अगर आप हिदुस्तानी हैं तो आपने अपनी रसोई में बनी स्वादिष्ट खिचड़ी जरूर खाई होगी. खिचड़ी कई तरह से बनती है, उसमें दाल, चावल, सब्जी, खड़े मसाले आदि एक साथ डाल कर पकाया जाता है. पश्चिमी राजस्थान में और गुजरात में बाजरे की खिचड़ी बहुत स्वाद के साथ खाई जाती है. चूकि खिचड़ी पकाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती है और जल्दी में कम ही बर्तन लगाने की अपेक्षा रहती है इसलिए लोग वक्त बेवक्त खिचड़ी बनाया करते हैं. खिचड़ी सुपाच्य होती है इसलिए बहुधा बीमारों को परोसी जाती है. मेथी दाने की खिचड़ी बहुत गुणकारी बताई जाती है. वैसे भोजन का स्वाद बदलने के लिए सप्ताह में एक बार खिचड़ी का आनन्द ले लेना चाहिए. एक लोकोक्ति मे कहा गया है कि :
खिचड़ी के चार यार, दही-मूली-घी-अचार
अगर इन खिचड़ी के यारों के साथ वह खाई जाये तो वास्तव में बहुत बढ़िया लगती है. खिचड़ी के बारे में अनुमान है कि ये प्री-वैदिक काल से ही लोगों के मुँह लगी होगी. वैसे इतिहास के पन्नों में लाने का श्रेय राजा बीरबल को जाता है. जिसने बादशाह अकबर को सबक देने के लिए एक लम्बे बाँस पर खिचड़ी की हंडिया लटकाई थी.
आपने बचपन में खिचड़ी आधारित ये कहानी भी अवश्य सुनी होगी कि एक भोला ग्रामीण आदमी अपने ससुराल गया था, जहाँ उसकी सासू माँ ने उसे खिचड़ी खिलाई थी. उसने पहले कभी भी खिचड़ी नहीं खाई थी, उसे खिचड़ी का स्वाद इतना पसन्द आया कि वापसी की राह में वह ‘खिचड़ी’ शब्द भूल न जाये इसलिए ‘खिचड़ी, खिचड़ी’ बोलता आया पर प्यास लगने पर कुएँ पर पानी पीने के बाद वह खिचड़ी के बजाय भूल से ‘खाचिड़ी’ बोलने लगा. रास्ते में एक खेत की तैयार फसल को चिड़ियों का झुण्ड खा रहा था. खेत के मालिक ने जब जब भोले को ‘खाचिड़ी’ बोलते हुए सुना तो मारपीट पर उतारू हो गया. भोले को उसने कहा कि ‘उड़-चिड़ी’ बोले. भोले अब ‘उड़ चिड़ी’ बोलने लगा. आगे राह में एक बहेलिया जो चिड़ियों को पकड़ने के जुगाड़ में था, उससे लड़ने आ गया. इस प्रकार जब भोला अपनी पत्नी के पास पहुँचा तो पूरी तरह कनफ्यूज हो चुका था, पर खिचड़ी खाने की इच्छा अभी भी बलवती थी. उसने अपनी पत्नी से कहा कि वही भोजन बनाओ जो सासू माँ ने बना कर खिलाया था. लेकिन क्या बनाना है, यह नहीं बता सका, और अनमना होकर रसोई में रखे अनाज के डिब्बों को इधर उधर पटकने लगा. परिणामस्वरूप दाल, चावल व मसाले एक साथ बिखर पड़े. ये देख कर उसकी पत्नी के मुँह से अनायास निकला, “सब खिचड़ी कर दिया है.” भोला तुरन्त संभल कर बोला, “हाँ, यही तो मैं कहना चाहता हूँ कि खिचड़ी पकाओ.”
अनुभव व परिपक्वता की निशानी के रूप में कहा जाता है कि ‘अब दाढ़ी-मूछों और सर के बाल खिचड़ी होने लगे हैं’, लेकिन लोग तो काली मेहंदी या कोई हेयर डाई लगा कर खिचड़ी को छुपाने की कोशिश करते रहते हैं.
बहरहाल खुशी की बात ये है कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी का देश के कुछ प्रान्तों में जो घोर विरोध होता था वह अब गायब होता जा रहा है और भाषायी खिचड़ी बनती जा रही है, जिसका नाम है ‘हिन्दुस्तानी’.
