आपने रामकथा तो सुनी या पढ़ी होगी. उसमें एक दृष्टांत निषादराज का भी आता है, जो भगवान राम का परम मित्र बना और अमर हो गया. मैं उसी निषादराज के वंश की वर्त्तमान कड़ी की एक इकाई हूँ, और ना जाने किन अपराधों में शापित हूँ! शापित इसलिए कह रही हूँ कि ऊपरवाले ने मुझे सुगढ़-सुन्दर शरीर और रूप दिया लेकिन रंग पक्का यानि एकदम काला दिया है. यों तो मेरे माता-पिता दोनों ही सांवले थे
पर मैं अभागिन तो एकदम उल्टे तवे के रंग में खिली हूँ. दक्षिण भारत में तो मेरे जोट के बहुत से लोग हैं पर मैं यहाँ उस प्रदेश में जन्मी हूँ जहाँ अधिकतर लोग गोरे-चिट्टे या गोरी चमड़ी वाले होते हैं.
चावल के दानों के बीच मैं अकेली काले सोयाबीन की तरह अलग ही नजर आती हूँ. लोगों ने मेरे बचपन से ही मुझे ‘काली माई’ नाम दे रखा है. मुझे बुरा तो लगता है पर बोलने वालों का मुँह कौन बन्द कर सकता है? पिता काश्तकारी करते थे. समाज की पारम्परिक रीति रिवाज के अनुसार कम उम्र में ही मेरी शादी अपनी रिश्तेदारी में ही कर दी थी, लेकिन मेरा ‘गौना’ नहीं हो सका क्योंकि जिस लड़के से मेरी शादी हुई थी, उसने मेरे काले रंग पर नफ़रत जताते हुए मुझे त्याग दिया. इस बाबत तब मुझे ज्यादा ज्ञान भी नहीं था, लेकिन परित्यक्ता होने का लाभ यह मिला कि हाईस्कूल करने के बाद मुझे नर्स की ट्रेनिंग में प्राथमिकता से चयन कर लिया गया. तदनुसार ट्रेनिंग पूरी करने पर एक अस्पताल में नियुक्ति भी मिल गयी.
मैं काली थी तो क्या हुआ दिलवाली तो थी ही. इधर उधर नजर भटकती रही. एक हैंडसम पर दिल आ गया. मैं उसे अपनाना चाहती थी, लेकिन उसने प्रतिकारस्वरुप जो उत्तर मुझे दिया वह दिल तोड़ने वाला था. उसने लिखत में दिया :
“अमावस की रात में
आसमान में बादल भरे हों ज्यों
जुगनू सी टिमटिमाती आँखें
काली बिल्ली सी तुम मुझ पर झपटना चाहती हो
तुम्ही बोलो कैसे करूँ में प्यार?
मुझको अंधियारी रातों की चाह नहीं.”
दुत्कार की यह पहली चोट नहीं थी. कई बार अपने इस रंग के कारण मुझे अपमानित होना पड़ा. एक बार दिल्ली के ऑल इंडिया मेडीकल इंस्टिट्यूट में स्टाफ नर्स के पद के लिये इन्टरव्यू देने पहुंचना था. जल्दी में रेल रिजर्वेशन नहीं हो पाया तो उम्मीद थी कि टीटीई मुझे कोई सीट देकर कृतार्थ कर देगा, पर जब मैंने उससे कहा “ब्रदर, मुझे जरूरी काम से दिल्ली जाना पड़ रहा है. प्लीज एक सीट या बर्थ मुझे दे दीजिए.” इस पर उसे मानो बिच्छू का डंक लग गया हो वह तपाक से बोला, “मैं तुम जैसी चालू मद्रासी लडकियों को खूब जानता हूँ. दिन में लोगों के घरों में जाकर चन्दा उगाहती हो कि ‘बाढ़ आ गयी, सूखा पड़ गया है,’ और रात में रेल में रिजर्वेशन चाहिये. उतर जा मेरे पास कोई सीट तुम्हारे लिए नहीं है.” अन्य सुनने वाले यात्री ठहाका मार कर हँस रहे थे. सोचती हूँ कि क्या भूलूँ और क्या याद करूँ?
हिन्दू लोग भगवान को कृष्ण इसलिए कहते हैं कि वे काले थे. नाथद्वारे में विराजने वाले श्रीनाथ जी मेरे जैसे ही काले हैं. काले शनिदेव की हजार नियामतों के साथ पूजा की जाती है, पर मैं, जिसकी जिंदगी का मिशन सेवा और प्यार है, सामान्य सदाचार व आदर से भी महरूम रह जाती हूँ क्योंकि मैं इस समाज के नैतिक अनैतिक बंधनों में बंधी रही.
