उत्तरांचल के लीलाधर भट्ट अपनी जवानी में ही लखनऊ आ गए थे. एक सरकारी अस्पताल में बतौर वार्ड-बॉय नियुक्ति पा गए थे. ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे इसलिए साठ साला रिटायरमेंट तक ‘बॉय’ ही रहे.
लीलाधर भट्ट बड़े सज्जन, सरल व आस्थावान व्यक्ति हैं, गरीबों, निराश्रितों की सेवा सुश्रुषा में उनको बहुत आत्म सन्तोष व सुख की अनुभूति होती है. वे अपनी नित्यचर्या मे कुछ समय निकाल कर चोटिल-बीमार जानवरों की मरहम पट्टी भी करते रहते हैं. उनके मृदुल स्वभाव के अनुकूल लोग उनको ‘दयालु’ उपनाम से अधिक जानते हैं.
अस्पताल की सेवा काल की उनकी विशिष्ठ उपलब्धि यह रही कि अपने तीनों बेटों को उन्होंने कॉलेज तक की शिक्षा दिला दी. वे इसे अपने इष्टदेव ‘गोल्ज्यू का आशीर्वाद मानते है.
अस्पताल की सेवा काल की उनकी विशिष्ठ उपलब्धि यह रही कि अपने तीनों बेटों को उन्होंने कॉलेज तक की शिक्षा दिला दी. वे इसे अपने इष्टदेव ‘गोल्ज्यू का आशीर्वाद मानते है.
बड़ा बेटा गजाधर बी.कॉम है. उसकी एक शेड्यूल्ड बैंक में स्थाई नौकरी है. मझला दयाधर उत्तर रेलवे में टी.टी.ई. की नौकरी पाकर खुशहाल है. छोटा खयाली बचपन से ही बहुत शैतान स्वभाव वाला है. हमेशा उल्टे सीधे तरीकों से रूपये कमाने के चक्कर में रहता आया है. उसकी उड़ान के अनुसार उसे कोई स्थाई नौकरी नहीं मिल सकी तो उसने अपने जैसे ही यार-दोस्तों के साथ मिलकर सड़क परिवहन विभाग (आर.टी.ओ.) के कार्यालय में दलाली का काम शुरू कर दिया. इसमें वह लोगों के ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने, रिन्यू करवाने, गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन-ट्रान्सफर आदि करवाने में कार्यालय कर्मियों से मिलीभगत करके अच्छा पैसा कमाने लग गया. जब धन्धा चल निकला तो उसने गोमती नगर में अपना एक कार्यालय खोल लिया जहाँ से सेवा विस्तार करते हुए रेल रिजर्वेशन, हवाई टिकट आदि बुकिंग का काम भी शुरू कर दिया, और बाद में धीरे धीरे सट्टेबाजी तथा हवाला कारोबार के नेटवर्क से भी जुड़ गया. इस काम के लिए उसने अपने दो सहायक भी रख लिए. दयालु अपने इस बेटे के बौद्धिक अध्यवसाय व समृद्धि से खुश थे, पर वे उसकी कारगुजारियों से अनभिज्ञ थे.
नौकरी से रिटायर होने के बाद वे अपनी पत्नी सहित पैतृक गाँव ताम्बाखाणी लौट आये. रिटायरमेंट से पहले ही उन्होंने तीनो लडकों की शादी करके अपनी बड़ी जिम्मेदारियां भी पूरी कर ली थी. इस पहाड़ी गाँव में उनका एक खुटकूण (पत्थरों से चिनी हुई बाहरी सीढ़ी) वाला दुमंजिला छोटा सा घर तथा थोड़ी ऊसर जमीन है, जो बरसों से बंजर पड़ी हुई है. चूंकि इस घर से बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी हुयी हैं, वे बेसब्री से अपने रिटायरमेंट का इन्तजार कर रहे थे. घर के पास ही पानी का एक पुराना नैसर्गिक जल श्रोत है, जिसके बगल में गोल्ज्यू का मन्दिर भी स्थापित है. गाँव लौट कर दयालु ने नए सिरे से व्यवस्थित होने के तमाम उपाय किये यद्यपि बिछड़े वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है.
ताम्बाखाणी गाँव में बिरादरी के २५ परिवार हुआ करते थे, पर अब गिनती के १० रह गए हैं. सब दिल्ली-लखनऊ या तराई-भाबर की तरफ पलायन करके चले गए हैं. इस कारण गाँव में सुनसानी है. उनके बचपन में गाँव सरसब्ज था, गुलजार रहता था, दूध-दही व अनाज-सब्जियों की बहार हुआ करती थी, लेकिन अब तो लोगों ने जंगली सूअरों, बंदरों व अन्य जानवरों द्वारा नुकसान किये जाने के भय से सारे उद्यम करने छोड़ दिये है. दयालु गाँव की ऐसी हालत देख कर बहुत दुखी हुए. गोल्ज्यू के मन्दिर के प्रांगण मे बैठ कर घंटों जप-तप और ध्यान करने की कोशिश करते, पर मन केंद्रित नहीं हो पा रहा था.
