रजत गर्ग मुरादाबाद शहर के रहने वाले हैं. धनबाद, पश्चिम बंगाल के स्कूल आफ माइनिंग से ग्रेजुएशन करने के बाद उनको कोल इंडिया की झरिया माइन्स में माइनिंग इंजीनियर की पोस्टिंग मिल गयी थी. शादी हो गयी, एक बेटा भी अब छ: साल का हो गया, तभी उनको तमिलनाडु के डालमियापुरम में डेप्युटी मैनेजर माइनिंग का ऑफ़र मिला, पे पॅकेज दुगुना था इसलिए उन्होंने यहाँ इस्तीफ़ा देकर डालमियापुरम जाने का फैसला कर लिया.
इतने में हसन दौड़ कर आया और रजत के पास आकर झपट कर टॉफी व चिप्स का पैकेट ले लिया. और बहुत प्यार से बोला, “अँकल, आपसे भाभी जान डर रही हैं. बगल वाली मालिनी आंटी को बुलाने जा रही हैं.”
माइनिंग डिपार्टमेंट में बड़ा कठोर कारोबार होता है. सर्दी, गर्मी, बरसात, तीनों मौसमों में फील्ड में रहना पड़ता है. सोचा कि अन्डर ग्राउंड माइन्स से निकल कर ओपन कास्ट में बहुत राहत भी मिलेगी. इस प्रकार कोयले के काले झंझटों से मुक्त हो कर रजत गर्ग सुदूर डालमियापुरम पहुँच गए. अपनी पत्नी व बच्चे को अपने पैतृक निवास मुरादाबाद पहुँचा आये और इरादा किया कि जब वहाँ व्यवस्थित हो जायेंगे तब इनको लेकर आएंगे.
डालमियापुरम में एक बड़ा सीमेंट प्लांट है जिसकी ओपन कास्ट माइन्स हाई ग्रेड लाइम स्टोन से लबालब भरी हैं, ड्रिलिंग-ब्लास्टिंग करके पत्थर तोड़ कर शावलों द्वारा बड़े बड़े डम्फरों में भर कर सीधे फैक्ट्री के क्रशर तक भेजने का काम होता है. दिन-रात तीनों शिफ्टों में काम चलता रहता है, पर यहाँ भी वही मारा-मारी, टारगेट पूरा होना चाहिए. रजत शिफ्ट इंचार्ज थे इसलिए ज्यादा जिम्मेदारी हो गयी.
बचपन में रजत गर्ग बहुत प्रकृति-प्रेमी, साहित्य-प्रेमी थे पर नौकरी लगने के बाद सब काफूर हो गया. पत्थरों के संग जिंदगी चल रही है. कभी-कभी वे अपने मामा जी को कोसते भी हैं, जिन्होंने उनको धनबाद की राह पकड़ाई थी. कहा था “इसमें जॉब अपोर्चुनिटीज बहुत हैं.” जॉब तो आगे से आगे मुँह बाए खड़े हैं, पर जिंदगी के सुनहरे दिन इस तरह खटते रहेंगे, ये अनुमान नहीं था. सुबह से शाम तक भारी सेफ्टी जूतों में बंधे रहो, हेलमेट से ढके रहो, और साथ में संवाद के लिए ड्राइवर-डम्फर और धूल-धक्कड. हाँ इतना सन्तोष था कि कम्पनी ने एक अच्छा फर्निश्ड बंगला दे रखा है. आस-पास संगी साथी, सभी साउथ इन्डियन, या उड़िया-बंगाली हैं. रजत गर्ग सोचते हैं कि होली-दिवाली इन लोगों के साथ कैसे मनेगी?
घर की, यानि पत्नी दीपाली और पुत्र सलिल की बहुत याद आती है. मोबाइल से बात करते रहते हैं, पर एक महीना हो गया है यहाँ मन बिलकुल नहीं लग रहा है. गेस्ट हाउस में खाना भी इडली, दोसा, साम्भर, और रसम मिलता है. मन होता है, गेस्ट हाउस वालों से कहें कभी खीर-पूड़ी, दाल-चावल, सब्जी-रोटी भी खिलाया करो. फिर सोचते हैं कि अगले महीने जाकर दीपाली-सलिल को लाने के बाद सब ठीक हो जाएगा.
