रविवार, 6 अक्तूबर 2013

एक था राजकुमार

हम मनुष्यों का जीवन-सँसार समय के साथ साथ बदलता रहता है. आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं और नए नए आविष्कारों का लाभ ले रहे हैं, पर जीवन हमेशा ऐसा नहीं था. जब कागज़ का आविष्कार नहीं हुआ था तो इतिहास, साहित्य-व्याकरण या कोई भी मानवोपयोगी शास्त्र लिखित में कैसे हो सकता था? तब सारी ज्ञान की बातें पीढ़ी दर पीढ़ी बोल कर/सुन कर आगे बढ़ती रही. इसीलिये हमारे समृद्ध वेदों को श्रुतियाँ कहा जाता है.

यों बहुत पीछे न जाकर अपने बचपन में सुनी हुई अनेक दन्त कथाओं/नीति कथाओं का का जिक्र करें जिनका व्यापक प्रभाव हमारे जीवन में पड़ता रहा है तो इनमें बहुत सी बातें आज अविश्वसनीय व बेढब जरूर लगती हैं, पर इनसे एक लीक बनती थी, जिससे समाज को आनुशासन मिला करता था. अब राजा-रानी-राजकुमारों की कहानियाँ कोई नहीं लिखता है और कोई सुनना भी नहीं चाहता है. स्मृतियों को धरोहर के रूप में दोहराने में आनन्द अवश्य मिलता है:

एक राजा था. उसकी एक रूपवती-गुणवती रानी थी और एक नौजवान बेटा (राजकुमार) था. पड़ोस के राज्य की राजकुमारी से उसका विवाह कर दिया गया. लेकिन रीति रिवाजों के चलते उनका गौना नहीं हुआ था इसलिए वह मायके में ही रहा करती थी. राजकुमार की एक बहन भी थी. अन्यत्र राज्य के किसी राजकुमार से उसका विवाह हो गया था. राजकुमार का एक बचपन का जिगरी दोस्त भी था जो कहीं दूर अन्य राज्य में रहता था. राज्य में सब व्यवस्थाएं सामान्य चल रही थी. एक दिन राजा का मन तीर्थाटन का हुआ तो वह तो वह अपने सैन्य बल के साथ चल पड़ा. जाने से पहले राजकुमार को अस्थाई रूप से गद्दी पर बैठा गया और खजाने की चाबी भी सौंप गया. खजाने में कुल एक लाख सिक्के थे जो उस समय के अनुसार बड़ी राशि होती थी.

राजकुमार के शासनकाल में एक साधू  दरबार में आया और उसने कहा कि उसके पास एक ज्ञान का ताम्र पट्ट है, जिसमें जीवन की सच्चाइयां लिखी हुई हैं. साधु ने उसकी कीमत एक लाख सिक्के बताई. राजकुमार जिज्ञासु था, उसकी उत्कंठा बढ़ी तो उसने वह ताम्र पट्ट खरीद लिया. इस कारण पूरा खजाना खाली हो गया. ताम्र पट्ट में आठ बातें नीति सम्बन्धी लिखी थी:

होते का बाप, अनहोते की माँ, आस की बहन, निराश का दोस्त,    
दृष्टि की जोरू, मुष्टि का धन, जो सोवे सो खोवे, जो जागे सो पावे.

राजा ने अपनी वापसी पर जब खजाना अनावश्यक कारणों से खाली देखा तो बहुत गुस्से में आ गया और सजा के रूप में राजकुमार को ‘देश निकाला’ दे दिया. तब राजकुमार की समझ में आया कि अगर वह धन खर्च करने के बजाय कमा कर बाप को देता तो उसको ये सजा नहीं मिलती.

राजा का आदेश पत्थर की लकीर की तरह थी. राजकुमार को देश से बाहर जाना ही पड़ा. जाने से पहले वह अपनी माँ से मिलने गया तो माँ को अपनी सजा पर बहुत दुखी पाया. अश्रुपूर्ण विदाई देते देते समय उसने पाँच स्वर्ण अशर्फियाँ राजकुमार के चोगे में छुपा कर सिल दिये और बेटे से कहा कि “ये धन मुसीबत में तुम्हारे काम आएगा.” ताम्र पट्ट में लिखी हुई ये दूसरी बात थी कि कुछ नहीं होने पर पर भी माँ स्नेहमयी  व ममतामयी होती है.

