मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

क्या है?

क्या है,
ये मत पूछो.
जो स्वयं सिद्ध हो
ऐसी कोई भी प्रतिक्रिया
सिद्धांत हुआ करती है.

     ये कोई तृष्णा नहीं है,
     ये कोई क्षुधा नहीं है,
     ये तो इक सच्चाई है
     अन्तरंग अभिलाषा है.

ये तो इष्ट ह्रदय का है,
लतिका से तरु का आलिंगन
नहीं है कोई अनिष्ट पिपासा.
उसका तो ये अवलंबन है
जीवन है
अपनेपन की परिभाषा है.

     ये सिद्ध साध्य है
     एक आराध्य है
     तो एक आराधक है.
     अवरोध नहीं हो
     करने दो साधना.

ये उत्कंठा है
एक अनकही भाषा है
अप्रदित दिलासा है
ये मत पूछो
क्या है?
          ***

2 टिप्‍पणियां:

  1. "जो स्वयं सिद्ध हो –
    ऐसी कोई भी प्रतिक्रिया
    सिद्धांत हुआ करती है."

    बेहतरीन पंक्तियाँ.

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  2. पूछा जितना,
    उतना ही,
    हम पूंछ बढाते
    चले गए.

    लंका में जब
    आग लगी तो
    बुझी आशंका,
    हम पूछ पूछ के,
    पूंछ घटाते चले गए

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