सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

क्लेप्टोमेनिया

मोहनप्रसाद सक्सेना बड़े बातूनी और खुशमिजाज इन्सान हैं. वे खुद को बहुत भाग्यशाली बताते रहे हैं. उनके छ: बेटे हैं: जय, विजय, संजय, अजय, धनञ्जय और सबसे छोटा पराजय. पराजय को बाद में स्कूल दाखिला के समय परंतप कर दिया गया. कोई जब उनसे पराजय नाम रखने की सार्थकता पूछता है तो वे बताते हैं कि ये आख़िरी बेटा उनकी नसबंदी के बाद पैदा हुआ इसलिए वे इसे अपनी और डॉक्टरों की पराजय के रूप में मानते हैं.

मोहनप्रसाद सक्सेना अपने कायस्थ होने पर बहुत गर्व करते हैं. वे बताते हैं कि वे ब्रह्मापुत्र चित्रगुप्त के वंशज हैं, कुलीन हैं. एक समय था जब उत्तर में कश्मीर से धुर दक्षिण तक वर्धन, परिहार और चालुक्य राजवंशों का साम्राज्य था और ये सभी कायस्थ थे. स्वामी विवेकानंद, वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बोस, पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, हरिवंशराय बच्चन और काका हाथरसी आदि सभी कायस्थ थे. सहस्राब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन को तो वे अपना आदर्श बताते हैं. मधुशाला में बच्चन जी ने कायस्थों व सुरा का जो सम्बन्ध वर्णित किया है, उसको वे हर एक बोतल खोलते समय अवश्य दोहराते हैं. अपने खानदान को ठेठ मुग़ल साम्राज्य के कोषाध्यक्षों व लेखाकारों से जोड़ते हैं.

मोहनप्रसाद सक्सेना रेलवे के कारखाने में बाबू से बड़े बाबू बने और लम्बे अरसे तक प्रशासन को अपने ढाँचे से चलाते रहे. उन्होंने तरकीब से पाँच बेटों को रेलवे में ही नौकरी पर लगवा दिया. उनके रिटायरमेंट के समय परंतप बी.ए. के लिए पढ़ रहा था इसलिए उसके लिए नौकरी की व्यवस्था बाद में करनी पड़ी. संयोग से यहाँ की बड़ी फार्मस्यूटिकल कम्पनी में हृदयनारायण माथुर जनरल मैनेजर बन कर आ गए तो मोहनप्रसाद ने दूर की रिश्तेदारी निकालते हुए उनके बंगले में आना जाना और कुछ न कुछ भेंट पहुंचाना शुरू कर दिया. लगभग सभी इन्सान चाटुकारीप्रिय होते हैं. उसने माथुर साहब का दिल जीत लिया और एक दिन परंतप को बतौर क्लर्क उनकी फैक्ट्री में चिपका दिया.

परंतप काम में और व्यवहार में अपने पिता से दो कदम आगे ही था लेकिन जिस बड़े हॉल में परंतप का कार्यालय था उसमें बहुत सी केबिन छोटे अफसरों व बाबुओं के लिए बने हुए थे. कुछ समय पश्चात जब परंतप माथुर साहब का आदमी होने के विशेषाधिकारों के साथ टाइम बेटाइम आफिस में घूमने लगा तो लोगों की छोटी मोटी वस्तुएं जैसे कैलकुलेटर, पेन्सिल, चश्मे, डायरियाँ, लैटर पैड, यहां तक कि मोबाइल फोन गायब होने लगे. सभी लोगों में बेचैनी फ़ैल गयी क्योंकि पहले ऐसा कभी नहीं होता था. सेक्यूरिटी डिपार्टमेंट के लिए ये चिंता और शोध का विषय हो गया.

चोर को पकड़ना आसान नहीं था इसलिए चुपके से दो जगह सीसी टीवी कैमरे फिट कर दिये गए. परिणामस्वरूप परंतप सक्सेना को लोगों की दराजें खोलकर चीजें निकालते हुए साफ़ साफ़ देख लिया गया. उसे प्रशासन ने तुरन्त निलंबित कर दिया, और चार्जशीट दे दी गयी. पहले तो वह ना नुकुर करता रहा, पर जब उसे साक्ष्य के रूप में वीडियो दिखाया गया तो वह टूट गया और सेक्युरिटी स्टाफ के सामने सच सच उगलते हुए अपने क्वार्टर के उस कमरे में ले गया जहाँ उसने ये सब सामान जमा कर रखा था.