उन दिनों रेलगाड़ी या मोटरवाहन तो थे नहीं, सड़कें भी कच्ची, ऊबड़खाबड़ रही होंगी. कई दिनों तक पैदल चलकर राजकुमार अपनी बहन के ससुराल पहुंचा, पर उसको फटेहाल मैला-कुचैला देख कर द्वारपाल ने उसे अन्दर नहीं जाने दिया. संदेशा बहन के पास भेजा गया, पर उसने बड़ी बेरुखी से कह दिया कि मेरा भाई भिखारी के रूप में आ ही नहीं सकता है. राजकुमार भूखा भी था उसने भोजन देने का सन्देश भेजा तो महल में से नौकर रूखी-सूखी बासी रोटियां दे गया, जो राजकुमार से खाई नहीं गयी. उसे पट्ट  तीसरी बात भी समझ में आ गयी कि बहनें भाई से बहुत सी अपेक्षाएं रखती हैं. वहाँ से मायूस होने के बाद उसने अपने एक मित्र के पास जाने का निश्चय किया और वह चलते चलते जब उसके घर पहुंचा तो थक कर बेहाल हो चुका था. मित्र ने उसको पहचान कर हृदय से स्वागत किया, अच्छा खाना खिलाया, नए वस्त्र पहनाए. मित्र को उसके जीवन में घटी इस घटना पर बहुत दुःख हुआ और कहा कि “अब उसके पास ही रहे और किसी प्रकार की चिंता न करे.” एक सच्चे मित्र की यही पहचान होती है कि अपने दोस्त से कोई लाभ पाने की अपेक्षा नहीं करता है और उसके परेशानियों के समय हर सम्भव मदद करने को उद्यत रहता है. राजकुमार अपने मित्र के पास आराम से रहने लगा था. लेकिन जब बुरा समय होता है तो अच्छाइयों में भी कांटे उग आते हैं. एक दिन राजकुमार जब कमरे में अकेला था तो उसके देखते ही देखते एक कौवा खूंटे पर टंगा हुआ उसके मित्र की पत्नी का कीमती हार ले उड़ा. राजकुमार इस अनहोनी से घबरा गया कि हार की चोरी का इल्जाम अब उस पर आने वाला था. यदि वह ये कहे कि ‘एक कौवा उठा कर ले गया तो उसका उपहास किया जाएगा’ ये सोचते सोचते परेशान होकर वह वहाँ से चुपके से निकल लिया.

कई दिनों तक चलते हुए वह अपने ससुराल पहुचा तो उस राज्य के दरबानों ने उसे दुश्मन राज्य का गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया. उसने अपना परिचय दिया लेकिन कोई उसे मानने को तैयार नहीं हुआ. इसमें उसकी पत्नी का रोल बहुत बुरा रहा. वहाँ के राजा ने उसे मृत्यु दंड की सजा सुना दी. जब सैनिक उसे मारने के लिए जंगल की तरफ ले गए तो उसने माँ द्वारा दी गयी पाँच स्वर्ण अशर्फियाँ उनको रिश्वत देकर अपनी जान बचाई.

ताम्र पट्ट की एक एक बात सही होती जा रही थी राजकुमार किसी अन्य अनजाने राज्य की राजधानी में पहुँच गया, जहाँ राजकीय खजाने में रातों में चोरियां हो रही थी, पर चोर-डाकू पकड़ में नहीं आ रहे थे. राजा ने ऐलान कराया था कि जो भी व्यक्ति चोरों को पकड़वायेगा उसे मुँह माँगा इनाम दिया जाएगा. राजकुमार ने हिम्मत करके अपना भाग्य अजमाने की ठानी. वह एक दुधारी तलवार लेकर रातों में चोरों के संभावित रास्ते में छुपकर बैठ गया. एक रात उसे सफलता मिल गयी. उसने एक चोर को बुरी तरह जख्मी कर दिया उसे बाद में पकड़ लिया गया. चोरों की पूरी गैंग का पर्दाफ़ाश हो गया. अगर राजकुमार अन्य चौकीदारों की तरह रात को सो जाता तो वे चोर पकड़े नहीं जाते. राजकुमार ने ताम्र पट्ट की आख़िरी बात, ‘जो सोवे सो खोवे, जो जागे सो पावे’ वाली बात याद रखी. यहाँ के राजा ने जब राजकुमार की असलियत जानी तो उसे अपना दामाद बना लिया और आधा राज्य भी दे दिया.

कुछ समय के बाद जब वह अपने सैनिक व गाजेबाजे के साथ उसी रास्ते से सब से मिलने वापस चला तो तिरस्कार करने वाली पूर्व पत्नी, मृत्युदंड देने वाले पूर्व ससुर को दण्डित करते हुए, जब अपने दोस्त के पास पँहुचा तो उसने उसी गर्मजोशी से स्वागत किया. ‘हार’ की बात बताने पर, उसके मित्र ने अफ़सोस जताते हुए बताया कि ‘हार’ तो छत पर पड़ा मिल गया था.

इस बार उसे बहन को सन्देश भेजने की जरूरत ही नहीं पड़ी वह बाजे-घाजे की आवाज सुन कर ही दौड़ी दौड़ी अपने महल से बाहर आ गयी. राजकुमार ने उसको उसके द्वारा किये गए व्यवहार की याद दिलाई. अंत में जब वह अपने पिता के राज्य में पहुँचा तो पहले अपनी माँ से मिला जिसने हमेशा की तरह उसको स्नेह पूर्वक गले लगा लिया. राजा यानि पिता को अपने बेटे के यशश्वी बन कर कर लौटने पर बहुत खुशी हो रही थी, लेकिन राजकुमार को अपने ‘देश निकाले’ के दंश अभी भी आहत किये हुए था. इसलिए वह अपने राज्य को लौट गया.
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