पिछले सप्ताह एक अप्रत्याशित घटना घटी कि इंग्लैण्ड से एक पाँच सदस्यीय खोजी दल पूछते पूछते उनके गाँव में आ पहुँचा. यह दल अपने साथ दिल्ली से दुभाषिया भी लाया था. दल के मुखिया स्टूअर्ट ह्यूम ने लीलाधर भट्ट को बताया कि उनके बेटे खयाली ने एक वेबसाईट ‘ताम्बाखाणी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के माध्यम से दुनिया भर से अपने एन.जी.ओ. के लिए कई लोगों व संगठनों से लाखों डॉलर्स प्राप्त किये हैं. मिस्टर ह्यूम ने बताया कि वेबसाईट पर लिखा है कि इस प्रोजेक्ट के तहत ताम्बाखाणी डिविजन में इन्फ्रास्ट्रक्चर- रोड, आवासीय कालोनियाँ, मल्टीपरपज ऐज्युकेशनल इंस्टीट्यूट और एक डैम का नक्शा खींचा गया है, जबकि यहाँ ऐसी कोई संभावना दूर दूर तक नहीं है. उन्होंने बड़े दु:ख के साथ कहा कि “आपके बेटे ने हम लोगों को ठगा है.”
यह टीम उसी दिन लौट गयी. बात सारे गाँव के लोगों तक पहुँच गयी. दयालु अपने बेटे की करतूत पर बहुत शर्मिन्दा हुए. दुखी मन से घर को ताला लगा कर चुपके से बड़े बेटे गजाधर के पास चंडीगढ़ चले गए. उनको लग रहा है कि उनकी जिंदगी भर की नेक नियति की कमाई खयाली ने गंदी नाली में डाल दी है.
नौकरी से रिटायर होने के बाद वे अपनी पत्नी सहित पैतृक गाँव ताम्बाखाणी लौट आये. रिटायरमेंट से पहले ही उन्होंने तीनो लडकों की शादी करके अपनी बड़ी जिम्मेदारियां भी पूरी कर ली थी. इस पहाड़ी गाँव में उनका एक खुटकूण (पत्थरों से चिनी हुई बाहरी सीढ़ी) वाला दुमंजिला छोटा सा घर तथा थोड़ी ऊसर जमीन है, जो बरसों से बंजर पड़ी हुई है. चूंकि इस घर से बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी हुयी हैं, वे बेसब्री से अपने रिटायरमेंट का इन्तजार कर रहे थे. घर के पास ही पानी का एक पुराना नैसर्गिक जल श्रोत है, जिसके बगल में गोल्ज्यू का मन्दिर भी स्थापित है. गाँव लौट कर दयालु ने नए सिरे से व्यवस्थित होने के तमाम उपाय किये यद्यपि बिछड़े वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है.
ताम्बाखाणी गाँव में बिरादरी के २५ परिवार हुआ करते थे, पर अब गिनती के १० रह गए हैं. सब दिल्ली-लखनऊ या तराई-भाबर की तरफ पलायन करके चले गए हैं. इस कारण गाँव में सुनसानी है. उनके बचपन में गाँव सरसब्ज था, गुलजार रहता था, दूध-दही व अनाज-सब्जियों की बहार हुआ करती थी, लेकिन अब तो लोगों ने जंगली सूअरों, बंदरों व अन्य जानवरों द्वारा नुकसान किये जाने के भय से सारे उद्यम करने छोड़ दिये है. दयालु गाँव की ऐसी हालत देख कर बहुत दुखी हुए. गोल्ज्यू के मन्दिर के प्रांगण मे बैठ कर घंटों जप-तप और ध्यान करने की कोशिश करते, पर मन केंद्रित नहीं हो पा रहा था.
पिछले सप्ताह एक अप्रत्याशित घटना घटी कि इंग्लैण्ड से एक पाँच सदस्यीय खोजी दल पूछते पूछते उनके गाँव में आ पहुँचा. यह दल अपने साथ दिल्ली से दुभाषिया भी लाया था. दल के मुखिया स्टूअर्ट ह्यूम ने लीलाधर भट्ट को बताया कि उनके बेटे खयाली ने एक वेबसाईट ‘ताम्बाखाणी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के माध्यम से दुनिया भर से अपने एन.जी.ओ. के लिए कई लोगों व संगठनों से लाखों डॉलर्स प्राप्त किये हैं. मिस्टर ह्यूम ने बताया कि वेबसाईट पर लिखा है कि इस प्रोजेक्ट के तहत ताम्बाखाणी डिविजन में इन्फ्रास्ट्रक्चर- रोड, आवासीय कालोनियाँ, मल्टीपरपज ऐज्युकेशनल इंस्टीट्यूट और एक डैम का नक्शा खींचा गया है, जबकि यहाँ ऐसी कोई संभावना दूर दूर तक नहीं है. उन्होंने बड़े दु:ख के साथ कहा कि “आपके बेटे ने हम लोगों को ठगा है.”
यह टीम उसी दिन लौट गयी. बात सारे गाँव के लोगों तक पहुँच गयी. दयालु अपने बेटे की करतूत पर बहुत शर्मिन्दा हुए. दुखी मन से घर को ताला लगा कर चुपके से बड़े बेटे गजाधर के पास चंडीगढ़ चले गए. उनको लग रहा है कि उनकी जिंदगी भर की नेक नियति की कमाई खयाली ने गंदी नाली में डाल दी है.
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गोल्ज्यू के मन्दिर के प्रांगण मे बैठ कर घंटों जप-तप और ध्यान करने की कोशिश करते..........। अकसर ऐसा ही होता है। जिस बेटे की कमाई उन्हें आकर्षित कर रही थी, आखिर वह उनके सम्मान को ले ही डूबा। छोटे लड़कों के ऐसे गलत कार्य अधिकांशत: देखने को मिल ही जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसज्जनता से जीने वालों के लिये इससे कष्टकर क्या हो सकता है भला।
जवाब देंहटाएंअपराधीकरण की हक़ीक़त बयान करती कथा। समुचित जांच हो तो न जाने कितने एनजीओ इससे भी बुरी कारगुजारियाँ कराते नज़र आएंगे।
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