रविवार, 23 जून 2013

अनुदार चरिता नाम...

पण्डित लोग बच्चों के पैदा होते वक्त के ग्रह-नक्षत्रों की गणना करके राशि निकाल लेते हैं और तदनुसार नामकरण कर देते हैं. बच्चा जब बड़ा होता है तब उसे महसूस होता है कि उसका नाम कुछ और होता तो कुछ बात और अच्छी होती.

कपोतसिंह क्षेत्री जब हाईस्कूल में पढ़ रहा था तो उसने जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ के कुछ अंश पढ़े. उसे कामायनी शब्द बहुत भाया तो अपना उपनाम ‘कामायनी’ ही रख लिया. तब वह कुछ कवितायें-तुकबन्दियाँ भी किया करता था. कपोतसिंह क्षेत्री ‘कामायनी’ बहुत स्वार्थी किस्म का था. कुछ लोगों की जन्मजात प्रवृत्ति ऐसी होती है कि वे दूसरों को दुःख पहुंचा कर भी अपना मतलब हल करते हैं. यहाँ तक कि माता पिता को भी उसने अपने स्वभावत: परेशान कर रखा था. उसके पिता बहादुर सिंह क्षेत्री तो कपोत (कबूतर ) के बजाय उसे कभी कभी कुपूत कह देते थे. बाहर अपने संगी-साथियों में भी वह झगड़ालू और महामतलबी के रूप में बदनाम था. उसके कॉलेज के लड़के पीठ पीछे उसके लिए ‘कामायनी’ के बजाय ‘कमीनाई’ शब्द इस्तेमाल किया करते थे.

अब जब वह एक जनरल इंश्योरेंस कम्पनी में सर्वेयर के बतौर नियुक्ति पा गया तो उसकी लम्पटता और बेईमानी की हदें पार हो गयी. वह ग्राहकों तथा कम्पनी दोनों को जम कर चूना लगाता है. मुरव्वत नाम का शब्द उसके शब्दकोष में है ही नहीं. और लोगों का क्या है कि बेईमानी में हिस्सा मिलने पर सब खुश रहते हैं. ना मिलने पर गालियाँ देकर रह जाते हैं. बड़ी बात ये भी है कि दुष्ट आदमी से सब डरते हैं.

कपोत के जीजा हाइडिल (बिजली विभाग) में एक्जेक्यूटिव इंजीनियर हुआ करते थे. यहाँ उनकी ईमानदारी/बेईमानी का विश्लेषण नहीं किया जाएगा, पर उन्होंने जो अकूत संपत्ति जमा की उसमें रामपुर रोड पर तीन  बीघा जमीन भी है. उन्होंने इस जमीन पर ३ बेडरूम वाला घर बनवाया था, परन्तु दुर्भाग्यवश, गृहप्रवेश से पहले ही हार्ट अटैक हो गया और वह चल बसे. बहिन ने घर-जमीन अपने नाम होते हुए भी इसे अपशकुनी मान कर इस घर में रहने से इनकार कर दिया. अब तो कपोत सिंह इसका मालिक हो गया. बिजली विभाग के नए-पुराने सभी कर्मचारियों को मिलने वाली मुफ्त की बिजली का मनचाहा उपभोग/ दुरपयोग  भी करता रहा है  उसको पूछने वाला कोई नहीं है.

कपोत सिंह के यहाँ कोई नौकर या महरी नहीं टिकती है क्योंकि वह पहले ही दिन से उनके पुरखों का श्राद्ध करने लगता है. लोहे का बड़ा गेट चौबीसों घन्टे खुला रहता है. इस फार्महाउसनुमा परिसर में आम अमरुद के पेड़ भी लगवा रखे हैं. मजाल है कोई छोकरा जाकर एक पत्ता भी तोड़ सके. वह माँ-बहिन की गालियां देने लगता है या कुत्ते को छू लगा देता है. भिक्षा मांगने वाले इस घर के पास कभी नहीं फटकते हैं. बस्ती में सब को मालूम है कि कपोत सिंह करोड़ों का मालिक है, पर मन्दिर-गुरुद्वारे वाले चन्दा लेने इस घर में अब नहीं घुसते है. सबको मालूम है कि घर का मालिक कितना कमीना है. वह दान मांगने वालों को हरामखोर कहा करता है.

ये जगह कभी शहर से बहुत बाहर होती थी, लेकिन जब से शहर ने अपने पँख पसारे हैं तो इस परिसर के चारों ओर बस्ती बस गयी है. बस्ती में अनेक धार्मिक अनुष्ठान व शादी ब्याह होते रहते हैं, पर कपोतसिंह इनमें कभी भाग नहीं लेता है. उसको कोई सलाम भी नहीं करता है क्योंकि वह घमंडी और अहंकारी है. इस तरह वह समाज में एक ‘टापू’ की तरह रहता है.

उसकी बीवी के बारे में बस्ती की  औरतें आपस में बातें करती रहती हैं कि ‘वह बेचारी बहुत विनम्र है, किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाती है. शायद वह इस राक्षस से डरती होगी.’ इनके कोई बाल-बच्चा भी नहीं है इसलिए अन्दर की बातें छन कर बाहर बिलकुल नहीं आ पाती हैं.

गत रविवार को एक अनहोनी घटना हो गयी. कपोतसिंह की पत्नी कूलर साफ़ करते हुए करेंट के कारण उसी पर चिपक गयी और तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी. कपोतसिंह थोड़ी देर बाद बदहवास होकर बस्ती के लोगों को सूचित करते हुए दौड़ा, पर लोगों को जैसे सांप सूंघ गया हो, संवेदनहीन हो गए, कोई भी मदद करने या मातमपुर्सी करने उसके अहाते में नहीं गया.

उसके ऑफिस की उस दिन छुट्टी थी. जिसको भी फोन से सूचित किया नहीं आ सके. दिन भर, रात भर वह लाश के पास अकेला गुमसुम बैठा रहा. अगली सुबह कुछ रिश्तेदार व परिचित क्लाइंट्स आ जुटे. सभी बड़े लोग थे इसलिए अब्दुल्ला बिल्डिंग के पास वाली मजदूर-मंडी से दिहाड़ी तय करके छः लोग लाये गए तब जाकर अर्थी को अन्तिम संस्कार के लिए उठाया जा सका.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. निज स्वार्थ में डूबे लोगों के साथ यही होता है .... अकेले पड़ जाते हैं .... कपोत का अर्थ तोता नहीं कबूतर होता है ।

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    2. संगीता जी, नमस्कार.मैंने भूल बस कपोत का अर्थ कबूतर लिखा था आपने भूल सुधार करवाया धन्यवाद.

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  2. जो लोगों से जुड़ नहीं पाते हैं, वे अन्ततः टूट जाते हैं..

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