मुझे यह कहते हुए कतई संकोच नहीं है कि सारे के सारे लोग स्वार्थी है, जो केवल अपने सुखों की तलाश में जीते हैं. इहलोक, परलोक की बहुत सी गपबाजी की जाती है. मुझे इन बातों को सुनकर नफ़रत सी हो जाती है, मन विद्रोह करने लगता है, माथे पर तपन होने लगती है.
स्थितियां हमेशा एक सी नहीं रहती हैं. एक दिन ऐसा लगा मानो मेरे जलते-तपते माथे पर किसी ने अपना ठंडा हाथ रख कर अन्दर तक ठंडक पहुँचा दी. वह और कोई नहीं, अब्दुल था, अब्दुल रहमान. जो अपनी दादागिरी व गुंडागर्दी के लिए पूरी बस्ती में बदनाम था. मेरे लिए तो वह अवलम्बन बन कर आया. मुझे बिलकुल नहीं लगता कि वह कोई गुंडा या गैंगस्टर है. वह तो मजलूम, मजबूर व बेबसों का हमदर्द है. उनके लिए वह अपनी जान पर भी खेलकर लड़ पडता है. ऐसे मामले में गुंडई की परिभाषा बदलनी होगी. पर बदलेगा कौन?
उसने मुझे अपना बना लिया और मैं भी उसके साथ अपने को सुरक्षित महसूस करने लगी. उसके तमाम दुर्गुणों में मुझे अच्छाइयां नजर आने लगी, वह मेरे अनछुए जीवन में बहार बन के आया.
यह सच है कि मेरी जाति समाज के ठेकेदारों ने मुझ पर थू-थू किया और मेरा सामाजिक बहिष्कार कर दिया, पर मैं अब्दुल रहमान की अब्दुल रहमनिया बन कर बहुत खुश हूँ और तृप्त हूँ. वह हर मुकाम पर मेरा साथ देता है, मेरा ख़याल रखता है. जलने वाले लोग उसको ‘कलर ब्लाइंड’ कह कर उलाहना देते रहे पर वह मस्तमौला है. उसने अपने घर परिवार तथा छींटाकसी करने वालों की कभी परवाह नहीं की. अब लोग मुझसे इस कारण खौफ खाते हैं कि अब्दुल मेरा रखवाला है.
मेरी भावनाओं को आप समझें या ना समझें इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. एक मुझ जैसी स्त्री और लता दोनों ही ऐसे नाजुक बेलड़ी की तरह होते है, जो सहारा देने वाले पर लिपटने को मजबूर होते हैं, चाहे वह सूखे झाड़ हों या कांटेदार वृक्ष. मैं सात जन्मों के काल्पनिक सँसार पर विश्वास नहीं करती हूँ, ना ही मुझे किसी स्वर्ग में जाने की इच्छा है. आमीन.
पर मैं अभागिन तो एकदम उल्टे तवे के रंग में खिली हूँ. दक्षिण भारत में तो मेरे जोट के बहुत से लोग हैं पर मैं यहाँ उस प्रदेश में जन्मी हूँ जहाँ अधिकतर लोग गोरे-चिट्टे या गोरी चमड़ी वाले होते हैं.
चावल के दानों के बीच मैं अकेली काले सोयाबीन की तरह अलग ही नजर आती हूँ. लोगों ने मेरे बचपन से ही मुझे ‘काली माई’ नाम दे रखा है. मुझे बुरा तो लगता है पर बोलने वालों का मुँह कौन बन्द कर सकता है? पिता काश्तकारी करते थे. समाज की पारम्परिक रीति रिवाज के अनुसार कम उम्र में ही मेरी शादी अपनी रिश्तेदारी में ही कर दी थी, लेकिन मेरा ‘गौना’ नहीं हो सका क्योंकि जिस लड़के से मेरी शादी हुई थी, उसने मेरे काले रंग पर नफ़रत जताते हुए मुझे त्याग दिया. इस बाबत तब मुझे ज्यादा ज्ञान भी नहीं था, लेकिन परित्यक्ता होने का लाभ यह मिला कि हाईस्कूल करने के बाद मुझे नर्स की ट्रेनिंग में प्राथमिकता से चयन कर लिया गया. तदनुसार ट्रेनिंग पूरी करने पर एक अस्पताल में नियुक्ति भी मिल गयी.
मैं काली थी तो क्या हुआ दिलवाली तो थी ही. इधर उधर नजर भटकती रही. एक हैंडसम पर दिल आ गया. मैं उसे अपनाना चाहती थी, लेकिन उसने प्रतिकारस्वरुप जो उत्तर मुझे दिया वह दिल तोड़ने वाला था. उसने लिखत में दिया :
“अमावस की रात में
आसमान में बादल भरे हों ज्यों
जुगनू सी टिमटिमाती आँखें
काली बिल्ली सी तुम मुझ पर झपटना चाहती हो
तुम्ही बोलो कैसे करूँ में प्यार?
मुझको अंधियारी रातों की चाह नहीं.”
