दीवाली निकल गयी है. बिना बिके हुए दीयों, करवों, घडों का ढेर लगा हुआ है. चाक बन्द पड़ी है. अब तो गाँव के लोग भी मोमबत्ती जलाने लगे हैं. रही सही कसर इन चाइनीज लड़ियों ने पूरी कर दी है. पेट पालने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा.
बुधराम कुम्हार आज बहुत दिनों के बाद मनरेगा में अपने गधे के साथ मजदूरी करने गया है. उसकी पत्नी शान्ति खूंटे से बंधी बूढ़ी गाय और दोनों बकरियों को चारा-पानी देकर घर के लिपे-पुते आँगन में नीम के पेड़ के नीचे खटिया पर सुस्ता रही है. उसका चौदह वर्षीय बेटा अरविन्द गाँव के सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है. वह बड़ा बुद्धिमान है. हर बार कक्षा में प्रथम आता रहा है. सभी मास्टर लोग उसकी बुद्धिमत्ता की व स्पष्टवादिता की तारीफ़ किया करते हैं. आज उसके स्कूल की छुट्टी है. वह माँ के बगल में खटिया पर आ बैठा है और अन्यमनस्क होकर माँ से पूछता है, “माँ, अगर ये गाँव का मुखिया मर जाएगा तो फिर कौन मुखिया बनेगा?”
माँ ने उत्तर दिया, “उसका बेटा.”
"अगर वह भी मर गया तो?” उसने फिर से प्रश्न किया.
“उसके परिवार का कोई और व्यक्ति मुखिया बन जाएगा.” माँ ने बताया.
उत्कंठित होकर अरविन्द ने एक और प्रश्न किया, “अगर उसके परिवार के सब लोग मर गए तो?”
माँ बेटे के अटपटे सवालों के जवाब देते जा रही थी, बोली, “अगर सब मर गए तो किसी इसके किसी रिश्तेदार को मुखिया बनाया जाएगा, मगर तू ये सब क्यों पूछ रहा है?”
अरविन्द बोला “यों ही, व्यवस्था परिवर्तन की बात सोचता हूँ.”
माँ उसका मतलब समझ गयी. उसने दुनिया देखी है. वर्तमान सामाजिक व्यवस्था, भ्रष्ट राजतंत्र, ऊँच-नीच सब उसकी जानकारी में है. इसलिए सभी बातों का निचोड़ निकालते हुए वह बेटे से बोली, “मैं तेरा मतलब समझ गयी हूँ, पर तू अपने मन में मुखिया बनने का सपना मत पालना क्योंकि ये लोग तुझे कभी भी मुखिया कबूल नहीं करेंगे क्योंकि तू सच बोलता है.”
बुधराम कुम्हार आज बहुत दिनों के बाद मनरेगा में अपने गधे के साथ मजदूरी करने गया है. उसकी पत्नी शान्ति खूंटे से बंधी बूढ़ी गाय और दोनों बकरियों को चारा-पानी देकर घर के लिपे-पुते आँगन में नीम के पेड़ के नीचे खटिया पर सुस्ता रही है. उसका चौदह वर्षीय बेटा अरविन्द गाँव के सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है. वह बड़ा बुद्धिमान है. हर बार कक्षा में प्रथम आता रहा है. सभी मास्टर लोग उसकी बुद्धिमत्ता की व स्पष्टवादिता की तारीफ़ किया करते हैं. आज उसके स्कूल की छुट्टी है. वह माँ के बगल में खटिया पर आ बैठा है और अन्यमनस्क होकर माँ से पूछता है, “माँ, अगर ये गाँव का मुखिया मर जाएगा तो फिर कौन मुखिया बनेगा?”
माँ ने उत्तर दिया, “उसका बेटा.”
"अगर वह भी मर गया तो?” उसने फिर से प्रश्न किया.
“उसके परिवार का कोई और व्यक्ति मुखिया बन जाएगा.” माँ ने बताया.
उत्कंठित होकर अरविन्द ने एक और प्रश्न किया, “अगर उसके परिवार के सब लोग मर गए तो?”
माँ बेटे के अटपटे सवालों के जवाब देते जा रही थी, बोली, “अगर सब मर गए तो किसी इसके किसी रिश्तेदार को मुखिया बनाया जाएगा, मगर तू ये सब क्यों पूछ रहा है?”
अरविन्द बोला “यों ही, व्यवस्था परिवर्तन की बात सोचता हूँ.”
माँ उसका मतलब समझ गयी. उसने दुनिया देखी है. वर्तमान सामाजिक व्यवस्था, भ्रष्ट राजतंत्र, ऊँच-नीच सब उसकी जानकारी में है. इसलिए सभी बातों का निचोड़ निकालते हुए वह बेटे से बोली, “मैं तेरा मतलब समझ गयी हूँ, पर तू अपने मन में मुखिया बनने का सपना मत पालना क्योंकि ये लोग तुझे कभी भी मुखिया कबूल नहीं करेंगे क्योंकि तू सच बोलता है.”
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चाक चला जिभ्या चली, हो मुखिया की मौत |
जवाब देंहटाएंबेटा मुखिया बनेगा, पोता फिर पर पौत |
पोता फिर पर पौत, रीति है बनी यहाँ की |
तू बैठा मत सोच, लगाता बुद्धि कहाँ की |
चले उन्हीं का जोर, हाथ में लाठी जिनके |
सारे दिया सँभाल, रखे लावा पे गिनके ||
चले उन्हीं का जोर, हाथ में लाठी जिनके |
हटाएंसत्य तुम्हारा व्यर्थ, दिया रख अपने गिनके ||
सच है, सच घातक है, राह रोक लेता है..
जवाब देंहटाएंसच को कोई सह नहीं पाता .... बहुत दूरदर्शी थी माँ ।
जवाब देंहटाएंहकीकत बयां करती कहानी
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
सच है जी ....
जवाब देंहटाएंगागर में सागर समेटे हुए है यह लघु कहानी.
जवाब देंहटाएंWell written story drawing picture of present
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