

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  4. It is my pleasure to see the portrait of Mother Teresa. Thank you for your comments.I will share it.

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