जिनकी मूरत दिल में बसी है,
करीब मेरे है, खुद आ गयी है.
प्यार क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक बदन में दो दो रूह आ गयी हैं.
मिली वो तो संध्या सुबह बन गयी है,
अभी तक के सफर की थकां मिट गयी है,
खुशी क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक भूले मुसाफिर को मंजिल मिल गयी है.
बेखुदी में मैं उससे घबरा रहा था,
मिली वो तो वीरां, गुलिस्ताँ हो गया है
मिलन क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक भँवरा कमलनी में कैद हो गया है.
जमाने ने उसको बख्शा नहीं है,
उल्फत का जिसको शऊर आ गया हो,
नशा क्या है जमाने को समझाऊ क्या?
बिन पिए ही ‘गरचे शरूर आ गया हो.
वफ़ा की शिकायत उनसे नहीं है,
हीर औ’ शीरी की वो हमसफर हो गयी है,
वफा क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
परवाने को बचाकर शमा जल रही है.
***
करीब मेरे है, खुद आ गयी है.
प्यार क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक बदन में दो दो रूह आ गयी हैं.
मिली वो तो संध्या सुबह बन गयी है,
अभी तक के सफर की थकां मिट गयी है,
खुशी क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक भूले मुसाफिर को मंजिल मिल गयी है.
बेखुदी में मैं उससे घबरा रहा था,
मिली वो तो वीरां, गुलिस्ताँ हो गया है
मिलन क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
इक भँवरा कमलनी में कैद हो गया है.
जमाने ने उसको बख्शा नहीं है,
उल्फत का जिसको शऊर आ गया हो,
नशा क्या है जमाने को समझाऊ क्या?
बिन पिए ही ‘गरचे शरूर आ गया हो.
वफ़ा की शिकायत उनसे नहीं है,
हीर औ’ शीरी की वो हमसफर हो गयी है,
वफा क्या है जमाने को समझाऊँ क्या?
परवाने को बचाकर शमा जल रही है.
***
इक बदन में दो दो रूह आ गयी हैं.
जवाब देंहटाएंkhoob....aabhar..
सुंदर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और कोमल..
जवाब देंहटाएंप्रबल प्रेम की साइक्लोनिक अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंजिनकी मूरत दिल में बसी है,
जवाब देंहटाएंकरीब मेरे है, खुद आ गयी है.
बहुत सुंदर एवं सहज अभिवक्ति|