शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

माँ सच बोलती है

राजधानी से लगभग ३०  किलोमीटर बाहर एक बड़े नेता जी का फ़ार्म हाउस है. उन्होंने यह जमीन बर्षों पहले स्थानीय किसानों से अच्छी कीमत देकर खरीदी थी. चारों ओर दीवार, और उसके ऊपर कंटीली तारों की बाड़ लगी हुई है. अन्दर बहुत बढ़िया आधुनिक सुविधाओं युक्त फ़ार्म हाउस बना हुआ है. तरह तरह के पेड़ लगाए गए हैं. खूबसूरत लैंडस्केप बने हुए हैं. बचे हुए हिस्से में खेती भी होती है. पानी के लिए गहरा ट्यूबवेल बना है. सर्वत्र हरियाली है. इस प्रकार नेता जी के इस घर के ठाठ निराले हैं. उनके पारिवारिक समारोह/पार्टियां गाहे-बगाहे यहाँ आयोजित होती रहती हैं. चाक-चौबंद सिक्योरिटी रहती है.

बगल की जमीन वाले किसान भंवरलाल और उसके परिवार के लिए यह एक स्वप्नलोक जैसा है, जहाँ उनका प्रवेश निषेध है. नेता जी ने भंवरलाल को भी उसकी पाँच बीघा जमीन बेचने के लिए कई बार लालच भरे सन्देश भेजे, पर भंवरलाल को अपनी इस पुश्तैनी जमीन से बहुत लगाव रहा और उसने बेचने से इनकार कर दिया था. उसने सोचा रुपया तो आता जाता है, खर्च भी हो जाएगा, और अपनी अगली पीढ़ी के लिए विरासत नहीं छोड़ पायेगा.

भंवरलाल की जमीन अभी भी ऊबड़-खाबड़ है, नेताजी की दीवार से सटी जमीन पर बड़े बड़े झड़बेरी के पेड़ उगे हुए हैं. ऊसर जमीन है इसलिए केवल बरसाती फसल ही हो पाती है. आज भंवरलाल अपने हल-बैल लेकर जमीन जोतने गया हुआ है. उसकी पत्नी कंचनबाई डलिया में दिन के खाने का सामान रोटियां, साग, प्याज तथा पानी का बर्तन रख कर लाई है. उनका एक पाँच साल का बेटा भी है जो माँ के साथ साथ नंगे पैर खेत में इधर उधर डोल रहा है. धूप तेज है, उसकी माँ उसे बार बार दीवार की छाया में एक स्थान पर बैठाने का प्रयास करती है, पर बालक बहुत चँचल है, मानता ही नहीं.

दीवार के दूसरी तरफ पेड़ों पर बड़े बड़े गुब्बारे टंगे हुए हैं. वहाँ शायद नेता जी के बेटे-बेटी अथवा पोते-पोती का कल रात जन्मदिन मनाया होगा. बच्चे की नजर बार बार उन गुब्बारों पर जाती है. वह उनको ललचाई आँखों से देखता है. उसे इस दुनियादारी की कोई समझ अभी नहीं है. माँ सब समझ रही है कि बबुआ गुब्बारों को हसरत भरी नज़रों से देख रहा है. बेटे को वह झड़बेरी के दानों से खुश करना चाहती है, लेकिन झड़बेरी के पके हुए दाने तो गाँव के छोरे छापरों ने पहले ही तोड़ रखे है, जो बचे हैं वे बहुत ऊंचाई पर उसकी पहुँच से दूर हैं. बबुआ ने जब देखा कि माँ झड़बेरी तोड़ने के लिए प्रयासरत है तो वह थोड़ा उतावला हो गया. माँ को बेटे की उत्कंठा पर बहुत तरस और प्यार आ रहा था, साथ ही नेता जी के वैभव पर ईर्ष्या भी हो रही थी. वह बबुआ को गोद में ले लेती है और उसे परी कहानियों की मानिंद बताती है कि “धूप की गर्मी की वजह से गुब्बारे फूटने वाले हैं और उनके फूटने से जो भटाका होगा उससे झड़बेरी के दाने छिटक कर गिर पड़ेंगे”

बबुआ माँ की बात को तो पूरी तरह नहीं समझ पाता है, पर वह झड़बेरी मिलने की उम्मीद से खुश हो जाता है. उसका विश्वास है कि ‘माँ सच बोलती है.’

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3 टिप्‍पणियां:

  1. उनकी फूट पर ही जीवन जीने की उम्मीद चढ़ाये हुये रहते हैं हम..

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  2. बच्चा माँ की हर बात सच ही मानता है .... अच्छी कहानी ...

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  3. मार्मिक मनो - विश्लेषक प्रसंग .सो जा बबुआ म्याऊँ बिल्ली आई .गुब्बारा फूटेगा बेर गिरेंगें धमक से .वायु विस्फोट से .बच्चा खुश है माँ झूठ नहीं बोलती बहलाती है .

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