मंगलवार, 31 जुलाई 2012

मेरे ब्लॉगिंग का एक वर्ष

स्वलिखित रचनाओं को नियमितरूप से अपने हिन्दी ब्लॉग, ‘जाले’ में डालते हुए एक वर्ष पूरा हो गया है. इसके पीछे प्रेरणा मेरी बेटी गिरिबाला जोशी रही है, जो अपने पति श्री भुवनचंद्र जोशी व बिटिया हिना जोशी के साथ अटलांटा, (अमेरिका के जार्जिया राज्य) में रहती है. मेरा लेखकीय गुण बेटी में भी स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ है. बनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान, से उसने इनॉर्गनिक कैमिस्ट्री में एम.एससी. किया है, और हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों साहित्य मे उसकी अच्छी पकड़ है. वह बचपन से ही नियमित पढ़ाकू रही है और पिछले कई वर्षों से अपने अंग्रेजी ब्लॉग, ‘The Grist Mill: Bring Your Own Grain’ व हिंदी ब्लॉग, 'द ग्रिस्ट मिल: आटा चक्की' में बहुत अच्छे अच्छे लेख, व्यंग, तथा विविध रचनाएँ प्रकाशित करती रही है. आज उसके ब्लॉग बहुत लोकप्रिय हो गए हैं. उसने अंग्रेजी में भारत के समसामयिक राजनैतिक+सामाजिक हालात पर एक सम्पूर्ण उपन्यास भी लिखा है, जिसके लिए वह प्रकाशक ढूंढ रही है.

मैं कोई बड़ा साहित्यकार तो नहीं हूँ, पर लिखना बचपन से ही मेरा शुगल रहा है. अनेक अंड-बंड कहानियां मैंने लिखी हैं, जो अभी तक पुरानी फाइलों में पडी हैं, कुछ समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती भी रही हैं. उनमें मुझे अब बहुत कमियां नजर आती हैं. इसलिए जब समय मिलेगा तो परिष्कृत करके प्रकाशित करता रहूँगा.

मैंने हिन्दी साहित्य में पंजाब विश्वविद्यालय से संन १९५९ में ‘प्रभाकर’ (हिन्दी आनर्स) की परीक्षा पास की थी. इस परीक्षा की तैयारी से ही मुझे हिन्दी का व्याकरण व समालोचक विषयबोध हुआ जो आगे जाकर मुझे लेखन में बहुत सहायक हुआ है.

मैं अपनी नौकरी के दौरान लगभग २७ वर्षों तक एक ट्रेड यूनियन लीडर की भूमिका भी निभाता रहा. सन १९७० से ७४ तक जब मैं उत्तरी कर्नाटक में स्थानान्ततरित रहा तो वहाँ मैं वामपंथी नेता स्वर्गीय श्रीनिवास गुडी के संपर्क में आया, उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. वे एक ईमानदार गांधीवादी कम्यूनिस्ट थे, सरल सुजान और कर्तव्यनिष्ट थे. किसानों के लिए काम भी करते थे. लोग कहेंगे कम्युनिस्ट और गांधीवादी दोनों एक साथ कैसे हो सकता है? पर वे थे. उन्होंने मुझे अपना जनरल सेक्रेटरी बनाया और मुझे दीवार पर बने बड़े ब्लैक बोर्ड पर ‘जन सन्देश’ लिखने का तौर तरीका भी सिखाया. बाद में जब मैं पुन: लाखेरी, राजस्थान, आ गया तो १९७५ से १९९८ तक कर्मचारी युनियन का पदाधिकारी रहा और फैक्ट्री गेट पर उसी तरह का बड़ा ब्लैक बोर्ड बनवाकर नियमित रूप से हर सुबह मैं एक ब्लॉग की ही तरह चाक से सन्देश लिखा करता था. मेरा यह ब्लैक बोर्ड बहुत लोकप्रिय हुआ क्योंकि संदेशों में अनेक तरह की जानकारी होती थी तथा उसकी प्रामाणिकता भी होती थी.

कवितायें /अकविताएँ मैंने तब लिख मारी थी जब पसीना गुलाब हुआ करता था. अब पिछले कई वर्षों से कोई कविता उपजती ही नहीं है. ब्लॉग में जो कवितायें डालता रहा हूँ, सभी मेरी पुरानी डायरियों में संग्रहित हैं.