दुत्कार की यह पहली चोट नहीं थी. कई बार अपने इस रंग के कारण मुझे अपमानित होना पड़ा. एक बार दिल्ली के ऑल इंडिया मेडीकल इंस्टिट्यूट में स्टाफ नर्स के पद के लिये इन्टरव्यू देने पहुंचना था. जल्दी में रेल रिजर्वेशन नहीं हो पाया तो उम्मीद थी कि टीटीई मुझे कोई सीट देकर कृतार्थ कर देगा, पर जब मैंने उससे कहा “ब्रदर, मुझे जरूरी काम से दिल्ली जाना पड़ रहा है. प्लीज एक सीट या बर्थ मुझे दे दीजिए.” इस पर उसे मानो बिच्छू का डंक लग गया हो वह तपाक से बोला, “मैं तुम जैसी चालू मद्रासी लडकियों को खूब जानता हूँ. दिन में लोगों के घरों में जाकर चन्दा उगाहती हो कि ‘बाढ़ आ गयी, सूखा पड़ गया है,’ और रात में रेल में रिजर्वेशन चाहिये. उतर जा मेरे पास कोई सीट तुम्हारे लिए नहीं है.” अन्य सुनने वाले यात्री ठहाका मार कर हँस रहे थे. सोचती हूँ कि क्या भूलूँ और क्या याद करूँ?
हिन्दू लोग भगवान को कृष्ण इसलिए कहते हैं कि वे काले थे. नाथद्वारे में विराजने वाले श्रीनाथ जी मेरे जैसे ही काले हैं. काले शनिदेव की हजार नियामतों के साथ पूजा की जाती है, पर मैं, जिसकी जिंदगी का मिशन सेवा और प्यार है, सामान्य सदाचार व आदर से भी महरूम रह जाती हूँ क्योंकि मैं इस समाज के नैतिक अनैतिक बंधनों में बंधी रही.
मुझे यह कहते हुए कतई संकोच नहीं है कि सारे के सारे लोग स्वार्थी है, जो केवल अपने सुखों की तलाश में जीते हैं. इहलोक, परलोक की बहुत सी गपबाजी की जाती है. मुझे इन बातों को सुनकर नफ़रत सी हो जाती है, मन विद्रोह करने लगता है, माथे पर तपन होने लगती है.
स्थितियां हमेशा एक सी नहीं रहती हैं. एक दिन ऐसा लगा मानो मेरे जलते-तपते माथे पर किसी ने अपना ठंडा हाथ रख कर अन्दर तक ठंडक पहुँचा दी. वह और कोई नहीं, अब्दुल था, अब्दुल रहमान. जो अपनी दादागिरी व गुंडागर्दी के लिए पूरी बस्ती में बदनाम था. मेरे लिए तो वह अवलम्बन बन कर आया. मुझे बिलकुल नहीं लगता कि वह कोई गुंडा या गैंगस्टर है. वह तो मजलूम, मजबूर व बेबसों का हमदर्द है. उनके लिए वह अपनी जान पर भी खेलकर लड़ पडता है. ऐसे मामले में गुंडई की परिभाषा बदलनी होगी. पर बदलेगा कौन?
उसने मुझे अपना बना लिया और मैं भी उसके साथ अपने को सुरक्षित महसूस करने लगी. उसके तमाम दुर्गुणों में मुझे अच्छाइयां नजर आने लगी, वह मेरे अनछुए जीवन में बहार बन के आया.
यह सच है कि मेरी जाति समाज के ठेकेदारों ने मुझ पर थू-थू किया और मेरा सामाजिक बहिष्कार कर दिया, पर मैं अब्दुल रहमान की अब्दुल रहमनिया बन कर बहुत खुश हूँ और तृप्त हूँ. वह हर मुकाम पर मेरा साथ देता है, मेरा ख़याल रखता है. जलने वाले लोग उसको ‘कलर ब्लाइंड’ कह कर उलाहना देते रहे पर वह मस्तमौला है. उसने अपने घर परिवार तथा छींटाकसी करने वालों की कभी परवाह नहीं की. अब लोग मुझसे इस कारण खौफ खाते हैं कि अब्दुल मेरा रखवाला है.
मेरी भावनाओं को आप समझें या ना समझें इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. एक मुझ जैसी स्त्री और लता दोनों ही ऐसे नाजुक बेलड़ी की तरह होते है, जो सहारा देने वाले पर लिपटने को मजबूर होते हैं, चाहे वह सूखे झाड़ हों या कांटेदार वृक्ष. मैं सात जन्मों के काल्पनिक सँसार पर विश्वास नहीं करती हूँ, ना ही मुझे किसी स्वर्ग में जाने की इच्छा है. आमीन.
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हर चाहे कोई एक सहारा,
जवाब देंहटाएंमिल जाता है कोई एक प्यारा।
sach ki bayangi.
जवाब देंहटाएंbhagwan sub ka khyal rakhta hai.
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