मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

घुटनों का बल

घुटना प्रत्यारोपण का एक्स रे
(via Wikimedia Commons)
हमारे सनातन धर्म में गृहस्थ जीवन के लिए बहुत से नैतिक बंधनों की व्यवस्था है. वैवाहिक कार्यक्रम में सात फेरों में इस बात पर विशेष रूप से प्रकाश डाला जाता है कि पति पत्नी एक दूसरे के प्रति ईमानदार रहें, और एक दुसरे का हर तरह से खयाल रखें.

कुछ अन्य धर्मों में विवाह को एक सहज समझौते के रूप में भी निरूपित किया जाता है. यहाँ मैं किसी प्रकार की तुलना अथवा अच्छे-बुरे की बात नहीं करता हूँ क्योंकि ये सब सभ्यताओं के देश-काल व परिस्थितियों के आधार पर विकसित हुए नियम-धर्म हैं. धर्म का अर्थ धारण करना होता है. हम जिस लीक पर चलते हैं, या विश्वास करते हैं वही हमारा धर्म होता है.

अंग्रेजी वालों ने पत्नी को wife, spouse, my lady या better half जैसे शब्दों से नवाजा है. हमारे यहाँ पत्नी को सहधर्मिणी कहा गया है और अर्धांगिनी भी. आधे अंग में दुःख हो, व्यथा हो, परेशानी हो तो पूरे अंग का प्रभावित होना स्वाभाविक होता है.

मैं अपनी बात करता हूँ कि मेरी पत्नी समय समय पर नेत्र रोग, मधुमेह, हृदय रोग आदि गंभीर कही जाने वाली बीमारियों की शिकार रही है और वक्त जरूरत यथोचित चिकित्सा भी करवाता आ रहा हूँ. इन बीमारियों के परिपेक्ष्य में घुटनों पर संधिवात के प्रकोप को गौण समझते रहे हैं. पत्नी इसके कष्ट को उम्र से जोड़ते हुए सहती आ रही थी. जब सैचुरेशन पॉइंट आ गया और पेनकिलर्स ने भी काम करना बन्द कर दिया तब ऑर्थोपीडिक डॉक्टर ने कहा कि अब एकमात्र विकल्प घुटना प्रतिरोपण है. जो कि आजकल आम हो गया है. हमारे परिचितों में कुछ लोग घुटना प्रतिरोपित करवा भी चुके थे. उनकी बातें सुनकर हम अनिश्चय की स्थिति में थे क्योंकि कुछ के घुटने आपरेशन के बाद स्टिफ हो गए हैं.

इस मामले में हमारे कनिष्ट पुत्र प्रद्युम्न ने हमको बहुत हौसला दिया. वह दिल्ली में है. उसकी ही व्यवस्था के अनुसार एक उच्च कोटि के अस्थि संस्थान, ‘इन्डियन स्पाइनल इंजरी सेंटर, वसन्त कुञ्ज, नई दिल्ली’ में १७ सितम्बर २०१३ को दोनों घुटनों का आपरेशन करके प्रत्यारोपण कर दिया गया है. पोस्ट ऑपरेटिव परेशानियां थोड़ी बहुत होती ही हैं, पर एक सप्ताह के अन्दर वॉकर या लाठी की सहायता से धीरे धीरे चलने लगी है. पहले घुटनों के रगड़ से उसे जो दर्द होता था, वह अब गायब है. तेज पेनकिलर्स व एंटीबायोटिक्स की वजह से इस बीच कभी कभी बेचैनी व बदहजमी जरूर हुई है, पर ये सब चिकित्सा का आवश्यक अंग है, जिनकी लाक्षणिक चिकित्सा करनी पड़ती है.

अब सत्तर वर्षीय कमजोर शरीर को सामान्य होने में थोड़े दिन जरूर लगेंगे. ईश्वरीय कृपा तथा हमारे अनेक मित्रों की शुभकामनाएं हैं, जो हमें इस मुकाम पर नया उत्साह दे रही हैं.

बड़े प्राइवेट अस्पतालों में ईलाज/आपरेशन कराना अब साधारण बात नहीं रही है. वैसे कहा जाता है कि पैसा भगवान तो नहीं पर भगवान से कम भी नहीं होता है, जो सही है. बहुत से मित्रों ने ये जानना चाहा है कि दोनों घुटनों के प्रत्यारोपण पर इन्डियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में कुल कितना खर्चा आया है? मैं बताना चाहता हूँ कि हमें चार लाख रुपयों का भुगतान करना पड़ा है. जान है तो जहान है, रुपया तो आता जाता रहता है के सिद्धांत पर अटूट विश्वास है. इस मामले में हमें ये कहते हुए गर्व हो रहा है कि अपने बेटे प्रद्युम्न व बहू पुष्पा के जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार और देखभाल, और पोते-पोती सिद्धांत व संजना की आत्मयीयता  ने बहुत बड़ी शक्ति दी है. मेरी श्रीमती जो कभी महिला संगीत जैसे कायक्रमों में ठुमका लगाती थी, फिर से उन दिनों में लौट पायेगी, ये सोच कर मन होलोरें ले रहा है.
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