नटवर की श्रृष्टि में
ऊष्मा पर वृष्टि की
पड़ती है दृष्टि भी.
यों ही पलटते हैं-
पल-क्षण घटी- घटा,
दिन माह और वर्ष भी.
सकुशल क्षेम देती है
प्रतीक्षा तेरे पत्र की
इसी धुन में विस्मृत होता हूँ
पत्र लिखना मैं भी.
यथायोग्य शब्द की
यथायोग्य व्याख्या हो,
इस मन के भावों की
मन ही मन व्याख्या हो.
***
बहुत सुन्दर रचना , बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.
intersting sir,,,
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder kavita
जवाब देंहटाएंयथायोग्य शब्द की
जवाब देंहटाएंयथायोग्य व्याख्या हो,
इस मन के भावों की
मन ही मन व्याख्या हो.
गहरे भाव.