फजलुर्रहमान और अतीकुर्रहमान दोनों भाई एक पुरानी सीमेंट फैक्ट्री में बतौर मजदूर भर्ती हुए थे. अपनी मेहनत व कार्यकुशलता के चलते छोटे भाई फजलू को वर्कशाप में फिटर तथा बड़े भाई अतीक को वेल्डर बना दिया गया. दोनों भाईयों ने मदरसे में ही दो जमात उर्दू पढ़ी थी बाकी वे थे अनपढों की श्रेणी में. उन दिनों उम्र का सर्टीफिकेट भी नहीं होता था न इसे गंभीरता से लिया जाता था. डाक्टरी जांच जरूर होती थी, कंपनी का मेडिकल ऑफिसर अंदाजे से या पूछ कर रिकार्ड में उम्र लिख देते थे. इसी लीक पर लोग काम करके साठ वर्ष की आयु होने पर हंसी-खुशी रिटायर हो जाया करते थे. बाद में कर्मचारी राज्य बीमा आदि कई सरकारी अधिनियम आये तो फैक्ट्री के रिकार्ड के अनुसार सबकी उम्र दर्ज कर ली गयी और कर्मचारियों के अंगूठे–दस्तखत ले लिए गए.
जब फजलू को रिटायरमेंट से छ: महीने पूर्व विधिवत सूचना दी गयी तो उसने लिख कर दिया कि ‘बड़े भाई अतीक की अभी दो साल बाकी सर्विस बताई जा रही है ऐसे में उसको अभी रिटायर नहीं किया जाये’. इस सम्बन्ध में वह ग्राम पंचायत से भी लिखवाकर लाया कि ‘अतीकुर्रहमान बड़ा भाई व फजलुर्रहमान छोटा भाई है, जिनकी उम्र में दो साल का अंतर है.’
इस दलील को मैनेजमेंट ने नहीं माना. जनरल मैनेजर राघवन बड़े सख्त पर व्यवहारिक किस्म के प्रशासक थे. उन्होंने परिस्थितियों पर अपनी टिप्पणी दी कि ‘इस हिसाब से अतीक को पहले रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन मेनेजमेंट रिकार्ड के अनुसार जाएगा जिसमें कर्मचारी ने खुद अंगूठे/दस्तखत किये हैं. इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे अन्य बहुत से मामलों में विवाद उत्पन्न हो सकता है.’
फजलू लेबर कोर्ट की शरण में चला गया लेकिन रिटायरमेंट की निश्चित तिथि तक वहाँ तारीखें ही बदलती रही. जज साहब डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से रिटायर्ड थे उन्हें लेबर कोर्ट व लेबर लाज की विशेष जानकारी नहीं थी पर उनको यहाँ पीठासीन होने से पहले ये पाठ पढ़ाया गया था कि ‘वर्कर, वीकर सेक्शन में है और मैनेजमेंट बहुत समर्थ व ताकतबर रहता है.’ अत: हर केस में वे कामगारों के प्रति विशेष नरम रुख रख कर फैसले देते थे. इस केस में उन्होंने लिखा कि ‘गवाहों के साक्ष्य के आधार पर यह सिद्ध होता है कि फजलुर्रहमान, अतीकुर्रहमान का छोटा भाई है इसलिए उसकी रिटायरमेंट की तारीख कम से कम अतीकुर्रहमान से एक साल बाद होनी चाहिए. ऐब्सेंस पीरियड के लिए आधे वेतन के साथ उसे काम पर लिया जाये.’
कम्पनी के वकीलों ने इस फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करने की सलाह दी पर जनरल मैनेजर ने सोचा कि फैसला होने में बरसों लगेंगे और वकीलों को लाखो रुपये चुकाने होंगे. ये भी था कि हाईकोर्ट का भी कुछ भी फैसला हो सकता था. अत: उन्होंने लेबर कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए फजलू को काम पर आने का और टोकन देने का आदेश कर दिया, पर साथ में स्टाफ को ये भी कह गिया कि फजलू को टाईम आफिस के गेट पर एक स्टूल लगा कर बैठने की व्यवस्था कर दी जाये. उसे डिपार्टमेंट में न भेजा जाये.’
फजलू जब जीत की खुशी लेकर फैक्ट्री लौटा तो सभी संगी-साथी कर्मचारियों ने उसे बधाईयां दी, हाथ मिलाए. कुछ दिनों तक ये क्रम चलता रहा. पर इस तरह बिना काम के बैठे रहना फजलू को अखर रहा था. कुछ लोग कमेन्ट करने लगे कि “चाचा मजा आ रहा है ना? बैठे-बैठे तनख्वाह ले रहे हो?” ये चलता रहा और एक दिन किसी ने पीछे से ये कमेन्ट कर दिया कि “अरे, फजलू तो हराम की रोटी खा रहा है.” उस दिन फजलू सो नहीं सका और उसने ठान ली कि वह अगले ही दिन काम की मांग करेगा.
डिपार्टमेंट ने उसे काम बताने से मना कर दिया. बहुत मानसिक उधेड़बुन के बाद वह जनरल मैनेजर की केबिन में पहुँच गया और सलाम बजा कर बोला, “साहब मुझे डिपार्टमेंट में भेज कर काम बताइये. मैं हराम की रोटी नहीं खा सकता हूँ.” जी.एम. राघवन ने कहा, “कोर्ट ने ऐसा तो नहीं लिखा है कि आपको कहाँ बिठाया जाये. आपकी तनख्वाह तो चालू है ही.”
फजलू हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा कर बोला, "साहब अच्छा है, आप मुझे रिटायर कर दो.”
जी.एम. बोले, “ठीक है, लिख कर दे दो.”
इस प्रकार फजलुर्रहमान स्वेच्छा से दुबारा रिटायर हो गया और मैनेजमेंट के पैंतरे के सामने हार गया. लेकिन उसको ये संतोष रहा कि वह हलाल की रोटी खायेगा.
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सार्थक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
Badhiya
जवाब देंहटाएंsundar alekh.
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