इस देश का कुछ नहीं होने वाला. ये यों ही घिसट कर चलेगा क्योंकि पूरे कुँवे में ही भांग पडी है. पूरे तन्त्र में भ्रष्टाचार अब कैंसर रोग की तरह अपनी जड़ें जमा चुका है.
हमारे संविधान के तहत दी गयी राजनैतिक व्यवस्था भ्रमित होकर फेल हो गयी है. कोई सिद्धान्त नहीं रहा, सब तरह कुर्सियों व पैसों का खेल बेशर्मी से खेला जा रहा है. नेता व जिम्मेदार लोग ढीठ व बेशर्म हो चुके हैं. रूपये का इतना अवमूल्यन होने का कारण यह है कि उनका हिसाब-किताब रखना मुश्किल है क्योंकि बेहिसाब नोट छाप दिये गए हैं, ऊपर से नकली नोटों का चलन, बिलकुल हूबहू, शक ये भी है कि नोटों की तिजारत उन्हीं छापेखानों से हो रही है जहाँ भारत सरकार छपवाती है.
खिलाड़ी बिके हुए हैं. उन पर बोली लगती है. खरीदने वाले धन्ना सेठ, उद्योगपति, सिने कलाकार, घाघ नेता या सटोरियों के ग्रुप हैं, जो बिना हींग-फिटकरी लगाए ही करोड़ों-अरबों की काली कमाई कर रहे हैं और बंदरबांट हो रही है. बदगुमानी की हद ये है कि आवाज उठाई जा रही है कि सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दे दी जाये.
तमाम संवेदनशील मुद्दों पर मीडिया ऐसी हवा बना देता है कि आम लोग हिप्नोटाइज से हो जाते हैं. मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा खम्बा कहा जाता है, वह भी धन बटोरने का बड़ा जरिया बन गया है.
जो लोग बढ़-चढ़ कर भ्रष्टाचार-अनाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, उनमें से कुछ ही गिने चुनी हस्तियों को छोड़ कर शेष अपनी गोटी फिट करने में मशगूल हैं.
लाख कोशिशें की जाएँ, पर विधान सभा या लोकसभा के चुनावों में धनबल व बाहुबल के खेल के साथ जाति तथा धर्म ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. चूंकि अब क्षेत्रीय दल पूरे देश में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये हैं, एकदलीय शासन का अंत हो गया है. इसलिए राजनैतिक पार्टियां अपनी गैंग बना कर सत्ता में काबिज हो रही हैं. विचारधारा या सिद्धांतों से दूर केवल व्यक्तिगत फायदे वाला सामंजस्य किया जा रहा है.
सम्पूर्ण राष्ट्र का चरित्र-ह्रास सा लगाने लगा है. अब इन परिस्थितियों में किसी चमत्कार की आशा करना भी व्यर्थ लगता है. घोर निराशाजनक स्थिति है.
हमारे संविधान के तहत दी गयी राजनैतिक व्यवस्था भ्रमित होकर फेल हो गयी है. कोई सिद्धान्त नहीं रहा, सब तरह कुर्सियों व पैसों का खेल बेशर्मी से खेला जा रहा है. नेता व जिम्मेदार लोग ढीठ व बेशर्म हो चुके हैं. रूपये का इतना अवमूल्यन होने का कारण यह है कि उनका हिसाब-किताब रखना मुश्किल है क्योंकि बेहिसाब नोट छाप दिये गए हैं, ऊपर से नकली नोटों का चलन, बिलकुल हूबहू, शक ये भी है कि नोटों की तिजारत उन्हीं छापेखानों से हो रही है जहाँ भारत सरकार छपवाती है.
खिलाड़ी बिके हुए हैं. उन पर बोली लगती है. खरीदने वाले धन्ना सेठ, उद्योगपति, सिने कलाकार, घाघ नेता या सटोरियों के ग्रुप हैं, जो बिना हींग-फिटकरी लगाए ही करोड़ों-अरबों की काली कमाई कर रहे हैं और बंदरबांट हो रही है. बदगुमानी की हद ये है कि आवाज उठाई जा रही है कि सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दे दी जाये.
तमाम संवेदनशील मुद्दों पर मीडिया ऐसी हवा बना देता है कि आम लोग हिप्नोटाइज से हो जाते हैं. मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा खम्बा कहा जाता है, वह भी धन बटोरने का बड़ा जरिया बन गया है.
जो लोग बढ़-चढ़ कर भ्रष्टाचार-अनाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, उनमें से कुछ ही गिने चुनी हस्तियों को छोड़ कर शेष अपनी गोटी फिट करने में मशगूल हैं.
लाख कोशिशें की जाएँ, पर विधान सभा या लोकसभा के चुनावों में धनबल व बाहुबल के खेल के साथ जाति तथा धर्म ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. चूंकि अब क्षेत्रीय दल पूरे देश में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये हैं, एकदलीय शासन का अंत हो गया है. इसलिए राजनैतिक पार्टियां अपनी गैंग बना कर सत्ता में काबिज हो रही हैं. विचारधारा या सिद्धांतों से दूर केवल व्यक्तिगत फायदे वाला सामंजस्य किया जा रहा है.
सम्पूर्ण राष्ट्र का चरित्र-ह्रास सा लगाने लगा है. अब इन परिस्थितियों में किसी चमत्कार की आशा करना भी व्यर्थ लगता है. घोर निराशाजनक स्थिति है.
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और एक हम हैं जो चमत्कार की आशा में हर सुबह उठ जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपने सही विश्लेषण किया, कोई क्रांति ही परिवर्तन ला सकता है
जवाब देंहटाएंlatest post मंत्री बनू मैं
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
जवाब देंहटाएंसहमत हूं
बढिया
बदगुमानी की हद ये है कि आवाज उठाई जा रही है कि सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दे दी जाये..........कुछ दिन पूर्व आपने नेहरु की जयंती पर उन्हें अच्छा नेता बताया था। क्या आपको नहीं लगता कि देश चलाने के लिए अच्छाई नहीं राजनीतिक कड़ाई चाहिए। आज जिन हालातों से आप परेशान हैं, गौर करेंगे तो इसकी नींव नेहरु ने ही रखी थी।
जवाब देंहटाएं*गौर करेंगे तो पाएंगे कि इसकी नींव नेहरु ने ही रखी थी।
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