अमेरिका का नाम सामने आते ही एक विराट नक्शा सामने घूम जाता है. उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में अनेक देश हैं. मैं जिस राष्ट का यहाँ जिक्र कर रहा हूँ, वह यू. एस. ए. कहलाता है; जिसके बड़े परदे पर न्यूयॉर्क, शिकागो, वाशिंगटन, केलिफोर्निया जैसे अनेक बड़ी बस्तियां हैं. संघीय, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं वाला यह विकसित देश बेमिसाल ही नहीं समृद्ध भी है. अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में राजनीति व राष्ट्रों के स्वार्थों को अलग रख कर यदि हम आकलन करते हैं तो यूनाइटेड स्टेट्स नंबर एक राष्ट्र है.
अपनी बेटी, दामाद, व नातिन से मिलने मैं ६ वर्ष पूर्व भी यहाँ आया था, लेकिन तब मैंने अपने अनुभवों को इस तरह शब्दांकित नहीं किया था. पर अब मैंने जो देखा उसे शब्दांकित करके बांटना चाहता हूँ.
मैं यूं. एस. के दक्षिणी राज्य जोर्जिया में, अटलांटा क्षेत्र मे हूँ. नई दिल्ली से जर्मनी-फ्रांकफुर्ट होते हुए सीधे अटलांटा लंबा और थकाऊ सफ़र था. लेकिन मन उत्साहित एवं रोमांचित था. हवाई अड्डे से बाहर आते ही थकान छू हो गयी, अलबत्ता निद्रा का समय चक्र बदलने से काफी समय नार्मल होने में लगा. अब मैं सीधे उन टापिक्स पर आता हूँ जो हमारे देश की जीवन व्यवस्थाओं से कहीं ऊपर का स्तर रखती हैं.
सड़कें चौड़ी, साफ-सुथरी, ट्रेफिक अनुशासन के प्रतीक चिन्ह, सड़कों के किनारे पदगामियों के लिए रास्ते, सब तरफ मखमली दूब करीने से कटी हुई, बस्तिओं के हर मोड़ सुन्दर सुस्सजित रंग-बिरंगे फूलों की छटा किसी चित्रकार की तूलिका से उकेरा गया मनोहारी सच.
पिपीलिका पंक्ति की तरह अनेक मोडल्स की सुन्दर गाड़ियाँ, कोई किसी को ओवरटेक नहीं करता. मजाल है कहीं आपको हार्न की आवाज सुनाई दे जाये. बच्चों की पीली स्कूल बसें बस्ती-बस्ती रूकती हैं कोई उनको ओवरटेक नहीं करता है .बच्चों को शिक्षा अनिवार्य है. बारहवीं तक के बच्चों को कोई स्कूल फीस नहीं है. उनको कापी किताब नि:शुल्क दिए जाते हैं. नवजात बच्चों की तो और भी सुरक्षा की जाती है. आप उनको गोद में रख कर इधर-उधर नहीं ले जा सकते है. उनके लिए गाड़ी में अलग से बेबी-सीट लगानी होती है. क़ानून है आप छोटे बच्चों को पीट नहीं सकते है.
तमाम घर बंगलेनुमा, केंद्रीय रूप से वातानुकूलित होते हैं. कोर्टयार्ड छायादार पेड़ों से घिरे हुए हैं. दूब की लॉन, मानो मखमली कारपेट सर्वत्र बिछाई गयी हो. धुल-मिटटी का कहीं नामोनिशान नहीं. खाली जगहों पर पिरूल (चीड़ की पत्तियां) या बुगेट (चीड़ के पेड़ की बाहरी छीलन) से बड़े करीने से ढका हुआ. घास खुद काटिए या कटवाइए, यह आपकी जिम्मेदारी है. वरना जुर्माना भरना पड़ेगा. कटी हुई घास कागज़ के बड़े-बड़े थैलों में रख कर गेट पर छोडिये, नगर प्रशासन उठवायेगा. इसी तरह घर का कचरा भी उठाया जाएगा.
हर घर के गेट पर लेटर बौक्स हैं. डाकिया पत्र डाल भी जाएगा और ले भी जायेगा. अगर आप गाडी चला रहे हैं तो ध्यान रहे हर दोराहे पर स्टाप लिखा होगा और आपका पहिया वहाँ रोकना होगा. लाल बत्तियों पर कैमरे लगे हैं. उल्लंघन करने पर जुर्माना और ट्रेनिंग की सजा. पेट्रोल खुद ही भरना होता है.
घरों के अन्दर साफ स्वच्छ पानी, गैस आधारित स्वचालित गीजर, सर्वत्र कारपेट बिछा हुआ. भारत मे सामान्यतया हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. बाहर भी कहीं पालीथिन कागज़ या कचरा नहीं होता है, इसे देख कर मुझे अपने शहर हल्द्वानी का विद्रूप चेहरा याद आ रहा है जहाँ बाजार गलियों से लेकर नालियाँ - नहरों तक गंदगी और पौलिथिन से अटी पडी रहती हैं.
मॉर्निंग वाक पर लोग दौड़ते हुए मिलते हैं. हाय, हेलो, गुडमार्निंग ऐसे कहते हैं मानो बहुत पुरानी मुलाक़ात हो. पालतू कुत्ते (यहाँ आवारा कुत्ते या जानवर नहीं होते) घुमाने वाले साथ में थैली और दस्ताने रखते हैं. अपने कुत्तों की विष्ठा को उठा कर ले जायेगे.