खिचड़ी के चार यार, दही-मूली-घी-अचार
अगर इन खिचड़ी के यारों के साथ वह खाई जाये तो वास्तव में बहुत बढ़िया लगती है. खिचड़ी के बारे में अनुमान है कि ये प्री-वैदिक काल से ही लोगों के मुँह लगी होगी. वैसे इतिहास के पन्नों में लाने का श्रेय राजा बीरबल को जाता है. जिसने बादशाह अकबर को सबक देने के लिए एक लम्बे बाँस पर खिचड़ी की हंडिया लटकाई थी.
आपने बचपन में खिचड़ी आधारित ये कहानी भी अवश्य सुनी होगी कि एक भोला ग्रामीण आदमी अपने ससुराल गया था, जहाँ उसकी सासू माँ ने उसे खिचड़ी खिलाई थी. उसने पहले कभी भी खिचड़ी नहीं खाई थी, उसे खिचड़ी का स्वाद इतना पसन्द आया कि वापसी की राह में वह ‘खिचड़ी’ शब्द भूल न जाये इसलिए ‘खिचड़ी, खिचड़ी’ बोलता आया पर प्यास लगने पर कुएँ पर पानी पीने के बाद वह खिचड़ी के बजाय भूल से ‘खाचिड़ी’ बोलने लगा. रास्ते में एक खेत की तैयार फसल को चिड़ियों का झुण्ड खा रहा था. खेत के मालिक ने जब जब भोले को ‘खाचिड़ी’ बोलते हुए सुना तो मारपीट पर उतारू हो गया. भोले को उसने कहा कि ‘उड़-चिड़ी’ बोले. भोले अब ‘उड़ चिड़ी’ बोलने लगा. आगे राह में एक बहेलिया जो चिड़ियों को पकड़ने के जुगाड़ में था, उससे लड़ने आ गया. इस प्रकार जब भोला अपनी पत्नी के पास पहुँचा तो पूरी तरह कनफ्यूज हो चुका था, पर खिचड़ी खाने की इच्छा अभी भी बलवती थी. उसने अपनी पत्नी से कहा कि वही भोजन बनाओ जो सासू माँ ने बना कर खिलाया था. लेकिन क्या बनाना है, यह नहीं बता सका, और अनमना होकर रसोई में रखे अनाज के डिब्बों को इधर उधर पटकने लगा. परिणामस्वरूप दाल, चावल व मसाले एक साथ बिखर पड़े. ये देख कर उसकी पत्नी के मुँह से अनायास निकला, “सब खिचड़ी कर दिया है.” भोला तुरन्त संभल कर बोला, “हाँ, यही तो मैं कहना चाहता हूँ कि खिचड़ी पकाओ.”
खिचड़ी का धार्मिक महत्त्व भी हिन्दू धर्मावलम्बी खूब मानते हैं. मकर संक्राति पर खिचड़ी दान की जाती है. उस दिन खिचड़ी खाना भी शुभ होता है.
आजकल खिचड़ी शब्द का प्रयोग राजनैतिक दलीय समीकरणों के लिए भी किया जाने लगा है. गठबंधन की सरकारों को खिचड़ी सरकार कहा जाता है पर इनका स्वाद अधिकतर कटु पाया जा रहा है.
आजकल खिचड़ी शब्द का प्रयोग राजनैतिक दलीय समीकरणों के लिए भी किया जाने लगा है. गठबंधन की सरकारों को खिचड़ी सरकार कहा जाता है पर इनका स्वाद अधिकतर कटु पाया जा रहा है.
अनुभव व परिपक्वता की निशानी के रूप में कहा जाता है कि ‘अब दाढ़ी-मूछों और सर के बाल खिचड़ी होने लगे हैं’, लेकिन लोग तो काली मेहंदी या कोई हेयर डाई लगा कर खिचड़ी को छुपाने की कोशिश करते रहते हैं.
बहरहाल खुशी की बात ये है कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी का देश के कुछ प्रान्तों में जो घोर विरोध होता था वह अब गायब होता जा रहा है और भाषायी खिचड़ी बनती जा रही है, जिसका नाम है ‘हिन्दुस्तानी’.
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'खिचड़ी' के बहाने जीवन के कई सन्दर्भों को छू गया यह किशोर कोना।
जवाब देंहटाएंराजनीति में खिचड़ी का प्रयोग कर एक सुपाच्य व्यंजन का अर्थापकर्ष कर दिया ससुरों ने।
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