पिछले वर्ष जुलाई में जब मैं सपत्नी बेटी-दामाद के आमंत्रण पर अमेरिका प्रवास पर निकला तो गिरिबाला के अनुरोध पर अपनी कविताओं वाली डायरी भी साथ ले गया. गिरिबाला का विचार था कि उसमें से चुनिन्दा कविताओं को इंटरनेट के जरिये सुरक्षित कर लिया जाये. तब मुझे ब्लागिंग की ए बी सी भी मालूम नहीं थी. कंप्यूटर का ज्ञान भी काम चलाऊ ई-मेल तक ही सीमित था. गिरिबाला ने ही मेरा ब्लॉग बनाया, ब्लॉग का नाम ‘जाले’ उसने मेरे १९६७ में छपे कविता संग्रह ‘जाले’ से लिया उसने मुझे ब्लॉग में लिखना बताया और वह स्वयं मेरे लेखन की प्रूफरीडर भी रही, आज भी है. शुरू में तो कुछ छोटी छोटी कवितायें ही इसमें डाली गयी पर बाद में अमेरिका में रहते ही मेरी सरस्वती उजागर रही और मैंने अपने आसपास के चरित्रों-घटनाओं को कहानियों का रूप दे कर हिन्दी सॉफ्टवेयर की सहायता से इसमें डालना शुरू किया. मेरे दामाद जो एक इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर हैं, उन्होंने मेरी इस विधा में मार्गदर्शन किया. कभी कभी अब मुझे लगता है कि लिखने के मसलों का गोदाम खाली हो गया है, पर अभी तक गाड़ी चल ही रही है.

ब्लॉग में एकरसता के रहते पढ़ने वालों को अरुचि ना हो इसलिए ६ खंड बनाये हैं (१) कवितायें, (२) कहानियां, (३) संस्मरण, (४) चुटकुले, (५) किशोर कोना, (६) सामयिकी. चुटकुलों को चुहुल नाम दिया है. ये चुटकुले मेरे द्वारा कई वर्षों से संकलित किये गए हैं. सचाई ये है कि क्लब या किसी मनोरंजन कार्यक्रमों के आयोजनों में अकसर मुझसे लतीफे सुनाने की फरमाईश होती रहती थी मुझे पहले से इसकी तैयारी करनी पड़ती थी. वही सब मैंने पुस्तकाकार में ‘लतीफे जो मुझे याद हैं’ शीर्षक से बटोर रखे हैं. किशोर कोना बच्चों के पठन व ज्ञानवर्धन के लिए लिखना उचित समझा मेरे पोते पोतियां भी बड़े चाव से इसको पढ़ा करते हैं, मुझे खुशी होती है.

हिन्दी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों ने अनेक प्रकार से आपस में चैनल बनाए हुए हैं, जिनमें हमारी वाणी, ब्लॉगर्स ऐसोसिएशन, चर्चामंच, ब्लॉगअड्डा, और साइंस ब्लागर्स आदि हैं. कुछ लेखक मित्र मेरी रचनाओं को उक्त माध्यमों से पढ़ते हैं और अपने लिखे को पढने के लिए मुझे उत्साहित करते रहते हैं. बहुत अच्छा लगता है कि हमारे हिन्दी लेखक परिवार में हजार से भी ज्यादा लोग हैं. लेकिन मुझे एक बात खलती है कि लोग लोग सिर्फ अपनी तारीफ़ चाहते हैं, होना ये चाहिए कि टिप्पणियों में लेखन की कमियों को भी उजागर किया जा सके ताकि सुधारा भी जा सके.

मैं इस लेख द्वारा अपने सभी पाठकों का दिल से अभिनन्दन करता हूँ और चाहता हूँ कि अपनी बेबाक टिप्पणियों से मुझे अनुग्रहीत करते रहें. 

***

6 टिप्‍पणियां:

  1. आप नियमित रूप से लिखते रहं ..

    हम नियमित रूप से आपको पढ रहे हैं ..

    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!

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  2. आपका लिखा पढ़ने में आनन्द आता है, शुभकामनायें..ऐसे ही लिखते रहें..

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  3. I am a regular follower of you and Giribala. Great to hear about Giribala's novel. My best wishes and regards.

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  4. "कवितायें /अकविताएँ मैंने तब लिख मारी थी जब पसीना गुलाब हुआ करता था."

    सुन्दर भाव...

    आपलोग लिखते रहें , हम भी अपना ज्ञान वर्धन करते रहेंगे..
    शुभ कामनाएं ...

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  5. आप बहुत अच्छा लिखते है !
    और मुझे पता है आपकी बेटी
    क्योंकी वो एक रसायनशास्त्री है
    जरूर आपसे भी अच्छा लिखती
    ही होगी !

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  6. you are doing very well.. keep writing..I enjoy reading your blog jab bhi waqt milta hai ees daur-bhag ki zindagi se...Pasina jab Gulab hua karta tha...well said :)

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