हमारे पूर्वजों ने अनेक
प्रकार की धार्मिक आस्थाओं की स्थापना कर रखी है ताकि लोग बुरे कर्म करने से डरते
रहें और सद्कर्मों की तरफ प्रेरित रहें. इन आस्थाओं के लिए अनेक गप्प वाली कहानियां गढ़ रखी हैं. पर गपोड़ा तो गपोड़ा ही होता है. कुछ लोग तो इन्हें नैतिक उपदेश के रूप
में जानते हैं, लेकिन ऐसे भी लोग कम नहीं हैं जो इसे सच्चाई की तरह देखते हैं.
स्वर्ग और नरक की कल्पना भी
इन गल्पों मे खूब होती है. जिनके बारे में कहा जाता है कि दोनों के बकायदा
इलाके/डिपार्टमेंट अलग अलग बंटे हुए हैं. वहाँ के वासियों को मिलने वाली सुविधाएं/ऐश्वर्य
भी उनके द्वारा किये गए पूर्व कर्मों के अनुसार मिला करते हैं. नरक में अभाव हैं,
गन्दगी है, दुःख-बीमारी और तड़प होती है. जबकि स्वर्ग मे फूल हैं, खुशबू है, परियां
हैं, मिष्ठान्न हैं और मौज है.
एक प्रवचनकर्ता स्वामी जी
विस्तार से बता रहे थे कि स्वर्ग मे रहना सद्कर्म आधारित लाइसेंस जैसा है. लोग जो
पुण्य कमाते है, संगृहीत करते हैं, वहाँ जाकर खर्च करते हैं. पुण्य क्षीण अथवा खर्च
हो जाने पर पुन: इसी मृत्युलोक में ठेल दिये जाते हैं. स्वर्ग मे स्थाई रूप से देवता
भी नहीं रह पाते हैं.
यह सच है कि सभी आत्माएं
स्वर्ग का आनन्द लेना चाहती हैं, पर यमराज जी के दरबार मे चित्रगुप्त जी सब का लेखा
जोखा रखते हैं, तदनुसार ही वे प्रवेश के लिए स्वर्ग या नरक का द्वार खुलवाते हैं.
यद्यपि यह आज तक कोई नहीं बता पाया है कि ये काल्पनिक दुनिया कहाँ पर स्थित है.
एक कंजूस वनिक की आत्मा जब
यमदूतों ने चित्रगुप्त के सम्मुख पेश की तो उन्होंने अपना स्थाई रजिस्टर खोला और
पाया कि वनिक ने जिंदगी में कभी कोई सद्कर्म किये ही नहीं थे. उसका बेईमानी भरा जीवन
नरक में भेजने के लिए उपयुक्त था. उन्होंने यमराज जी को रिपोर्ट दी और उसे
नरक मे डालने का आदेश दे दिया. वनिक की आत्मा ने जब उनकी वार्तालाप सुनी तो वह
बोली “महाराज, मैंने एक बार आधी रोटी एक गाय को जरूर खिलाई थी.”
यमराज जी ने दुबारा जांच करवाई तो वनिक आत्मा के बयान को सही पाया. अत: मामले पर
पुनर्विचार किया गया और कहा कि इतने से पुण्य से हम इसे स्वर्ग मे दाखिला नहीं दे
सकते, लेकिन स्वर्ग की एक गाय को यहीं लाकर आधे घन्टे तक इसकी सेवा मे रख दिया
जाये.
तुरन्त एक बड़े सींगों वाली
गाय उपस्थित हो गयी, उसको चित्रगुप्त जी ने कहा कि "तुम आधे
घन्टे तक इस वनिक आत्मा की सेवा में तत्पर रहो.” गाय ने
विनम्रता से वनिक आत्मा से पूछा, “मेरे लिए क्या आदेश है?”
वनिक आत्मा ने आव देखा ना
ताव, बोली, “तुम आधे घन्टे तक यमराज जी को सींग मारती रहो.”
गाय यमराज जी के पीछे पड़ गयी, वे परेशान हो गए और जान बचाने के लिए भागने लगे. चित्रगुप्त से बोले, “इस
गाय को रोको और वनिक आत्मा को स्वर्ग में जाने दो.”
इस प्रकार गाय से पीछा
छूटा. यमराज जी ने वनिक आत्मा से कहा, “तुम स्वर्ग मे चले जाओ.”
इस पर वह बोली, “नहीं महराज मैं ना तो स्वार्ग मे जाना चाहती हूँ और ना
नरक में, आप तो मुझे स्वर्ग और नरक के द्वार के बीच मे एक १०x१० फीट की
दूकान लगाने दो ताकि दोनों तरफ के ग्राहक आते रहें. अपनी दूकान यहाँ भी खूब
चलेगी.
यमराज जी ने कहा, "यहाँ कोई व्यापार नहीं होता है और न यहाँ रुपया, यूरो, डॉलर अथवा यें जैसी कोई मुद्रा होती है. यहाँ कर्म के अनुसार मुआवजा मिलता हैं,” यह कहते हुए बनिक आत्मा को नरक के गोबर खंड मे डाल दिया गया.
यमराज जी ने कहा, "यहाँ कोई व्यापार नहीं होता है और न यहाँ रुपया, यूरो, डॉलर अथवा यें जैसी कोई मुद्रा होती है. यहाँ कर्म के अनुसार मुआवजा मिलता हैं,” यह कहते हुए बनिक आत्मा को नरक के गोबर खंड मे डाल दिया गया.
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कर्मों को उनका फल मिलता ही है..
जवाब देंहटाएंकाश की यह होता हो, जिंदगी संवर जाए फिर..
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