यहाँ इंडियन स्टोर है जहाँ भारत की हर खाद्य सामग्री मिलती है. यह दूसरी बात है कि कीमत कई गुना ज्यादा है पर सामान सब एक्सपोर्ट क्वालिटी का नंबर वन.
भारतीय लोगों ने हर शहर मे अपने समाज-ग्रुप बनाये हुए हैं. हिन्दू-मुस्लिम चाहे उत्तर के हों गुजराती हों या दक्षिण आन्ध्र अथवा केरल के हों आपस मे बड़ा स्नेह और दोस्ती रखते हैं.
दुनिया के राजनैतिक गलियारे में यू. एस. सरकार की दादागिरी और थानेदारी का मैं कतई समर्थन नहीं करता, लेकिन अपनी अंदरुनी व्यवथाओं के स्थायित्व व आर्थिक संयमों से राष्ट्रीय हितों के प्रति इनका समर्पण अनुकरणीय है.
मैं हिमालय की गोद में बागेश्वर और पिंडारी ग्लेशियर के बीच एक बहुत पिछड़े गाँव में आजादी से पूर्व पैदा हुआ था. जिस खातडा-गूदड़ी संस्कृति से आगे बढ़ कर, अनेक संयोगों से मैं आज अमेरिका आ पहुंचा हूँ और इस शिखर से, नीचे घाटी में अपने देश और अन्तरंग को झाँक कर देख रहा हूँ तो सोचता हूँ वहां विकास की प्रक्रिया तो जारी है पर अभी लंबा सफ़र तय करना होगा.
यूं तो अमेरिका के विषय में लिखने के लिए अनेक चीजें हैं, जैसे यहाँ की वनस्पतियाँ (चीड़ और दूब के अलावा सब कुछ अलग लगते है.) यहाँ के लोगों का सामाजिक व्यवहार, भोग और सुविधा भोग की उनकी आदतें, सब कुछ हम भारत वंशियों से अलग है. हर आम जगहों को यहाँ दर्शनीय स्थल बनाया गया है. ये तमाम बातें बाहर से आने वालों को लुभाते हैं. चूंकि हम सनातनी लोग वसुधैव कुटुम्बकम से संस्कारित हैं, इसलिए इस धरती को भी नमन करते हैं.
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namaste uncle ji !!
जवाब देंहटाएंAap ka lekh bahut aacha laga. USA main aap ka sawagat hai .
Best regards,
Anjuli
aapka lekh padha. achha likha hai aapne.isme mai kuchh add karna chahungi. .. jab mai ameriaca gai to man me ek utsaah tha. pahli baar apni bahan se milne jaa rahi thi. vahan ke saundarya ne mujhe bhi bahut prbhavit kiya aur logo ke anushasit vyvhaar ne bhi lekin mai achambhit thi ki sadke pray kisi bhi jan se shoonya hi thi. mujhe apne yahan ki bheed bhari sadke yaad aai aur mera man ardr ho uthha. choonki mai khud drive karti hoon aur ghar se chalne se pahle mujhe gantavya tak pahunchne ke liye kabhi nakshe ko padhne ki zaroorat nhi padi. jab meri bahan ne gprs system nikala to mujhe laga ham to yun hi khidki ka darwaaza kholte hain aur kisi se bhi raasta poochh lete hain. lekin vahan itni lambi sadko par paidal chalte hue mujhe koi dikhai nhi diya. vah lagbhag ek mahina mere liye vahan rahna kisi yaatna se kam na tha. mujhe apna hi desh yaad aaya aur apne desh ki tamaam baato par mujhe garv hua.. shukriya
जवाब देंहटाएंजहां बुराइयां है वहाँ अच्छाइयां भी हैं अमेरिका और वहाँ के लोगों में ... देखने वाले को अच्छी चीजों को ग्रहण करना चाहिए ... फिर आखिरकार अगर नम्बर एक पर कोई देश है तो कुछ तो कारण होगा ही ... अच्छा लेख है ...
जवाब देंहटाएंभारतीय लोगों ने हर शहर मे अपने समाज-ग्रुप बनाये हुए हैं. हिन्दू-मुस्लिम चाहे उत्तर के हों गुजराती हों या दक्षिण आन्ध्र अथवा केरल के हों आपस मे बड़ा स्नेह और दोस्ती रखते हैं.
जवाब देंहटाएं.
Achcha laga jaan kar. Abhaar
क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं?
बहुत ही रोचक प्रस्तुति सरजी, बहुत अच्छी जानकारियों मिली। आभार।
जवाब देंहटाएंदुनियाभर में बसे भारतीयों ने हर जगह अपनी जगह बनाई है...... सुंदर वर्णन किया आपने कनाडा में मेरा अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा है.....
जवाब देंहटाएंMany many thanks for reading and for your comments.I shall go on publishing my articles please give me your valuable advice.
जवाब देंहटाएंvery nice article,very well written,thanks
जवाब देंहटाएंEnjoyed your article sitting and reading at Boston!24.06.13.
जवाब देंहटाएंWe have to go a long way - probably through generations to inculcate the best practices of USA in India, is it not!