ज़ाले दिखने लगते हैं
हर नए के पुराने होने पर
यद्यपि नए पुराने गत-अनागत
सबका अस्तित्व निर्भर करता है
जालों के ही अस्तित्व पर .
हर कोने पर, हर मोड़ पर
हर दर पर, हर पर्दे पर
हर तन पर, हर मन पर
शीत युद्ध की बुभुक्षा सी
निष्प्राण, किन्तु प्राणों को-
गृहण करने की जिजीविषा
महां छद्म ज़ाले,
कब्रगाह से बन
गहन गम्भीर मरघटी ज्ञान की तरह
प्रतीक्षा करते हैं-
हर आगंतुक की
उसके ज़ाले हो जाने तक .
***
मंगलवार 18/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....