गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मनभावनी

मोतिया कपोलन में लाली ये गुलाब सी,
नयना हैं सम्मोहनी-दिलनशीं शराब सी.

अबीर बन गया हूँ मैं, मुझको तुमसे प्यार है,
प्यार में बिखेर दो, जाँ तुम्हें निसार है.

छप रहूँ तुम्हारे तन, मोरडे का पँख बन,
पद्मिनी सी बाँध लो, छुप रहूँ तुम्हारे तन.

खिलखिला उड़ेल दो प्यार का अनूप रंग
सिलसिला बना रहे, भीजहूँ तुम्हारे संग.

                           ***

4 टिप्‍पणियां:

  1. बन गया अबीर हूँ ,मॉल लो कपोलन पर .शुक्रिया आपकी उत्साह वर्द्धक टिपण्णी का .आप स्पैम से टिपण्णी क्यों नहीं निकालते भाई साहब .

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  2. भीजहूँ तुम्हारे संग ...वाह भाई साहब भाषा और शिल्प अभिनव बिम्बों को अर्थ छटा बिखेर दी .पढ़हूँ तुमारे संग ...स्वप्न कर जातें हैं हमारे भावों अभावों का विरेचन न आयें तो इंसान पागल हो जाए .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .थकाए रहिये ,खपाए रहिये दिन भर अपने आप को नींद खुद बा खुद आयेगी ,खाब भी लायेगी .

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