वर्कशॉप में रजत की मुलाक़ात चाँद अली से हो गयी तो बहुत खुशी हुई क्योंकि चाँद ने बताया कि वह भी मुरादाबाद के कटघर का रहने वाला है. चलो एक तो अपने मुलुक का प्राणी मिला. उससे बात हुई तो उसने बताया कि वह मध्य प्रदेश में कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से डीजल मैकेनिक का कोर्स करके पिछले साल ही डालमियापुरम आया है. शादी इसी साल की है, बीवी को पिछले महीने ही यहाँ लेकर आया है, और उसके साथ के लिए अपने ६ वर्षीय छोटे भाई हसन को भी लाया है. रजत को ऐसा लगा कि उसे अपने रिश्तेदार मिल गये हैं. वह उसी दिन शाम को चाँद के क्वाटर पर उनसे मिलने पहुँच गए. हसन के लिए ढेर सारे चाकलेट व जेम्स के पैकेट लेकर गये थे. हसन बहुत प्यारा बच्चा है उसे देख कर अपने सलिल की बड़ी याद आयी. चाँद अली व उसकी बीवी सितारा ने चाय-नमकीन से उसका स्वागत किया. उनके अपनेपन तथा बात व्यवहार से उसको जैसे रेगिस्तान में कोई नखलिस्तान मिल गया था.
इसके बाद अगले दिनों में भी कभी कभी वे चाँद के क्वाटर पर जाते रहे. चाहे बाहर बाहर ही गए हों. उनको लगता था कि दीपाली-सलिल आयेंगे तो उनको भी इनकी कम्पनी मिल जायेगी. इस दौरान आठ-दस दिनों का गैप हो गया वे चाँद की तरफ नहीं आ सके, कुछ व्यस्तता भी रही. एक शाम कुछ हल्की बूंदा-बूंदी हो रही थी उनकी उदासी बढ़ रही थी तो उन्होंने गेस्ट हाउस खाना खाने के लिए पैदल चलते हुए पहले चाँद अली के परिवार से मिलते हुए जाने का निश्चय किया. उस दिन वे कुछ ज्यादा ही होमसिक थे क्योंकि दीपाली ने उनको फोन पर बताया था कि सलिल उनको बहुत याद करने लगा है.
जब वे चाँद अली के क्वाटर पर पहुंचे तो हसन बरामदे में ही खड़ा था. “अँकल आ गए,” चिल्लाता हुआ अन्दर जाकर अपनी भाभी को बुला लाया. सितारा ने रजत को "आदाब" कहते हुए बताया कि चाँद अली तो हॉकी खेलने टीम के साथ कोयम्बटूर गया हुआ था. चाँद ने रजत को बताया जरूर था कि वह डालमियापुरम की हॉकी टीम की गोल कीपिंग करता है. सितारा ने औपचारिकतावश कहा, “भाई जान बैठिये.” रजत ने हसन को दुलारते हुए विदा ली और चलते-चलते कहा “गेस्ट हाउस जा रहा हूँ, वापसी में आऊँगा.” रास्ते में उनको चाँद अली पर गुस्सा आ रहा था कि बच्चों को इस तरह परदेस में अकेले छोड़ कर खुद खेलने बाहर चला गया.
गेस्ट हाउस से जब वह लगभग एक घन्टे के बाद वापस चाँद अली की तरफ लौटे तो रास्ते में एक स्टोर से हसन के लिए एक पोटेटो चिप्स का पैकेट व कुछ टाफियां खरीदी. जब चाँद अली के क्वार्टर पर पहुँचे तो देखा सितारा छाता लेकर कहीं बाहर जाने को थी, बहुत हल्के छींटे आ रहे थे.
इतने में हसन दौड़ कर आया और रजत के पास आकर झपट कर टॉफी व चिप्स का पैकेट ले लिया. और बहुत प्यार से बोला, “अँकल, आपसे भाभी जान डर रही हैं. बगल वाली मालिनी आंटी को बुलाने जा रही हैं.”
रजत को मानो बिच्छू का डंक लग गया. वह एकदम सहम कर उलटे पैर लौट गया और बोला, “मैं फिर आऊँगा.”
बारिश एकदम बढ़ गयी साथ ही रजत की चाल भी. उसे पता नहीं चला कि वह कैसे अपने बंगले तक पहुँच गया. उसका मन बहुत विचलित और बीमार सा हो गया. उसे एहसास हो रहा था कि घिनोनी सोच से सितारा का मन भी अवश्य बीमार है.
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बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर अहसास दिलाती कहानी .....
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी,फालोवर बन रहा हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...
पोस्ट में आने के लिए आभार,इसी तरह स्नेह बनाए रखे,....
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NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
कहानी का ऐसा अंत होगा, पढ़ते-पढ़ते ऐसा कहीं नहीं लगा।
जवाब देंहटाएंकहानी मानव-मन की गहराई से पड़ताल कर रही है।
आपकी कहानी कहने की अद्भुत कला से विस्मित हूं।
..अंत तक बांध कर, अपरिहार्य परिणाम . बढ़िया कथानक शैली.
जवाब देंहटाएंइंसानी फ़ितरत की अच्छी तरह से पड़ताल करती कथा।
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