सेक्युरिटी आफीसर ने जब इतना सारा तरह तरह का सामान देखा तो दंग रह गया. परंतप ने बताया कि उसे अपने आफिस के अलावा भी अन्यत्र कहीं कोई सामान पड़ा दिखता है तो वह उसे उठा कर ले आता है. उसको ये मालूम रहता है कि इसमें बहुत सा सामान उसके लिए अनुपयोगी होता है तथा पकड़े जाने का अन्जाम क्या होगा. वह रोते हुए बोलता है कि उसके अन्दर कोई शैतान बैठा है जो उससे ये सब करवाता है. वह सामान उठाने से खुद को रोक नहीं पाता है.

डिपार्टमेंटल इन्क्वारी की रिपोर्ट में परंतप का कनफेशन होने की वजह से उसका नौकरी से निकाला जाना निश्चित माना जा रहा था क्योंकि ये मॉरल टरपीट्यूड का मामला था, जिसे सुप्रीम कोर्ट तक ने अक्षम्य माना है. कर्मचारी युनियन ने परंतप को बचाने का कोई आश्वासन नहीं दिया क्योंकि युनियन के कई सदस्य परंतप के कारनामों के शिकार थे. पर युनियन के अध्यक्ष नरोत्तम को थोड़ी सी व्यक्तिगत हमदर्दी उसके व उसके दो छोटे छोटे बच्चों के साथ थी. उसने कहीं मेडीकल बुलेटिन में पढ़ा था कि क्लेप्टोमेनिया एक मानसिक बीमारी होती है, जिसमें रोगी बिना कोई आर्थिक लाभ सोचते हुए भी उठाईगिरी कर लेता है. उसको ये भी ज्ञात था कि उनकी कम्पनी के मैनेजिंग डाइरेक्टर टी. बनर्जी की पत्नी भी इसी रोग की शिकार है और कुछ समय पहले उसने मुम्बई के किसी फाइव स्टार होटल से २५ नैपकिन-तौलिए चुरा लिए थे और पकड़ी गयी थी. बाद में मि. बनर्जी ने होटल मैनेजमेंट को असलियत बताते हुए माफी माँगी तब जाकर मामला रफा दफा हुआ था.

इन दिनों मोहनप्रसाद सक्सेना अपनी सारी चपलता, बड़प्पन, और बड़बोलापन, सब भूल गए थे. "दूसरों को उपदेश देने वाले का बेटा चोर निकला," ये जग जाहिर होने से वे शर्मिन्दा भी थे, पर बाप का दिल है, हाथ जोड़ते हुए सभी दर ढोकने पड़े. जिसका मुंख नहीं देखना चाहते थे, उसका पिछवाड़ा देखना पड़ रहा था. युनियन के अध्यक्ष नरोत्तम ने उसको सलाह दी कि ‘मैनेजमेंट को मर्सी पेटीशन दायर करे, जिसमें क्लेप्टोमेनिया का हवाला देकर एक एडवांस प्रति सीधे मैनेजिंग डाइरेक्टर बनर्जी साहब के नाम रजिस्टर्ड डाक से भेज दें. क्योंकि यही इस मामले में आख़िरी विकल्प बचता था. जब मर्सी पेटीशन मि. बनर्जी के टेबल पर गयी तो उन्होंने उसे गौर से पढ़ा और मुस्कुराए बिना नहीं रह सके. उन्होंने आदेश दिया कि परंतप को इस बार सख्त हिदायत देते हुए माफीनामा लिखवा लिया जाये तथा नौकरी पर बहाल कर दिया जाये.
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Posted by पुरुषोत्तम पाण्डेय at 7:50 am

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही जगह गया प्रार्थना पत्र, उनके लिये घर के अनुभव जैसा रहा।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. परन्तप गीता में अर्जुन को कहा गया है। परंतप का अर्थ है शत्रु को तपाने वाला।

    कायस्थ कुल में जन्म लिया मेरे पुरखों ने इतना ढाला ,

    मेरे लोहू के अन्दर है पचहत्तर प्रतिशत हाला।

    क्लेप्टोमेनिया एक मानसिक बीमारी होती है, जिसमें रोगी बिना कोई आर्थिक लाभ सोचते हुए भी उठाईगिरी कर लेता है.

    IT IS AN OBSESSION .

    बहुत दिलचस्प जानकारी परक रोचक अभिलेख। बधाई।

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